रात 11 बजे से पगडंडियों पर टॉर्च के सहारे चलकर सुबह सड़क तक पहुंची गर्भवती महिला..
गांव में सड़क न होने के कारण प्रसव पीड़ा से कराहते हुए छह घंटे पैदल चली गर्भवती महिला..
जौनपुर विकासखंड का लग्गा गोठ गांव की एक गर्भवती प्रसव पीड़ा में रात में छह घंटे पैदल चलकर जंगल के रास्ते ढाई किलोमीटर दूर सड़क तक पहुंची। शुक्र रहा कि महिला समय पर अस्पताल पहुंच गई, जहां उसने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया।
उत्तराखंड: यूँ तो सरकारें चुनाव के समय कई बड़े बड़े वादे करती हैं। पर धरातल पर हकीकत कुछ और ही नजर आती हैं। सरकार गांव-गांव तक सड़क पहुंचाने का डंका तो पीट रही है, लेकिन ग्रामीण इलाको में कुछ और ही देखने मिलता आ रहा हैं। आजादी के इतने सालों बाद भी उत्तराखंड के ग्रामीण इलाको में अभी तक सड़क नहीं पहुंच पायी हैं। इन ग्रामीण इलाकों के लोग बीमार व्यक्तियों को डंडी कंठी और घोड़े खच्चरों के सहारे अस्पताल पहुंचा रहे हैं।
बता दे कि जौनपुर विकासखंड का लग्गा गोठ गांव की एक गर्भवती प्रसव पीड़ा में रात में छह घंटे पैदल चलकर जंगल के रास्ते ढाई किलोमीटर दूर सड़क तक पहुंची। शुक्र रहा कि महिला समय पर अस्पताल पहुंच गई, जहां उसने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया।
आपको बता दे कि 22 जून की रात करीब 10 बजे गोठ गांव की अंजू देवी पत्नी सोमवारी लाल गौड़ की पत्नी को प्रसव पीड़ा हुई। तमाम प्रयासों के बाद भी घोड़े-खच्चर का इंतजाम नहीं हो पाया। थक हार कर सोमवारी लाल ने पत्नी को पैदल ले जाने का फैसला किया। करीब ढाई किमी की खड़ी चढ़ाई वाली जंगल की पगडंडियों पर टॉर्च के सहारे रात करीब 11 बजे अंजू ने सफर शुरू किया।
प्रसव पीड़ा से कराहते हुए अंजू छह घंटे में सुबह करीब पांच बजे सड़क तक पहुंच पाई। जहां से टैक्सी के जरिये अंजू को मसूरी अस्पताल पहुंचाया गया, जहां करीब सात बजे अंजू ने बेटे को जन्म दिया। जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। धनोल्टी लग्गा गोठ गांव से सड़क से करीब ढाई किमी दूर है।
यहां रह रहे 122 परिवार किसी के बीमार होने या महिला के प्रसव पीड़ा होने पर पालकी या घोड़े-खच्चरों से सड़क तक लाते हैं। गांव के प्रधान लाखीराम चमोली का कहना है कि डीएम और विधायक के माध्यम से मुख्यमंत्री को सड़क निर्माण करने के लिए पत्र कई बार भेजे गए लेकिन आज तक कहीं सुनवाई नहीं हो पायी हैं।