मखमली घास के बुग्याल को आज भी है अपनों का इन्तजार।
आली बुग्याल! — प्रकृति नें बेपनाह सौन्दर्य लुटाया, नीति नियंताओ नें भुलाया ।
संजय चौहान!
उत्तराखंड के हिमालय में कई छोटे-बड़े बुग्याल मौजूद हैं। औली, गोरसों बुग्याल, बेदनी बुग्याल, दयारा बुग्याल, पंवालीकाण्ठा, चोपता, दुगलबिट्टा सहित कई बुग्याल हैं जो बरबस ही सैलानियों को अपनी और आकर्षित करते हैं। लेकिन इन सबसे अलग बेपनाह हुस्न और अभिभूत कर देने वाला सौन्दर्य को समेटे सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लाक में स्थित आली बुग्याल आज भी अपनी पहचान को छटपटाता नजर आ रहा है। प्रकृति ने आली पर अपना सब कुछ लुटाया है लेकिन निति नियंताओं की उदासीनता के कारण आज आली हाशिये पर चला गया है।
गौरतलब है की पहाड़ों में जहाँ पेड़ समाप्त होने लगतें हैं यानी की टिम्बर रेखा वहां से हरे भरे मखमली घास के मैदान शुरू हो जाते हैं। आपको यहीं पर स्नो और ट्रीलाईन का मिलन भी दिखाई देगा। उत्तराखंड में घास के इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है। ये बुग्याल बरसों से स्थानीय लोगों के लिए चारागाह के रूप में उपयोग में आतें हैं। जिनकी घास बेहद पौष्टिक होती हैं। इन मखमली घासों में जब बर्फ की सफ़ेद चादर बिछती है तो ये किसी जन्नत से कम नजर नहीं आती है। इन बुग्यालों में आपको नाना प्रकार के फूल और वनस्पति लकदक दिखाई देंगी। हर मौसम में बुग्यालों का रंग बदलता रहता है। बुग्यालों से हिमालय का नजारा ऐसे दिखाई देता है जैसे किसी कलाकार ने बुग्याल, घने जंगलों और हिमालय के नयाभिराम शिखरों को किसी कैन्वास पर उतारा है। बुग्यालों में कई बहुमूल्य औषधि युक्त जडी-बू्टियाँ भी पाई जाती हैं। इसके साथ-साथ हिमालयी भेड़, हिरण, मोनाल, कस्तूरी मृग जैसे जानवर भी देखे जा सकते हैं।
चमोली के देवाल ब्लाक में स्थित आली बुग्याल तक पहुँचने के लिए कर्णप्रयाग से लगभग १०० किमी गाडी मे जाना पड़ता है। कर्णप्रयाग से नारायणबगड़, थराली, देवाल, मुन्दोली होते हुए अंतिम गांव वाण पहुंचा जाता है। जबकि वाण गाँव से आली तक का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है। वाण गाँव से थोडा ऊपर जाने पर लाटू देवता का पौराणिक मंदिर है। जिसके कपाट पूरे साल में केवल एक ही दिन के लिए खुलते हैं। हिमालयी महाकुम्भ नंदा देवी राजजात यात्रा में लाटू देवता से अनुमति मिलने के बाद ही राजजात आगे बढती है। लाटू देवता को माँ नंदा का धर्म भाई माना जाता है और राजजात में यहाँ से आगे नंदा का पथ प्रदर्शक लाटू ही होता है।
लाटू मंदिर के बाद रणकधार नामक जगह आती है। फिर आगे नील गंगा, गैरोली पाताल, डोलियाधर होते हुए बांज, बुरांस, कैल के घने जंगलों, नदी, पशु, पक्षियों के कलरव ध्वनियों के बीच १३ किमी पैदल चलने के उपरान्त १२ हजार फुट की ऊंचाई पर आली और बेदनी के मखमली बुग्याल के दीदार होते हैं। बेदनी से ही सटा हुआ है आली बुग्याल। जो ५ किमी से भी अधिक क्षेत्रफल में विस्तारित और फैला हुआ है। यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त देखना किसी रोमांच से कम नहीं है। ये दोनों दृश्य बेहद ही अद्भभुत और अलोकिक होतें हैं। साथ ही यहाँ से दिखाई देने वाले त्रिशूल और नंदा देवी सहित अन्य पर्वत श्रीखलाओं का दृश्य लाजबाब होता है। वहीं हरी मखमली घास, ओंस की बुँदे, चारों और से हिमालय की हिमाच्छादित नयनाविराम चोटियाँ, धूप के साथ बादलों की लुकाछिपी आपको यहाँ किसी जन्नत का अहसास कराती है। दिसम्बर से मार्च तक यहां बिछी बर्फ की सफेद चादर स्कीइंग के लिए किसी ऐशगाह से कम नहीं है। इसे स्कीइंग रिसोर्ट के रूप में विकसित किया जा सकता है।
देवाल की ब्लाक प्रमुख उर्मिला बिष्ट कहती हैं की आली बुग्याल पर्यटन के लिहाज से सबसे ज्यादा मुफीद है। इसे विश्वस्तरीय स्कीइंग रिजोर्ट के रूप में विकसित किया जा सकता है। जिससे न केवल पर्यटन बढेगा बल्कि स्थानीय लोगों के लिए भी रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। १९७२ में आली को रोपवे से जोड़ने का प्रस्ताव भेजा गया था। हमने भी कई बार आली को पर्यटन केंद्र और स्कीइंग रिजोर्ट के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव पर्यटन विभाग और सरकार को भेजा है। लेकिन अभी तक कोई कार्यवाई नहीं हुई है। जिस कारण से आली बुग्याल आज भी पर्यटन के दृष्टि से अपनी पहचान नहीं बना पाया है।
पर्यटन व्यवसाय से जुड़े स्थानीय युवा हीरा सिंह बिष्ट कहतें हैं की आली का मखमली बुग्याल सैलानियों को बरबस ही अपनी और आकर्षित करता हैं। लेकिन सरकारों की उदासीनता और उपेक्षा के चलते आज आली अपनी पहचान के लिए जद्दोजहद करता नजर आ रहा है।
वहीँ हिमालय को बेहद करीब से जानने वाले पर्वतारोही विजय सिंह रौतेला कहतें है की आली बुग्याल की सुदंरता के सामने हर किसी का हुस्न फीका है। बरसात के समय हरी भरी घास की हरियाली मन को मोहित करती है तो बर्फ के समय पूरा बुग्याल सफ़ेद चादर से चमक उठता है। जबकि यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा देखना वाकई अद्भभुत है। सरकार को चाहिए की इस बुग्याल को पर्यटन के रूप में विकसित करें ताकि पर्यटन को बढावा मिले और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मुहैया हो सकें।
वास्तव में देखा जाय तो आली बुग्याल को स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि पहाड़ों से प्यार करने वाले, देश से लेकर विदेशी भी आली की सुन्दरता के कायल है। आली की नैसर्गिक सुन्दरता आपको हिमालय के बहुत करीब ले जाती है। मुझे भी नंदा देवी राजजात यात्रा 2014 में आली बुग्याल का दीदार करने का अवसर मिला था। आली बुग्याल के बेपनाह सौन्दर्य को देखकर बस देखता ही रह गया था। हरे घास का ये मैदान घोड़े की पीठ का आभास दिलाता है। हिमालय की गोद में बसे मखमली घास और फूलों के इस खजाने को आज भी पर्यटकों का इन्तजार है। अगर आप भी आली के बेपनाह हुस्न का दीदार करना चाहतें हैं तो सितम्बर से लेकर नवम्बर महीने तक यहाँ का रुख कर सकतें हैं। जबकि आली में बर्फ की सफ़ेद चादर के दीदार करने और आली की ढलानों पर स्कीइंग करना हो तो जनवरी से मार्च तक यहाँ आ सकतें हैं।