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नंदा की चिंता-11

नंदा की चिंता-11

Uk न्यूज़ नेटवर्क के सभी पाठको को नमस्कार। Uk न्यूज़ नेटवर्क टीम की यही कोशिश है कि सामाजिक रूप से जागरूक किया जाए और कुरीतियों पर प्रहार किया जाये। इसी कड़ी में महावीर सिंह जगवाण द्वारा रचित ‘नंदा की चिंता’ आपके बीच ला रहे हैं।

महाबीर सिंह जगवाण

दुनियाँ मे दो बड़ी शक्तियाँ हैं,एक ईश्वर जिसे सभी धर्म मत अपनी मान्यतानुसार श्रृष्टि का रचनाकार और सबकी हेरदेख करने वाला मानते हैं ,दूसरा सरकार ,हाँ दादा जी यही कहते थे,रूकमणी कहती है और साथ ही नंदा दुहराती है हाँ हाँ दादा जी के मुँह से मै भी कई बार सुनती थी ,लोकतंत्र मे जनता द्वारा चुनी सरकारें ही नागरिकों के हितों के लिये जिम्मेदार अभिवाहक हैं,नैना कहती है क्या सचमुच भगवान बराबर शक्तिशाली सरकारें भी होती हैं ,रूकमणी कहती है हाँ दादा जी कहते थे

आजादी के बाद अब हमारे लिये,हमारे द्वारा चुनी सरकारें ही जिम्मेदार अभिवाहक हैं ,जिनका एक मात्र लक्ष्य है नागरिक और राष्ट्र के साथ राज्य को प्रगति समृद्धि के पथ पर अग्रसर करना।जब हम उत्तरप्रदेश राज्य मे थे तब एक चिंता थी,उत्तर प्रदेश इतना बड़ा राज्य है जिसकी राजधानी लखनऊ मे निश्चित होता है कौन सा दल देश पर राज करेगा,हम पहाड़ियों के लिये सोचने की फुर्सत कहाँ,हम सुदूर पहाड़ों मे विकट और दुरूह सीमान्त क्षेत्रों मे विकास के उजियारे के लिये छटपटा रहे थे,दादा जी कहते थे,हम भले अभाव और चुनौतीपूर्ण जीवन जी रहे थे ,लेकिन फिर राष्ट्रीय परिदृष्य मे अपनी मेहनत कौशल श्रम और बौद्धिक क्षमता मे अब्बल ही थे,

दादा जी कहते हैं हमे इस बात की चिंता थी,हमारे खेतों तक पहुँचने वाली कई किलोमीटर नहरों पर पानी इसलिये नहीं बहता था क्योंकि या तो नहर का मुहाना जल श्रोत से ऊपर होता था या नहरें बढते क्रम मे ढाल की अपेक्षा चढाई होती थी,लखनऊ से जनकल्याण की योजनायें पहाड़ चढने पर हाँफती थी,हिमालय जो विश्व की प्यांस बुझाता है ,उस हिमालय का वासी बूँद बूँद पानी के लिये कोषों दूर भटकता था,खेत खलिहान की तकनीकी सदियों पुरानी थी जो पेट भरने की गुन्जाइस तो निभा देती लेकिन साल भर की बचत की गुन्जाइश खो चुकी थी,

दो ही काम थे , यदि बेटे की पढाई पूरी हो गई या अधूरे मे ही मन भर गया तो नौकरी पर जा,और वह हुनर और जवानी को लेकर पहाड़ से तबकी संकरी सड़कों से खचखच करती बसों से मैदान पहुँचता फिर वहाँ से सरपट दौड़ती ट्रेनो से देश और दुनियाँ की भीड़ मे खो जाता।जंगल मे मंगल ही मंगल था लेकिन विना अपनो के सब सूना ही सूना,न जाने क्यों थी वह टीस और कहाँ खो गई वह प्यांस जिसके लिये राज्य निर्माण का सपना संजोया गया,लोग भरी जवानी मे अपने प्राणो की आहुति देकर ,सबकुछ लुटाकर,लाठी डंडे खाकर दशकों तक संघर्ष करते रहे ,बस हर सवाल का एक ही जबाब होता था,ऐ भुली ऐ भुला ,जब अपुण राज्य ह्वौलू त तब द्यैखि दूँ

हमतें भैर जाणे क्वै जरूरत नी च,गौं गौं खुशहाली ह्वली ,सब्यों तें योग्यता का हिसाब से काम मिललू ,हमारि सबि खैरि मिटि जाली(भाई बहिनो जब हमारा राज्य उत्तराखंड बन जायेगा तब गाँव गाँव खुशहाल होंगे,सभी को योग्यतानुसार रोजगार मिलेगा,हमारे सारे दु:ख दर्द मिट जायेंगे), दादा जी कहते थे दो गलतियाँ हो गई या तो हम सुनियोजित ठगे गये या राज्य प्राप्ति के बाद हम बिखर गये या फिर बेफिकर हो गये,काश यह न होता सायद हम सम्मपन्न राज्यों की श्रेणी मे भी होते और हमारे गाँव खेत खलिहान भी मुस्कराते। लेकिन कोई कुछ भी कहे हम सब ठगे गये।नंदा कहती है हाँ दादा जी कभी कभी दादी जी से भी कहते थे,इस राज्य का कारवां उस ओर बढ रहा है

जिससे मुक्ति का मंत्र था उत्तराखंड,यदि सब यही होना था तो कई गुना बेहतर था उत्तर प्रदेश।नैना कहती है शहर मे तो सभी कहते हैं बहुत बुरा हाल है पहाड़ियों का ,अमृत देने वाले धारे नौले और कुँऐ दिन प्रतिदिन सूख रहे हैं ,जिन सरकारी नलों का पानी पीते हैं पहाड़ी ,उसे पानी को पीने के लिए डाॅक्टर भी मना करते हैं,कभी बिजली गिरती है तो कभी बाढ और तो और यदि सीने मे दर्द की यदि कहीं से गोली ली तो दून वाला डाॅक्टर कहता है इसकी तो पहले ईसीजी होनी चाहिये थी,साॅरी,ठीक है आप खर्चा उठाना ही चाहते हैं तो कोशिष करते हैं।पहाड़ मे पचास फीसदी लोंगो को सरकारी नलों के प्रदूषित जल से पीलिया हो जाता है।नंदा कहती है एक बार मै दादा जी के साथ विश्व बैंक पोषित जलागम की एक बैठक मे गया वहाँ बड़ा बोर्ड लगा हुआ था जिसपर करोंड़ो रूपये का विकास दर्शाया गया था,तभी रूकमणी कहती है उन सभी गाँवों के बच्चे हमारी काॅलेज मे पढते हैं लगभग सभी से पड़ताल हुई है लेकिन सभी कहते हैं पच्चीस फीसदी ही काम हुआ और बरसात मे बह गया।रूकमणी कहती है,दादा जी को सबसे बड़ी चिंता यह थी ,हमारी खोपड़ी गिनकर हमारे विकास के नाम पर सरकारी खजाना लूट चुके मातहत अब हमारी गरीबी मजबूरी और दीनहीनता का वास्ता देकर वर्ल्ड बैंक से भीख के कर्ज को भी निगल रहे हैं इसे तो राष्ट्र द्रोह माना जाना चाहिये,काश इन्हें सजा मिलती।

नैना कहती है मै कतई यह नहीं समझ पा रही हूँ विकास रूपी गंगा को भ्रष्टाचार ने सूखा कर दिया लेकिन एक सौ पच्चीस करोड़ के देश मे क्यों किसी के कान मे जूँ नहीं रेंगता,रूकमणी कहती है ,दादा कहते थे हमारे समाज मे एक बड़ा तबका रात दिन मेहनत कर इतना ब्यस्त है उसे भली प्रकार पता है सिस्टम सड़ा हुवा है यहाँ तो मेहनत से ही गुजारा होगा ,लेकिन एक छोटी जमात ऐसी भी है जिसे सबकुछ ठिकाने लगाने मे महारत है,वह करते तो कुछ नहीं लेकिन लाटसाब बनकर बढिया बढिया बातें कर अंदर से गाँव समाज और पूरे पहाड़ को खोखला कर रहे हैं,नंदा कहती है यह सब कैसे,रूकमणी जबाव देती है,कुछ लोग सब कुछ जानते हैं गड़बड़ कहाँ है,फिर भी मौन रहकर खूब मलाई बटोरते हैं ,समाज मे सफेदपोस बनकर वाह वाही भी लूटते हैं और अंदर खाने काले को सफेद और सफेद को काला भी करते हैं असल मे इस राज्य की बागडोर बस इन्हीं हाथों मे है,नैना आश्चर्य जताती है ,कहती है अच्छा अब समझी जिनकी जगह काल कोठरी मे होनी चाहिये वह जूँ की तरह उत्तराखंड और उत्तराखंडियों के खून को चूस कर सत्ता के स्वर्ग सदृश सुख को भोग रहे हैं,तभी नंदा कहती है कहीं ऐसा तो नहीं जो यहाँ हो रहा है वही हाल देश का है और यदि यह सत्य हुवा तो हम तो पिछड़ते राष्ट्र हैं,रूकमणी कहती है दादा जी को यही चिंता थी जब कुछ भी सुधरता नहीं दिख रहा है तो फिर सौ फीसदी सत्य है हम पिछड़ रहे हैं।

नंदा ,नैना और रूकमणी तीनो गंभीर हैं और रूकमणी कहती है ,दादा जी मुझे बताया था,जब यह राज्य बना तब श्री नित्यानंद स्वामी मुख्यमंत्री उत्तराखंड की अध्यक्षता मे एक बैठक हुई थी,जिसमे दादा जी सम्मलित हुये थे,उस बैठक का ऐजेंडा था,नवसृजित राज्य के लिये कौन सी नीतियाँ और संविधान बने जिसके दूरगामी लाभ हों, दादा जी कहते हैं सभी वक्ताऔं ने अपनी अपनी बात रखी ,दादा जी का गुस्सा सातवें आसमान पर था,दादा जी कहते हैं मुझे कभी गुस्सा नहीं आता लेकिन इस राज्य के भविष्य को देखकर मै तभी आसंकित हो गया था,क्योंकि उन सबका निष्कर्ष था,आधा बायलाॅज यूपी से ले लेंगे और आधा दक्षिण भारत के राज्यों से,दादा जी कहते हैं ,मै खड़ा हुवा और बड़े स्नैह से निवेदन किया,यह नया राज्य है,राज्य बनने के पीछे जिस तीन चौथाई भू भाग के पिछड़ने की बड़ी वजह है उसका समाधान न तो यूपी की नीतियों से होगा और न ही दक्षिण भारत के राज्यों से नकल की गई विवधताऔं वाले संविधान से,यह स्वर्णिम अवसर है ,इस राज्य का भविष्य शुरूआत की नीतियों और संविधान से ही निखरेगा और चमकेगा अन्यथा सबकुछ और खराब होगा,सभी मौन रहकर दादा जी को सुन रहे थे,दादा जी कहते हैं आपके पास हिमांचल का माॅडल है ,जरूरी हुवा तो उन देशों का अध्ययन कीजिये जिनकी भौगोलिक परिस्थितियाँ उय्तराखंड से मिलती जुलती हैं और वह तरक्की के सातवें आसमान पर वैश्विक स्तर मे अब्बल हैं ,

हमे अपनी शिक्षा नीति चाहिये,जिसमे दूरस्थ विकट गाँव के बच्चे की गुणवत्ता युक्त शिक्षा और उसके भविष्य को सँवार रहे शिक्षक के हितों की पैरवी हो,हमे ऐसी पर्यटन नीति चाहिये जो दस वर्षों मे हमारे पास प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों की संख्या दुगनी हो और सुविधायें और सुरक्षा अंतरराष्ट्रीय स्तर की हो,हर दस साल मे हम नये दस स्थलों का ढाँचागत विकास कर पायें,हम देव भूमि के लोग है तीर्थ स्थलों हेतु पारदर्शी और मानवीय ब्यवहार एवं जरूरत सहयोग और सुविधाऔं का ऐसा विकास हो मानो आस्था के भाव लिये उत्तराखंड आने वाले हर मन मस्तिष्क मे यहाँ का मानव ,ब्यवस्थायें देव तुल्य ही लगें ,हम चार धाम यात्रा को हर वर्ष विस्तार देकर चालीस धाम यात्रा का लक्ष्य रखें ताकि देवभूमि के हर तीर्थ को सम्मान और तीर्थयात्री उत्तराखंड की संपूर्ण यात्रा से पुण्य के शिखर का मातम्य प्राप्त कर सके,हमे अपनी वन नीति ऐसी बनानी होगी ,जिनसे पले बढे हैं वन उनका सम्मान और स्वरोजगार बढे,वन उत्पादक और आकर्षक के साथ अग्नि के दावानल से मुक्तिपाकर हँसते मुस्काराते मानव और वन्य जीवन के लिये खुशहाली ला सकें

हमे ऐसी जल नीति चाहिये,हर गले की प्यांस मिटे गुणवत्ता युक्त जल से,हर ऊँची चोटी पर पानी की जलधारा पहुँचे,हर खेत वन उपवन मुस्कराते लहलहाते दिखे,घट पनघट विजली पर हो सम्मानजनक अधिकार,खनन नीति बने ऐसी सुरक्षित रहे पहाड़ ,सुरक्षा और विकास से बढे आय,गंगा का भी मान बढे ,छोटा छोटा सबको मिले रोजगार और खजाना भी भरे सरकार,हमे ऐसी उद्योग नीति चाहिये,जो पहाड़ चढने पर खूब पनपे,लालची भेड़ियों डकैतों से मुक्त रहे,घर घर मे हर हाथ को उसकी जरूरत का सम्मान जनक काम मिले यह सब जुड़कर बड़े उद्योग मे तब्दील हो,पहाड़ की बड़ी खपत की पूर्ति हो और राज्यो से राष्ट्रों का निर्यात बढे,हमे ऐसी स्वास्थ्य नीति चाहिये जो बैनरों से मुक्त हो लेकिन हर घर की सुरक्षा से युक्त हो,बीमारी के पैदा होते ही उसका समय रहते इलाज हो,दिखावट से कोषों दूर हर एक स्वस्थ और निरोग हो,आपात काल की सुविधायें हों वैश्विक स्तर की,समय समय पर सबकी जाँच हो स्वस्थ रहने की गारण्टी,परिवहन नीति बने ऐसी ,हर बहुमूल्य पल का हो उपयोग,सुरक्षा समय और सदब्यवहार से हो युक्त,जबाबदेही हो ,जनकल्याण की भावना हो,दूर दूर तक पहुँच हो समय वाली सरकारी गाड़ी की।दादा जी कहते हैं मै लगभग साठ मिनट तक बोलता गया वह सब सुनते गये और अंत मे बोला कोदे झंगोरे की लाज रखना यह सब संभलकर कर गये तो देवता तुल्य पूजे जाऔगे और की चूक तो हर उत्तराखंड मे उत्तराखंडी की उत्तरखंडी से उत्तराखंड की लड़ाई पैदा होती रहेगी ,उसके जबाबदेह नित्यानंद,भगतदा और नारायणदत्त तुम्हीं रहोगे तुम्ही रहोगे,रूकमणी भावुक होती है और कहती है दादा जी निराश थे इन सबने गौर से सुना था,वादा भी किया था लेकिन किया कुछ भी नहीं,नंदा कहती है,काश हमारे भाग्य विधाता हमारी किस्मत इमानदारी से लिखते तो आज चिंता की जगह खुशियों पर संवाद होता।
क्रमश:जारी

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