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नंदा की चिंता-6

नंदा की चिंता-6

Uk न्यूज़ नेटवर्क के सभी पाठको को नमस्कार। Uk न्यूज़ नेटवर्क टीम की यही कोशिश है कि सामाजिक रूप से जागरूक किया जाए और कुरीतियों पर प्रहार किया जाये। इसी कड़ी में महावीर सिंह जगवाण द्वारा रचित ‘नंदा की चिंता’ आपके बीच ला रहे हैं।

महाबीर सिंह जगवाण

नंदा और नैना आपस मे बातें कर रही हैं ,जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग आम जनता की कठिनाइयों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं ,साथ ही विकास का जो हिस्सा उनका है उसे भी लालच और भ्रष्टाचार के कारण नष्ट किया जाता है,धीरे धीरे आगे बढते हैं सामने एक मंदिर दिखता है ,नैना कहती है बहुत खूबसूरत मंदिर है ,नंदा कहती है हाँ यह महाकाल का मंदिर है उज्जैन के अलावा यह मंदिर सिर्फ हमारे गाँव मे ही है ,यह विभिन्न गाँवों का प्रसिद्ध शिवालय है।दादा जी के साध मै यहाँ आती रहती थी।दादाजी कहते हैं इस मंदिर की कहानी भी बड़ी रोचक है,मंदिर के पृष्ठ भाग मे बड़ी खाई है जो नदी मे मिलती है,बहुत पहले गाँव के तीन बच्चे खेलते खेलते इस खाई मे गिर गये थे दो दिन रात तक उन्हें ढूँढते रहे ,तभी नदी के उस पार से कोई साधु घूमते हुये गाँव पहुँचता है ,सभी लोग निराश होकर साधु की ओर देखते हैं ,साधु कहता है चिंता न करें गाँव के तीनो बच्चे सुरक्षित हैं ,सात फिट लंबे भस्म लेपकर चम चमाचमाता चेहरा लंबी जटा और मुस्कान विखेरता साधु कहता है,खाई से लगे हुये जो तीन पेड़ बेल के हैं उनपर रस्सी बाँधकर खाई मे उतरना होगा,वह लगभग तीस फिट नीचे एक गुफा मे हैं ,सभी एक दूसरे पर देखते हैं लेकिन कोई खाई मे उतरने का साहस नहीं करता,तब दादा जी के पिताजी पंद्रह साल के रहे होंगे उन पर साधु की नजर पड़ती है और साधु कहता है यह युवा ही उन्हें बचा सकता है मेरे बूढा(दादा जी के पिताजी)सहमत हो जाते हैं ,उनकी माता पहले उन्हें स्नान कराती है फिर तिलक लगाकर विदा करती है और अपने पूजा कक्ष मे जाकर ऊँ नम:शिवाय्: का जाप करती है।

गाँव मे सभी बैचेन हैं मेरे बूढा जी धीरे धीरे रस्सी से नीचे की ओर बढते हैं और एक एक कर तीनो बालकों को निकाल लेते हैं सारा गाँव जो,तीन दिन से मातम मे बदला हुआ था,खुशियों से झूम उठा,मेरे बूढा जी की माताजी ने अपने बेटे के साहस से प्रसन्न होकर उसका माथा चूमा और अपने अराध्य शंकर का आभार ब्यक्त किया।इधर बच्चों से हाल चाल पूछने के लिये तीनो बच्चे एक साथ बिठा दिये गये ,बच्चे कह रहे हैं जब हम ऊपर से गिरे तो सीधे नदी मे पड़ चुके थे,तभी एक साधु ने हमे गोद में उठा दिया ,वहाँ से उसने हमे गुफा मे रखा और खाने के लिये बहुत सारी चीजें दी ,वहाँ तो सब थे मामा मामी भैया भाभी उनके बच्चे,हम तो खूब खेले कूदे मस्ती मे थे,जो साधु हमे गुफा तक लाया उसका बड़ा सम्मान था,सभी उन्हें महाकाल कहते थे।यह सुनकर ग्रामीण अचंभित थे,सभी समझ गये थे यह ईश्वर की कृपा है तभी मेरे बूढा जी की माताजी ने कहा यह भगवान शंकर की कृपा है वह साक्षात साधु भेष मे अपनी लीला बता कर चले गये,हमे भी गाँव मे महाकाल का मंदिर बनाना चाहिये,इस बात पर सभी सहमत हो गये।सभी भीड़ मे साधु को ढूँढने लगे लेकिन पता भी नहीं चला साधु किधर चले गया।सभी अपने अपने घर चले गये।रात्रि को बूढा जी की माता के सपने मे वही साधु दिखा और उसने कहा फलाँ जगह पर खुदाई करना वहाँ नंदी और शिवलिंग है साथ ही एक जल धारा भी है ,बूढा जी की माता जी ने गाँव की बैठक बुलाई और अपनी बात साझा की ,ग्यारह दिन की सामुहिक मेहनत से शिव लिंग और नंदी के साथ जल धारा मिल चुकी थी।

सभी ने हर्षोल्लास के साथ मंलिर का निर्माण किया और इसका भब्य पूजन शिव पुराण कर महाकाल के नाम से नामकरण किया।नैना आश्चर्य चकित थी इतनी बड़ी कथा को सुनकर वह भीतर से गदगद थी और नंदा के प्रति उसका स्नैह और सम्मान असीम बढ चुका था।नंदा कहती है मेरे परिवार की और पूरे गाँव की इस शिव मंदिर पर अगाध स्नैह है,मेरे गाँव के अधिकतर बड़े युवा फौज मे हैं वह कहते हैं सीमाऔं पर हम भी विकट से विकट परिस्थितियों मे अपने ईष्ट महाकाल को याद करते हैं तो लगता है हम सुरक्षित और सहज हैं।जब भी फौजी भाई छुट्टी आता है जरूर यहाँ पर भण्डारा लगाता है।सभी के अराध्य और पूज्यनीय हैं भगवान शिव स्वरूप महाकाल, सभी अगाध स्नैह श्रद्धा और पूजन करते हैं।

इस मंदिर को गाँव के लोंगो ने सामुहिक रूप से बनाया ,इस पर चारों ओर से सुंदर आगन बनाया गया और इस जलधारा को भी सुसज्जित किया गया था ,नैना कहती है नमन इस गाँव को नमन महाकाल स्वरूप शिव शंकर भगवान को सदा अपना आशीष इन पर बनायें रखना।नंदा कहती है पहले इस मंदिर मे साधु रहता था उसकी धूनी जलती रहती थी,धूनी का भस्म ही बहुत बड़ा मातम्य होता था,गाँव के सुख दुख मे मंदिर का प्रतिनिधि साधु जरूर उपस्थित होता था,कहते हैं साधु पहले इंजिनियर था,वह गणित विज्ञान और अंग्रेजी भाषा भी सिखाता था,साधु को ग्रामीण बहुत सम्मान देते थे,दादा जी कहते थे साधु कहता था,जो भी मानव स्वच्छता के साथ रहेगा,जल का सम्मान करेगा,दया और सेवा अपनायेगा,किसी दूसरे को कष्ट नहीं देगा वह महाकाल श्वरूप शंकर को सदैव प्रिय होता है ।नैना कहती है बहिन नंदा यहाँ हर जगह बोर्ड लगे हैं उन पर योजना ,नेता जी का नाम ,काम करने वाले का नाम और धनराशि की जगह सभी ओर काला रंग लगा है।नंदा कहती है यही तो बात है ,नेताऔं को पता है यह मंदिर क्षेत्र मे प्रसिद्ध है इस लिये हर साल यहाँ खूब बजट आता है,पुराने काम को ही ठोक पीट कर नया दिखाकर उसका उद्दघाटन होता है,जो लोग कुछ कहने वाले होते हैं उनमे से कुछ को तोड़कर मजदूरी या छोटा ठेका देकर संतुष्ट किया जाता है,बाकी लोग अपने आप चुप रह जाते हैं।

यह भवन देख रही हैं दीदी नैना,यह चार बार बन चुका है,शुरूआत मे इस पर एक दरवाजा और दो खिड़की थी ,फिर इस पर दो दरवाजे और दो खिड़की दिखाकर नया बताया गया,फिर इसकी नई छत डालकर इसका तीसरी बार उदघाटन हुआ और पिछले साल इसकी सुन्दर पुताई कर इस पर चार लाख रूपये लिखा था जो कुछ दिनो बाद मिटा दिया गया।नंदा आगे कहती है मंदिर के सामने जो घाट है उस पर दादा जी कहते थे पचास करोड़ रूपये लग चुके हैं और फिर काम लगा हुवा है। नैना कहती है भगवान के मंदिर की आड़ मे भी खूब लूट खसूट होती है यह समझ से परे है।नंदा कहती है सरकार और नेताऔं को तो पता है भगवान जी तो उनपर खुश हैं क्योंकि भगवान जी को खुश करने के लिये वह मंदिर के वर्तमान साधु को प्रसन्न करते हैं और भण्डारा लगाते हैं।लेकिन सच तो यह है उनकी दिखावट और लालचीपन तो ईश्वर देख रहा है।नंदा कहती है दादा जी कहते थे जो सुकून अपने शंसाधनों से निर्मित ब्यवस्था मे था वह अब कहाँ ।यहाँ तो अब पर्व के अलावा भंगलची और शराबियों का जमवाड़ा रहता है ,अकेले ईश्वर के दरबार मे जाने पर भी डर लगता है।

नंदा और नैना अकेले मंदिर के भीतर जाने से डरते हैं और बाहर के मुख्य दरवाजे पर नतमस्तक होकर प्रणाम करते हैं और कहते हैं माँ के साथ ही मंदिर मे प्रवेश करेंगे।फिर आगे बढते हुये एक छोटी सी पुलिया पर पहुँचते हैं यहाँ पर पानी का पुराना जल श्रोत है इसका नाम ही भरपूर की जल धारा है यानि सदियों से सदाबहार जलधारा वह अब लगभग सूख ही चुका है,नैना कहती है नंदा नाम तो भरपूर है लेकिन पानी तो दिखता ही नहीं।नंदा कहती है यहाँ भी गजब का खेल है ,गाँव के कुछ बुद्धिजीवी लोंगों ने इस जल श्रोत के ऊपर वाले खेत खरीद लिये हैं,और अपने अपने चेम्बर बनाकर पानी टेप कर लिया,अभी भी पानी भरपूर है लेकिन सार्वजनिक जल श्रोत के सभी छोटे छोटे श्रोतों पर लोंगो ने डाका डाल दिया और इस जल श्रोत के मुँह पर लगी प्राचीन ताँबे की गौ मुख भी चोरी हो गई।दादा जी तब भी बोले थे लेकिन उनका एक ही जबाब था हमने खेद खरीद लिये इसमे जो पानी है हमारा है।

नैना कहती है गाँव और गाँव के हितों के सम्मुख कैसे कोई बड़ा या छोटा हो सकता है,नंदा कहती है गाँव मे जो मेहनती ईमानदार पढे लिखे जानकार थे उनका बड़ा हिस्सा पलायन कर चुका है और जो बचे हैं गाँवों मे सभी मौन हैं,गाँवों मे अब एक नया निठल्ला जमात विकसित हो रहा जो श्रम और बुद्धि के बजाय शार्टकट से जीवन यापन करना चाहता है,इस कमजोर कड़ी के बारे मे सरकारें अधिकारी तर लुटेरे भली प्रकार जानते हैं इन्ही के साथ मिलकर गाँव के विकास के अंकुरण को नष्ट किया जा रहा है,इन्ही से गाँव का ताना बाना खराब हो रहा है।दादा जी कहते थे जिस राज्य का मुखिया जमीनी जानकारी नहीं रखेगा,जिस राज्य का जिम्मेदार ब्योरोक्रेट्स विलासिता से युक्त और काम चोर होगा,जिस राज्य के विभाग कागजों मे प्रगति दिखाना सीख गये,जिस राज्य की जनता अपने हितों को बड़ा और राज्य और राष्ट्र के हितो को गौण समझते हों, वह राज्य एक दिन उजड़ता है, वीरान होता है,कुदरत भी उस भू क्षेत्र मे संकट पैदा करते हैं ,नंदा कहती है मै यह सब होने नहीं दूँगी,नैना कहती है बहिन चिंता न कर ,चलते चलते वह नंदा के घर के करीब ही पहुचने वाले थे तभी अचानक,
क्रमश:जारी
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