उत्तराखंड

एक पखवाड़े से अंधेरे में डूबा है अंतिम गांव गौंडार

लम्बे संघर्ष के बाद मिली थी बिजली
उरेड़ा विभाग की लाइन पड़ी है क्षतिग्रस्त
रुद्रप्रयाग। जिले का अंतिम गांव गौण्डार पिछले दो सप्ताह से अंधेरे में डूबा हुआ है। गांव में आजादी के बाद पहली बार वर्ष 2015 में बिजली का बल्ब तो जला था, मगर हर वर्षाकाल में यहां के लोगों को चिमनी के सहारे ही रातें गुजारनी पड़ती हैं। उरेड़ा विभाग द्वारा संचालित विद्युत परियोजना के क्षतिग्रस्त होने के कारण गांव में फिर से अंधेरा कायम रहे वाली स्थिति आ गयी है।

रुद्रप्रयाग जनपद का अंतिम गांव आजादी से लेकर आज तक मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है। गांव के सड़क से न जुड़ने के कारण ग्रामीण जनता को 12 किमी का पैदल सफर आना-जाना तय करना पड़ता है और अगर कोई महिला प्रसूति के लिए होती है तो उसे छः माह पहले ही कहीं अन्य जगह भेज दिया जाता है, जिससे कोई दिक्कत ना उठानी पड़े। इसके साथ ही ग्रामीणों की अन्य समस्याएं भी हैं, जो आज तक खत्म नहीं हो पाई हैं। ऐसे में लगता है कि गौंडार गांव के ग्रामीणों की किस्मत में बिजली भी नहीं है। लम्बे संघर्ष के बाद ग्रामीणों को गांव में रोशनी के दीदार हुए।

आजादी के बाद पहली बार वर्ष 2015 में गौण्डार गांव में बिजली के बल्ब टिमटिमाये थे, मगर आज स्थिति यह है कि हर वर्षाकाल में परियोजना की नहरें क्षतिग्रस्त होने के कारण गांव में अंधेरे की स्थिति कायम हो जाती है। इसके अलावा अन्य दिनों में भी बिजली की आंख मिचौली से ग्रामीण परेशान ही रहते हैं। सैन्चुरी क्षेत्र होने के कारण गांव का विकास रसातल पर चला गया है। ग्रामीण जनता कईं मर्तबा चुनाव बहिष्कार भी कर चुकी है, बावजूद इसके उनकी समस्या हल नहीं हो पाई है। ऐसे में ग्रामीण जनता विकट परिस्थिति में जीवन यापन करने को मजबूर है। वहीं मामले में मुख्य विकास अधिकारी डीआर जोशी का कहना है कि परियोजना से जुडी लाइनों के क्षतिग्रस्त होने से गौंडार गांव में बिजली की समस्या उत्पन्न हुई है। योजना का ट्रीटमेंट करवाकर जल्द बिजली आपूर्ति बहाल की जायेगी।

गौंडार गांव के ग्रामीण आजादी के बाद भी गुलामों जैसी जिंदगी जी रहे हैं। ग्रामीणों के लिए सरकार की ओर से कोई भी सुविधा नहीं मिल पा रही है। गांव में आज भी कईं परिवार निवास कर रहे हैं, जो विकास की राह तांक रहे हैं। प्रसूति महिलाओं को सबसे अधिक समस्या का सामना करना पड़ता है। अगर किसी को छोटी सी बीमारी हो तो सीधे पचास किमी दूर अस्पताल आना पड़ रहा है, जिस कारण ग्रामीण जनता खासी परेशान हैं। kकई बार चुनाव बहिष्कार के बावजूद ग्रामीणों की समस्या जस की तस बनी है।

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