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अन्नकूट मेला- 11 कुंतल फूलों से सजा केदारनाथ धाम..

अन्नकूट मेले को लेकर केदारनाथ धाम में तैयारियां शुरू..

अन्नकूट मेले पर मां भगवती की देवरा यात्रा पहुंची केदारनाथ धाम..

सदियों से चली आ रही है अन्नकूट मेले की परंपरा ..

तीर्थ पुरोहितों द्वारा अन्नकूट मेले का परंपरागत किया जा रहा हैं निर्वाह..

अन्नकूट मेले के शुभ अवसर पर महादेवी का महादेव से मिलन..

 

 

 

 

 

 

 

 

 

विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम में रक्षाबंधन से एक दिन पूर्व यानी आज मध्य रात्रि से शुरू होने वाले अन्नकूट मेले को लेकर केदारनाथ धाम तीर्थ पुरोहितों द्वारा तैयारियां शुरू कर दी गई है।

 

उत्तराखंड: केदारनाथ धाम में रक्षा बंधन से पहले आयोजित होने वाले अन्नकूट (भतूज) मेले को लेकर तैयारियां पूरी कर ली गई है। मंदिर को 11 कुंतल फूलों से सजाया गया है‌। जबकि मंदिर में मेले की सभी व्यवस्थाएं कर दी गई है। भगवान केदारनाथ को नए अनाज का भोग चढाने का उत्सव भतूज अन्नकूट मेला कर बुधवार यानि रात्रि को आयोजित होगा।

सांयकाल को पूजा आरती के बाद ज्योर्तिलिंग को पके चावलों से ढ़क दिया जाएगा। रात्रि को दो बजे से चार बजे सुबह तक श्रद्धालु दर्शन करेंगे। चावलों के भोग को मंदाकिनी नदी में प्रवाहित किया जाएगा। मान्यता है कि भगवान शिव नए अनाजों से जहर को जनकल्याण के लिए खुद में समाहित कर देते है।

 

हर साल आयोजित होने वाले इस धार्मिक मेले को लेकर लोगों में उत्साह है। वहीं केदार घाटी में विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी , ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ सहित कई अन्य शिव मंदिरों में पर भी इसी परंपरा को निभाया जाता है।

साथ ही केदारनाथ के तीर्थ पुरोहितो की कुलदेवी माँ भगवती की देवर यात्रा भी आज केदारनाथ पहुंचेगी। बता दे कि प्रत्येक 6 वर्ष बाद माँ की चल विग्रह डोली अपने सभी देवी देवताओं सहित बाबा केदार की यात्रा पर जाती है। जहां मां अपने भक्तों को चल विग्रह डोली रूप में दर्शन देती हैं । इस यात्रा में माता की चल विग्रह डोली के साथ उक्त सभी गांवों के लोग शामिल होते हैं।

प्रतिवर्ष रक्षाबंधन से एक दिन पहले केदारनाथ मंदिर में अन्नकूट मेला (भतूज) धूमधाम से मनाए जाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। मेले में सर्वप्रथम केदारनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहितों द्वारा भगवान शिव के स्वयंभू लिग की विशेष पूजा-अर्चना की प्रक्रिया संपन्न करने के साथ ही नए अनाज के लेप लगाकर स्वयंभू लिग का श्रृंगार करते हैं।

 

इस दौरान भोले बाबा का श्रृंगार का दृश्य अलौकिक होता है, जिसके बाद प्रतिवर्ष भक्त सुबह चार बजे श्रृंगार किए गए भोले बाबा के स्वयंभू लिग के दर्शन करते हैं, इसके बाद भगवान को लगाए गए अनाज के इस लेप को यहां से हटाकर किसी साफ स्थान पर विसर्जित किया जाता है।

मंदिर समिति के कर्मचारी मंदिर की सफाई करने के उपरात ही अगले दिन भगवान की नित्य पूजा-अर्चना करते है। कहा जाता हैं कि नए अनाज में पाए जाने वाले विष को भोले बाबा स्वयं ग्रहण करते हैं। आपको बता दे कि इस त्योहार को मनाने की परंपरा वर्षो से चली आ रही है। वहीं, विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी, घुणेश्वर महादेव एवं कालेश्वर मंदिर ऊखीमठ में भी अन्नकूट मेले की तैयारियां जोरों पर चल रही है। साथ ही मंदिर को सजाने का कार्य भी चल रहा है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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