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नंदा की चिंता-8

नंदा की चिंता-8

Uk न्यूज़ नेटवर्क के सभी पाठको को नमस्कार। Uk न्यूज़ नेटवर्क टीम की यही कोशिश है कि सामाजिक रूप से जागरूक किया जाए और कुरीतियों पर प्रहार किया जाये। इसी कड़ी में महावीर सिंह जगवाण द्वारा रचित ‘नंदा की चिंता’ आपके बीच ला रहे हैं।

महाबीर सिंह जगवाण

नंदा से नैना पूछती है दीदी कार्ड बीपीएल का होने के बाद भी इलाज कीमती वह भी कोषों दूर ,नंदा कहती है दादा जी कहते थे,पहले डाॅक्टर भगवान से कतई कम नहीं होते थे लेकिन अब सभी माया के पुजारी हो गये,उनका मस्तिष्क अब मरीज के मर्ज को तत्काल समझने की अपेक्षा उसकी सामर्थ्य पर कुदृष्टि रहती है,डाॅक्टर जानते हैं ,परिजन और संबंधियों को अपने मरीज की रक्षा के लिये वह सबकुछ दाव पर लगाने को तैयार हैं इसलिये वह जितना हो सकता है लूट खसूट करता है,दादा जी कहते थे,पहाड़ मे इलाज के नाम पर लोंगो ने अपना सबकुछ लुटाकर फिर अपनो को भी खोया है,नैना कहती है हर साल सरकारी खजाने से करोड़ों राहत कोष के रूप मे ब्यय होता है,ब्याधि निधि तक बनी हैं ,ऊपर से बड़ी बड़ी संस्थायें स्वास्थ्य सुधार के नाम पर ब्यय करती हैं,फिर भी आम पहाड़ी नागरिक को लाभ क्यों नहीं मिल पाता,नंदा कहती है दादा जी कहते थे,

राहत कोष के लिये नेता जी से नजदीकी चाहिये,ब्याधि निधि से रूपया निकालने के लिये कागजी मकड़जाल है तर संस्थाऔं की सहायता के लिये उनके पैरामीटर पर खरा उतरना होगा,नैना कहती है यह पैरामीटर क्या हुआ,नंदा कहती है दादा जी कहते थे,हमारे पहाड़ पहले की तरह नहीं रहे ,कोई किसी से कोई मतलव नहीं रख रहा है यदि कोई बहुत बड़ी तकलीफ मे है और उसके संपर्क ठीक नहीं हैं तो वह लावारिस मर जायेगा,यानि संस्थाऔं के द्वारा मानवता की सेवा के नाम पर मदद हेतु संपर्क चाहिये,बड़ी सिफारिस चाहिये।नैना कहती है नंदा वाकई पहाड़ों मे स्वास्थ्य सुविधायें तो हैं ही नहीं,नंदा कहती है दादा जी ने राज्य बनने के बाद और बेस अस्पताल के मेडिकल काॅलेज बनते समय बड़ी बड़ी चिट्ठियाँ भारत सरकार और राज्य सरकार को लिखी थी,लेकिन न जाने वो किस कूड़े के ढेर मे पड़ी हैं,दादा जी कहते थे सरकारों को सूझ बूझ से योजनाऔं का क्रियान्वयन करना चाहिये,नीतियों के निर्माण के समय दो बातें स्पष्टत:ध्यान रखनी चाहिये पहली नीति पारदर्शी और उत्पादक हो ,नीति दीर्घजीवी हो और समयानुशार अधिक कारगर होती चले,जबकि उत्तराखंड मे गैरजिम्मेदारी और अदूरदृष्टि के कारण मुँह फैलाये संकटों के समाधान के लिये नई नई नीति बनती हैं जो तत्काल मे तो राहत सदृश दिखती हैं लेकिन कुछ समय बाद स्थितियों को अधिक खराब करती हैं।नैना कहती है काश दादाजी की सलाह पर अमल होता ,तो आज कई जिंदगियां बचती,नंदा कहती है पहाड़ के लोग कभी भी चुनाव मे शिक्षा स्वास्थ पर अपना पक्ष भी नहीं रखते,केन्द्र और विश्व बैंक की कई योजनायें कागज पर ही शुरू होती हैं और कागज पर ही मर जाती हैं,पहाड़ की जनता थोड़ा अधिक पढी लिखी है उसकी सामुदायिक हितों पर विजन अस्पष्ट है।

नंदा कहती है सरकारी अस्पतालों मे तो दादा जी कहते हैं नब्बे फीसदी केन्द्रो पर स्टाफ फर्जी मरीज दिखकर बल्ले बल्ले काट रहे हैं,और तो और महँगी दवाई की तो विक्री की सैटिंग वाकी बीपीएल वाली दवाई गाड गदेरों मे गिरकर मछलियों की सेहत विगाड़ देते हैं।और तो और एक अस्पताल मे तीन से दस एम्बुलेंस जिनमे लगभग सभी खटारा,जो नई नई आई है उसे तो साहब और सारथी ने स्टाफ गाड़ी बना रखी है या मालगाड़ी ,वाकी 108की ठेकेदारी,जो समझदार हैं वही समय पर 108को बुलाकर सेवा का लाभ लेते हैं बाकी तो सत्तर फीसदी अपनी धन की पुड़िया खर्च कर उस अस्पताल पहुँचते हैं जो रेफर सेंटर हैं ,इलाज तो शहर मे मिलेगा वह भी मोटी रकम अदा करके,दादा जी कहते थे मैदान मे जितने भी बड़े प्राइवेट अस्पताल हैं उनमे अस्सी फीसदी वो पहाड़ी मरीज भरे हैं जिनके इलाज के बड़ी बड़ी बाते गला फाड़ कर सरकारें कहती हैं,शहर के सार्वजनिक बड़े अस्पतालों पर इतनी भीड़ है पहाड़ी को सिफारिस चाहिये या भीड़ मे पिसने का साहस।दादा जी ने तब कहा था डाॅक्टर को प्रक्टिस के लिये भीड़ चाहिये ,हमे जिलों के भीतर विकेन्द्रित अस्पताल चाहिये ,कंपलीट एक्सपर्ट की पूरी टीम जिलों के विभिन्न भू क्षेत्रों मे हो भले ही वह अलग अलग स्थानो और अस्पतालों मे हों,जरूरत पड़ने पर इकट्ठे भी हो जायें और स्थाई की अपेक्षा चलित स्वास्थ्य सुविधायें हों,उन्हें तीन सितारा सुविधायें हों,अलग अलग प्रयोजन का अलग अलग मानदेय उन्हें मिले तो निश्चित पहाड़ पर डाॅक्टर मिलेगा,न्याय पंचायत स्तर पर गुणवत्ता युक्त खून जाँच केंद्र होने चाहिये,कौशल और अनुभवी फार्मेसिस्ट की डाॅक्टरों के बाद दूसरी शसक्त पंक्ति होती ,नागरिकों के स्वास्थ्य कार्ड अनिवार्य बनते और साथ ही छह माह मे संपूर्ण जाँच अनिवार्य की जाती तो निश्चित पहाड़ियों का जीवन बचता।तभी नंदा की सबसे बड़ी दीदी रूकमणी कहती हमे अपनी बहिन नंदा पर गर्व है,वह अभी बहुत छोटी है लेकिन दादा जी की टू काॅपी है।

नैना, नंदा से पूछती है बहिन आज बड़ी दीदी थोड़ा शांत और खुश लग रही है जरा दीदी रूकमणी से गप्पें लगाते हैं ,नंदा कहती है दीदी जी तो बहुत शख्त है ,वहाँ कुछ भी पूछो जबाब संतोषजनक मिलेगा लेकिन सवाल की तैयारी ढंग से ही होनी चाहिये।नंदा और नैना तैयारी करते हैं,और दीदी के पास जाते हैं दीदी रूकमणी से पूछते हैं ,दीदी आप क्या बनना चाहती हो,दीदी कहती है पहले यह बताऔ ,यह सवाल किसका है,नैना कहती है दीदी मेरा।रूकमणी कहती है ,यही सवाल सालों पहले मैंने दादा जी से पूछा था ,दादा जी मुझे क्या बनना चाहिये उनका जबाब था,प्रोफेसर,तब सायद मैं जानती भी नहीं थी,दादा जी कहते थे उच्च शिक्षा प्राप्त करना और उच्च शिक्षण संस्थान मे नौकरी का सौभाग्य राष्ट्र के युवाऔं को दिशा देने का दुर्लभ अवसर होता है,तेरे अंदर संयम है,अनुशासन है,जिज्ञासा है,और शोध अध्ययन की संभावना है,प्रबंधन का कौशल है। निश्चित यह गुण मेरी नातिनी को प्रोफेसर तक ले जायेगा।गाँव मे पाँचवीं करने के बाद जब मैं जूनियर मे गई वहाँ छ: ,सात,आठ की कक्षाऔं मे केवल दस बच्चे और एक गुरूजी थे,गुरूजी हमसे गाइड से उतारने को कहते ,दिन भर हम प्रत्येक विषय को गाइड से उतारते और घर आकर याद करते थे,तब नंदा बहुत छोटी थी।

मै कोशिष करती थी दादा का सपना पूरा करना है,फिर नौंवी दसवीं मे स्कूल के लिये पहले पाँच किलोमीटर पैदल और फिर उपलब्ध गाड़ियों से धक्के खाकर स्कूल पहुँचती थी,वहाँ भी गुरूजी कम ही थे फिर भी मेहनत कर दसवीं मे 91%प्रतिशत अंक लाई,फिर ग्यारहवीं बारहवीं 92%से पास किया ,तभी नैना कहती है दीदी आपके विषय क्या थे,रूकमणी कहती है दादा जी ने बताया था प्रत्येक बिषय का समान महत्व है ,जो आपको रूचिकर हो ले सकते हैं,तभी नंदा कहती है दीदी क्या बारहवीं तक भी गुरूजी पूरे नहीं थे,रूकमणी कहती है हमारी स्कूल मे छ:कक्षायें,5गुरूजनों के भरोसे,यह केवल हमारी स्कूल मे ही नहीं अभी काॅलेज मे सभी लड़कियों से बात करती हूँ उनसे कम मार्क्स का कारण पूछती हूँ तो एक ही जबाब गुरूजी पूरे नहीं थे,आश्चर्य तो इस बात का जो पहाड़ों मे कस्बों बाजारों से लगे बारहवीं तक के विद्यालय हैं उनके भी हालात खराब हैं ,वहाँ अंग्रेजी हिंदी से लेकर विज्ञान के गुरूजनों का भारी अकाल है,गाँव और दुर्गम क्षेत्रों के बहुत बुरे हाल हैं न जाने बेटियाँ कितनी मेहनत कर पास हो रही हैं वह भी घर मे हर काम मे साथ देकर,नैना कहती है यह तो सरासर अपराध है बेटियों और बेटों के संग विना गुरूजनों के कैंसी शिक्षा,नंदा कहती है सरकारों ने हमारे भाग्य को धूमिल करने की पूरी रणनीति बनाई है,यह धोखा और षडयंत्र नहीं तो और क्या टेलीविजन पर करोड़ों ब्यय कर बेटी बचाऔ बेटी पढाऔ का नारा लगाते हैं और हमें बिना गुरूजनों के राम भरोसे पढाई करवा रहे हैं,दादाजी को बस यही चिंता थी मेरी नातिन गुरूजनों के अभाव मे कैसे पारंगत होंगी,लेकिन मुझे गर्व है मेरी दीदी रूकमणी बिना गुरूजनों के परीक्षा मे अब्बल आई यह हम सबके लिये प्रेरणा दायी है,यह हमारी चिंता हमारी ताकत बनेगी और एक दिन ऐसा भी आयेगा जब हर विद्यार्थी को पूरे विषयों के एक्सपर्ट गुरूजी मिल जायेंगे,काश समय रहते वो भी सोचते जो जिम्मेदार हैं।
क्रमश:जारी।

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