आर्टिकल

नंदा की चिंता-10

नंदा की चिंता-10

Uk न्यूज़ नेटवर्क के सभी पाठको को नमस्कार। Uk न्यूज़ नेटवर्क टीम की यही कोशिश है कि सामाजिक रूप से जागरूक किया जाए और कुरीतियों पर प्रहार किया जाये। इसी कड़ी में महावीर सिंह जगवाण द्वारा रचित ‘नंदा की चिंता’ आपके बीच ला रहे हैं।

महाबीर सिंह जगवाण

नंदा और नैना ध्यान मग्न होकर दीदी रूकमणी की बातें सुन रही हैं,उन्हें इस बात का आश्चर्य है इतने छात्र छात्रा काॅलेज जाते हैं लेकिन आधे से अधिक तो यह भी नहीं जानते भविष्य की मंजिल का ठौर ठिकाना क्या होगा,इस पढाई का जीवन मे कैंसे गुणा भाग होगा,हर माँ बाप का एक सपना होगा,उसकी बेटी बेटा उच्च शिक्षा लेगा तो कभी न कभी उसकी चौखट तक भी ऊँची पढाई का संतरंगी प्रकाश पहुँचेगा,तभी रूकमणी कहती है हमारी काॅलेज मे एक बार भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्री जी आये थे तब काॅलेज के प्राचार्य ने दादाजी को आमंत्रित किया था और दादा जी को ही अभिवाहकों की ओर से उस अहम बैठक का मुख्य वक्ता नियुक्त किया गया था,जैसे ही दीप प्रज्वलित कर सरस्वती पूजन और अतिथि अभिनंदन का संदर्भ पूर्ण होकर कार्यक्रम आगे बढा,तभी प्राचार्य ने मेरे दादाजी को अपनी बात रखने के लिये आमंत्रित किया,

जैसे ही दादा जी ने पीछे से उठकर मंचासीन अतिथियों का अभिवादन किया,और स्टेज पर अपनी बात रखने के लिये खड़े हुये,वैसे ही तालियों की गड़गड़ाहट से हाॅल गूँज उठा,मंचासीन सभी अतिथियों को यह भान हो गया,यह ब्यक्ति विशिष्ट तो होगा ही,दादा जी ने सभी मंचासीन अतिथियों को सादर प्रणाम कहते हुये ,मुख्य अतिथि की ओर सस्नेह इशारा करते हुये कहा ,आदरणीय मुख्य अतिथि जी,पहाड़ का जीवन विकट और दुरूह तो है ही ,फिर भी पहाड़ का हर माता पिता चाहता है वह कितने भी अभाव और संघर्ष मे क्यो न जी रहा हो लेकिन उसकी सन्तान जरूर उच्च शिक्षा प्राप्त करे,सरकारें कुछ भी कहें लेकिन अपने लाडलों को उच्च शिक्षा के लिये मेहनत मजदूरी, खेती और दूर परदेश मे छोटी छोटी नौकरी पर गया पहाड़ी सबकुछ दांव पर लगा देता है ,उसे आस और विश्वास है मेरे लाडले उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपने जीवन को सहजता से जी लेंगे साथ ही भारत का शसक्त शिक्षित नागरिक बनकर वह राष्ट्र का गौरव बढायेंगे,दादाजी भावुक होते और कहते हैं मुझे इस बात का दु:ख है आज उच्च शिक्षा सुलभ तो हुई है लेकिन गुणवत्ता और तात्कालिक संदर्भ मे अनुउत्पादक है,

मुझे तो कभी लगता है बीस पच्चीस साल तक युवाऔं को जो रट्टा मराया जा रहा उसका तो उसके जीवन मे कोषों दूर तक न तो उपयोग है और न ही सम्बन्ध,जरा सोचो माँ बाप जीवन भर की पूँजी लगाकर पच्चीस साल तक बच्चों को पढाई करवाने के बाद यदि अपने लाडले से पूछेंगे बेटा अब तो पढाई पूरी हो गई तुम्हें पूरा ज्ञान मिल गया अब कुछ तो करो,मेरी बाँहों की ताकत सिकुड़ चुकी है,गठरी की पूँजी समाप्त हो चुकी है,शहरो की भागमभाग और बारह घंटे की ड्यूटी के लिये अब शरीर जबाब दे गया है,डाॅक्टर साहब कहते हैं अब आप आराम करो,जिन खेतों मे साल भर के लिये अन्न होता था वहाँ भी तेरी माँ कितनी भी मेहनत कर ले दो तीन माह का अन्न भी नही उपजता है अब ,हम बूढे हो रहे हैं कुछ तो कर ,एक बार तेरी शादी हो जायेगी तो हम धरती से उठ भी गये तो सुकून तो मिलेगा, बेटा कहता है बाबा अब नौकरी तो है नहीं दस पदों पर दस लाख आवेदन आ रहे हैं ,मुश्किल ही मुश्किल है संभलना।बाबा कहता बेटा तू चिंता क्यों करता है दीनू भैजी मुम्बई से आने वाला है उसके साथ भेज दूँगा,बेटा सहमत होता है और वह अपना फोटो पहचान पत्र लेकर कुछ दिनो बाद मुम्बई चले जाता है ,जो भी डिग्रियाँ थी उन्हें घर पर छोड़कर फिर कुछ सालों मे कोई काम सीखकर बूढे माँ बाप के साथ अपनी भी कमर सीधी कर देता है और यह सिल सिला निरन्तर बढ रहा ,मुख्य अतिथि जी पढाई मे खोट है या हमारे बच्चों मे,मुझे अपने बच्चों पर सौ फीसदी यकीन है असल समस्या तो यह है उनकी पढाई अब चलन से बाहर हो रही है,आदरणीय मुख्य अतिथि जी हाँ हमारे बहुत सारे बच्चे हर परीक्षा को उत्तीर्ण कर राष्ट्रीय स्तर के सभी पदों पर शोभा बढा रहे हैं ,

मुझे जो चिंता है इनका प्रतिशत कम है जबकि हमारे पास लायक और बुद्धिमानों की शंख्या बड़ी है।मुख्य अतिथि मानव संसाधन मंत्री भारत सरकार गौर से सुन रहे हैं,और सारी बातें नोट करवा रहे हैं।दादाजी कहते हैं महोदय हम आजादी से पहले की शिक्षा ढो रहे हैं जबकि,1970के बाद पूरी दुनियाँ मे उच्च शिक्षा मे पाठ्यक्रमों मे क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है,1970से1990के बीच औसतन दुनिया मे शिक्षा मे समानुसार जरूरत के सभी अमूलचूल परिवर्तन हुये,लेकिन हम तब से वहीं के वहीं चौराहे पर अटके हैं,मेरा निवेदन है सभी उच्च शिक्षण संस्थाऔं जो भी पाठ्यक्रम हैं उनका जल्दी से जल्दी ,राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे बदलाव और अध्ययन से युक्त एक्सपर्टों की कमेटी से छटनी और नवनीकरण करने की पहल करें,जितने भी तकनीकी और ब्यवहारिक ज्ञान के श्रोत हैं उन्हें प्रयोगात्मक विषय बनाकर सभी विषयों से संयोजित किया जाय,कौशल विकाश और समाधान एवं मार्गनिर्देशन की भूमिकायें विश्वविद्यालयों और उनसे सम्बन्धित सभी उच्च शिक्षा संस्थानों मे अनिवार्य किया जाय,वर्तमान मे प्रयोगात्मक पढाई को बढाई जाय,उच्च शिक्षण संस्थानों के निकटस्थ जिन विषयों मे अध्ययन उपलब्ध है उनसे सम्बन्धित माइक्रो इण्डस्ट्रियल एरिया विकसित हों।अध्ययन प्रयोग,ब्यवहारिक ज्ञान और कौशलविकास के साथ समाधान और मार्गनिर्देशन पा चुका युवा युवती भारत को हर विधा मे अग्रणी राष्ट्र बनाने की सामर्थ्य रखेंगे,अपनी बात को विराम देते हुये फिर तालियों की गड़गड़ाहट गूँजती है और दादा जी अपने स्थान पर बैठने के पहुँचते हैं तभी मुख्य अतिथि उठकर विशेष सम्मान के साथ पहल का आस्वासन देते हैं और मंच से उठकर पाँचवीं पंक्ति मे बैठे दादा जी के बगल पर आकर बैठते हैं और चुपके से कहते हैं सौ फीसदी आपकी बात पर अमल होगा,

मुझे आप पर गर्व है सुदूर हिमालय के छोर पर इन पहाड़ों मे भी कोई तो है जो असल मुद्दों के समाधान के लिये बैचेन है।सभा का समापन होता है मै(रूकमणी)और दादा जी कैंपस के दरवाजे पर बाहर निकलने ही वाले थे,तभी प्राचार्य हमे लेने पहुँचे और कहा आप दोनो हमारे मुख्य अतिथि के संग भोजन कर ही वापस जायें ,दादाजी ने आमंत्रण स्वीकार किया और हमने और प्राचार्य के साथ साथ मानव संसाधन मंत्री जी ने एक साथ भोजन प्राप्त किया,भोजन करते समय मंत्री जी ने दादा जी से कहा जब मै हैली से यहाँ पहुँच ही रहा था ,मन मे एक ही बात थी इतनी विषम और विकट परिस्थितियों मे पहाड़ के लोग अपने बच्चों को पूरी शिक्षा दे रहे हैं ,वैसे भी पहाड़ के काॅलेज मे कम जनशंख्या के औसत मैदान से अधिक छात्र पढते हैं और राष्ट्रीय परिदृष्य मे भी शिक्षा मे पहाड़ी राज्य के लोग अब्बल हैं,दादा जी को को कहते हैं आदरणीय महोदय आपने जो बात कही उससे मे प्रभावित हूँ ,पहाड़ों को आज उस शिक्षा की बड़ी जरूरत से जिसका उपयोग स्थानीय स्तर पर अधिक हो उस सबकी संभावना आपके सुझाव मे है।

नंदा और नैना टकटकी लगाये दीदी रूकमणी की बातें सुन रही हैं और रूकमणी अपने दादा जी की बातें कहते हुये उसके चेहरे पर अलग सी चमक और स्वाभिमान झलक रहा है,नैना को यह सब आश्चर्य से कतई कम नहीं लगता है,रूकमणी को वह लम्हाँ आज भी बखूबी याद है उसके दादा जी को जो सम्मान मिला वह आजीवन प्रसाद स्वरूप अविस्मरणीय रहेगा।नंदा कहती है एक दिन मै भी दादा जी केसाथ बाजार गई थी,तब वहाँ दादा जी को मिलने कोई नेताजी आये थे,उन्होने दादा जी से कहा कहिये आपका कोई काम है तो उसे करवा देते।तब दादा जी ने कहा तुम वर्षों से विकास कर रहे हैं मुझे इस साल पूरे गाँवों मे खेलने के मैदान चाहिये,बच्चों को खेलने की जगह तक नही है,उसी समय साठ गाँवों के लिये खेल के मैदान मंजूर हुये थे,नैना कहती है क्या कल जिस मैदान मे हम खेल रहे थे साथ ही दो तीन गाँव के बच्चे भी खेल रहे थे वह क्या वही मैदान है,नंदा कहती है हाँ वह भी दादाजी की वजह से बन पाया,दादा जी ने अपने खेत ही इस मैदान के लिये दिये और सबसे बड़ी बात तीन गाँवों मे मैदान बने उनका मंजूर रूपया नहीं मिल पाया और जिन सतावन गाँवों मे रूपया मिला वहाँ मैदान बना ही नहीं ,तीन गाँवों ने बढिया काम किया लेकिन कमीशन देने से मना किया उन्हें एक ढेला नहीं मिला,बाकी 57गाँवों ने आधा बजट कमीशन मे दिया और आधा खुद खा दिया,और खेल के मैदान कागज मे बन गये,उनको आज तक किसी ने नहीं पूछा।नैना पूछती है क्या काम करने वाले को किसी ने नहीं पूछा और बेइमानों मैदान के मैदान पेट मे गटक लिया।नंदा कहती है इसी बात की चिंता है,विकास के नाम पर हाँफते हुये जो बजट पहाड़ चढता है उसकी कोई हेर देख नहीं ,जबाबदेहिता नहीं ,न कोई जिम्मेदार न कोई कसूरवार ,लेकिन कब तक।
क्रमश:जारी

 

ये भी पढ़े – नंदा की चिंता Part -1

ये भी पढ़े- नंदा की चिंता-2

ये भी पढ़े- नंदा की चिंता-3

ये भी पढ़े-नंदा की चिंता-4

ये भी पढ़े-नंदा की चिंता-5

ये भी पढ़े-नंदा की चिंता-6

ये भी पढ़े-नंदा की चिंता-7

ये भी पढ़े-नंदा की चिंता-8

ये भी पढ़े-नंदा की चिंता-9

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

To Top