उत्तराखंड

नाज है पहाड़ की प्रभा पर – 4 किमी पैदल चलकर रोज पहुंचती है स्कूल..

नाज है पहाड़ की प्रभा पर – 4 किमी पैदल चलकर रोज पहुंचती है स्कूल..

दसवीं में 82 फीसदी अंक हासिल कर बनी स्कूल की टाॅपर..

 

 

 

 

 

उत्तराखंड: प्रतिभा किसी चीज की मोहताज नहीं होती है। मैं कभी भी अंको की दौड़ का पक्षधर और हिमायती नहीं रहाँ हूँ। क्योंकि मेरा मानना है कि अंको की दौड और मेरिट सूची में स्थान बनाने की चाहत से छात्र बेवजह तनाव में आ जाते हैं और छात्रों की प्रतिभा के साथ कभी भी न्याय नहीं हो पाता है। कल उत्तराखंड बोर्ड के 10 वीं और 12 वीं के नतीजे घोषित हो गये हैं। पूरे परीक्षाफल पर सरसरी निगाहें डालेंगे तो पता चलेगा एक बार फिर पहाड़ के गुदडी के लालों नें कमाल कर दिखाया है। विपरीत परिस्थितियों, पढाई के बेहतर माहौल न होंने और शिक्षकों की कमी के बाबजूद पहाड़ की प्रतिभाओं नें अपना लोहा मनवाया है। ऐसी ही एक होनहार प्रतिभा है सीमांत जनपद चमोली के वाण गांव की प्रभा बिष्ट, जिसने कक्षा 10 वीं की परीक्षा में 82.20 फीसदी अंक हासिल करके पूरे विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया है।

पहाड़ की बेटी का पहाड़ सा हौंसला ..

भले ही आपको प्रभा के ये 82% फीसदी अंक कम नजर आयें लेकिन मेरी नजर में ये अंक 95% के बराबर हैं । क्योकि प्रभा पहाड के उस गाँव का रहने वाली है जहाँ परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत है। वाण गांव सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लाॅक का सबसे दूरस्थ गांव है जो हिमालय का अंतिम बसागत गांव है। हिमालयी महाकुंभ मां नंदा देवी राजजात यात्रा का अंतिम गांव और लाटू देवता की थाती है ये गांव। साढे आठ हजार फिट की ऊचाई पर स्थित इस गांव से आगे केवल बुग्याल और बर्फ से ढके पहाड़ नजर आते हैं। यह गांव सर्दियों में तीन महीने बर्फ से ढका रहता है और बरसात के मौसम में दो महीने देश दुनिया से कटा हुआ। यहाँ लाइट से ज्यादा भरोसा ढेबरी लालटेन (सौर ऊर्जा) पर होता है, जिसके सहारे पढ़ाई की जाती है।

एक गोली बुखार, एक किताब, एक अखबार खरीदने और बाल बनाने के लिए 40 किमी दूर देवाल जाना पडता है। तो आप सोच सकते हैं कैसी विषम परिस्थिति होगी उस गांव की। ऐसी विपरीत परिस्थितियों और पढाई के अनुकूल बेहतर माहौल न होने के बाद भी रोज घर से चार किमी पैदल स्कूल आना और फिर वापस घर जाना। घर वापस आकर घर के कार्यों में भी हाथ बटाना और फिर पढ़ाई करना और फिर 82 % अंक हासिल करना वाकई काबिलेतारीफ है। यदि पहाड़ की यह बेटी देहरादून जैसे शहर में होती तो वहां 95 फीसदी से अधिक अंक हासिल करती। यही नहीं प्रभा पढ़ाई के प्रति इतनी गंभीर है कि उसके कहने पर उनके घर में पिछले 6 सालों से टीवी ही नहीं देखी जाती है। बारिश हो या बर्फवारी, प्रभा को किताबों के अलावा कुछ भी नहीं दिखता।

पहाड़ की बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत और सरकारी स्कूलों में भरोसा जगाती है प्रिया की सफलता!

विपरीत परिस्थितियों में भी प्रभा के प्राप्त किये गए 82 % अंक पहाड़ के होनहार प्रतिभाशाली छात्रों के लिए प्रेरणास्रोत हैं तो वहीं शहरों में रह रहे लोगों के लिये एक मिशाल भी है की यदि प्रतिभा हो तो पहाड़ में भी रहकर भी सुनहरे भविष्य की नींव रखी जा सकती है। शिक्षा के लिए पहाड़ से पलायन करने वालों के लिए भी प्रभा नें एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि प्रतिभा के लिए पहाड़ और मैदान मायने नहीं रखता है। दूसरी ओर प्रभा की सफलता सरकारी स्कूलों के प्रति विश्वास और भरोसा भी जगाती है। प्रिया की सफलता में राजकीय इंटर कॉलेज वाण में कार्यरत शिक्षकों की भी अहम भूमिका है जिन्होंने उसे बेहतर शैक्षिक परिवेश दिया साथ ही मार्गदर्शन भी किया।

शिक्षकों के द्वारा दिए गए गुणवत्तापरक शिक्षा नें भी प्रभा को प्रोत्साहित किया। प्रभा के पिताजी हीरा सिंह पहाडी पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य व सामाजिक कार्यकर्ता हैं, तो माँ संजू देवी आंगनवाड़ी कार्यकर्ती। दोनों ने अपनी बेटी की पढाई के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। दोनों अपने बेटी की सफलता पर बेहद खुश हैं। वो सीमित संसाधनों के बाद भी अपनी बेटी को बेहतर से बेहतर शिक्षा मुहैया कराना चाहते हैं। पिछले साल भी इनकी बेटी प्रिया ने 10 वीं में 80% अंक हासिल करके स्कूल में प्रथम स्थान प्राप्त किया था।

काश मेरे गाँव की स्कूल में विज्ञान वर्ग होता – प्रभा बिष्ट..

प्रभा बिष्ट से उनकी इस सफलता पर बातचीत हुई तो प्रभा की आंखे भर आई। कहती हैं कि वो आगे सांइस स्ट्रीम में एडमिशन तो लेना चाहती है लेकिन उनके विद्यालय में विज्ञान वर्ग न होने से वहां के छात्र छात्राओं को 25 किमी दूर मुंदोली अटल आदर्श इंटर कॉलेज में जाना पडता है। गांव से हर दिन आना जाना नहीं हो सकता और न ही वहां अलग कमरा लेकर अकेले पढाई की जा सकती है मैं चाहती हूं कि मैं ही नहीं मेरे गाँव की सभी बेटियां इंटर में विज्ञान वर्ग से पढ़ाई करें इसलिए मेरा माननीय मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री जी से निवेदन है कि राजकीय इंटर कॉलेज वाण में विज्ञान संकाय को मंजूरी दी जाय ताकि हिमालय के अंतिम गांव की बेटियों को भी विज्ञान की पढाई करनें का अवसर मिल सकें। प्रिया नें बताया की उसकी सफलता में सबसे बडा योगदान उसके माता पिता, चाचा और विद्यालय के शिक्षकों का है जिनके बिना ये संभव नहीं था।

वास्तव में देखा जाए तो पहाड़ में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। यदि इन्हें पढ़ाई के लिए बेहतर माहौल और उचित अवसर मिले तो ये भी मेरिट लिस्ट में पहले स्थान पर आ सकते हैं। आवश्यकता है ऐसी प्रतिभाओं को उचित मार्गदर्शन की। नाज है हमें हिमालय के पहाडों और कंदराओं में रहने वाले पहाड़ की होनहार प्रतिभाशाली बेटियों पर। आखिर आप ही तो पहाड़ के असली हीरे जो हैं।

 

 

 

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