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बकरे की फोटो लगा केक काटकर मनाते हैं बकरीद, बकरे की कीमत से करवाते हैं गरीब बेटियों की शादी..

बकरे की फोटो लगा केक काटकर मनाते हैं बकरीद, बकरे की कीमत से करवाते हैं गरीब बेटियों की शादी..

 

 

 

 

 

 

 

 

आगरा में एक परिवार ऐसा भी है, जो बीते 5 साल से कुर्बानी की जगह बकरे की फोटो लगाकर केक काटकर बकरीद मनाता है। जीव हत्या का विरोध करने के कारण जैन समाज के लोग भी इस परिवार का सम्मान कर चुके हैं।

 

देश-विदेश: ईद उल अजहा का पर्व इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार ईद उल अजहा का पर्व 12वें महीने की 10 तारीख को मनाया जाता है और रमजान महीने के खत्म होने के 70 दिन बाद ईद उल अजहा आता हैं। इस बार 10 जुलाई को ये पर्व मनाया गया। ईद उल अजहा को बकरीद के पर्व के नाम से भी जाना जाता हैं। ये कुर्बानी का दिन है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। लेकिन आगरा में एक परिवार ऐसा भी है, जो ऐसा नहीं करता।बता दे कि बीते 5 साल से यह परिवार कुर्बानी की जगह बकरे की फोटो लगाकर केक काटकर बकरीद मनाता है। जीव हत्या का विरोध करने के कारण जैन समाज के लोग भी इस परिवार का सम्मान कर चुके हैं।

आपको बता दे कि आगरा के शाहगंज आजमपाड़ा निवासी गुलचमन शेरवानी ने 6 साल पहले कुर्बानी के लिए बकरे का बच्चा पाला था। 15 अगस्त को जन्मा उनका 5 साल का बेटा गुलवतन शेरवानी बकरे के बच्चे से घुल-मिल गया था। जब बकरे की कुर्बानी का नंबर आया, तो बच्चे ने खाना­-पीना छोड़कर बकरे के बच्चे की जिंदगी के लिए दुआ मांगनी शुरू कर दी। इसके बाद पिता गुलचमन शेरवानी ने बकरे की शक्ल का केक बनवाया और उसे काट कर कुर्बानी की रस्म निभाई।

 

इसके बाद बकरे की कीमत के पैसे निकाल कर उन्होंने एक गरीब लड़की की शादी करवा दी। तब से लगातार 5 साल से परिवार कुर्बानी में केक काटता है। बकरे की कीमत का पैसा दान कर देता है। रविवार को बकरीद पर भी उन्होंने ऐसे ही किया है। इस दौरान जैन समाज के लोगों ने जीव हत्या न करने के लिए उन्हें सम्मानित भी किया है। गुलचमन का कहना है कि इस तरह वह समाज को जीव हत्या न करने का संदेश देते हैं। उन्होंने 20 साल से मांस तो क्या अन्न भी नहीं खाया है। सिर्फ फलाहार पर जीवन जीते हैं।

रोमांचक है गुलचमन की कहानी

गुलचमन शेरवानी की कहानी बहुत ही रोमांचक है। बतौर गुलचमन बचपन में अलीगढ़ में वंदे मातरम गाने पर पिता ने घर से निकाल दिया। जिसके बाद उन्होंने मजदूरी करके जीवन जी रहे थे।जिसके बाद इस उनकी बुआ उन्हें आगरा ले आई। उन्होंने वंदेमातरम न बोलने के फतवे को लेकर दिल्ली जामा मस्जिद समेत 10 इमामों के खिलाफ मुकदमे की मांग की। इसके लिए दीवानी चौराहे पर भारत माता की मूर्ति पर आमरण अनशन शुरू किया। आश्वासन मिला पर मुकदमा नहीं हुआ।

उन्होंने मुकदमा दर्ज न होने तक अन्न न खाने की बात कही थी, जो आज भी कायम है। बाद में उन्होंने अपनी बुआ की बेटी के साथ ही निकाह किया । निकाह के दौरान उन्हें विदेशी धमकियां मिली और सुरक्षा के बीच शादी हुई। उन्हें कब्रिस्तान में दफन न किए जाने का फतवा भी जारी है। गुलचमन के परिवार का तिरंगा प्रेम जग जाहिर है। परिवार कमर के ऊपर तिरंगा पहनता है। घर भी तिरंगा है और उसका नाम तिरंगा मंजिल है। बेटा गुलवतन 15 अगस्त को पैदा हुआ है और बेटी गुलनाज 26 जनवरी को पैदा हुई है।

 

 

 

 

 

 

 

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