गुप्तकाशी- क्रौंच पर्वत के आठ हजार पांच सौ तीस फीट की ऊंचाई पर अवस्थित भगवान कार्तिक स्वामी निर्वाण रुप में पूजे जाने के साथ ही तीन सौ साठ गांवों के कुल देवता, ईष्ट देवता, भूम्याल देवता माने जाते है। शिवपुराण के कुमार खंड में वर्णित है कि एक बार गणेश और कार्तिकेय के बीच पहले विवाह करने को लेकर विवाद हो जाता है, जब विवाद शिव – पार्वती तक पहुंचता है तो वे एक युक्ति निकालकर दोनों से कहते है कि जो सर्वप्रथम चारों लोकों व चौदह भुवनों की परिक्रमा करके आएगा, उसकी पहले विवाह किया जाएगा। माता -पिता की आज्ञा सुनकर देव सेनापति भगवान कार्तिक स्वामी अपने वाहन मोर में बैठकर विश्व परिक्रमा के लिए चले जाते है।
भगवान कार्तिक स्वामी के विश्व परिक्रमा पर चले जाने से गणेश बड़े परेशान हुए कि मेरा वाहन चूहा कई वर्षो में विश्व परिक्रमा कर पाएगा, इसलिए उन्होने गंगा में स्नान करने के बाद माता- पिता की परिक्रमा की तथा भगवान शिव व पार्वती से कहने लगे कि माता- पिता को स्वर्ग से भी बड़ा दर्जा दिया गया है, इसलिए मैने आपकी परिक्रमा की जो कि विश्व परिक्रमा से उत्तम मानी गई है। इसलिए आप शीघ्र मेरा विवाह करा दीजिए। गणेश की बात सुनकर शिव-पार्वती ने विश्वकर्मा की पुत्री रिद्धी व सिद्धी से गणेश की शादी कर दी। गणेश के शुभ व लाभ दो पुत्रों ने जन्म लिया।
उधर दूसरी ओर जब भगवान कार्तिक स्वामी विश्व परिक्रमा कर माता – पिता के पास लौट रहे थे कि रास्ते में नारदमुनि ने उन्हे सारा वृतांत बताकर कहा कि तुम्हारे माता – पिता ने तुम्हारे साथ बड़ा छल किया है कि तुम्हे, विश्व परिक्रमा के लिए भेजा । दूसरी ओर प्रिय बेटे भगवान गणेश की शादी कर दी । नारदमुनि की बात सुनकर कुमार कार्तिकेय बड़े क्रोधित हुए, और माता- पिता को अपने शरीर का मांस व खून सौपकर क्रौच पर्वत पर आकर तपस्या में लीन हो गये । इसलिए क्रौंच पर्वत पर भगवान कार्तिकेय को निर्वाण रूप में पूजा जाता है। रूद्रप्रयाग- चोपता- पोखरी मोटरमार्ग पर कनकचौरी नामक कस्बे से जब श्रद्धलु पदार्पण करता है तो तीन किमी अपार वन सम्पदा से आच्छादित ढांढिक का जंगल उन्हे भावविभोर कर देता है स्कन्धनगरी से क्रौंच पर्वत तक कई पत्थर पाषाण रूप में पूजे जाते है।
मान्यता है कि भगवान कार्तिक स्वामी के क्रौंच पर्वत आने से सभी तैतीस करोड देवी- देवता क्रौंच पर्वत आकर तपस्यारत हो गये थे। भगवान का भक्त व प्रकृति का रसिक जब क्रौंच पर्वत के शिखर पर पहुंचता है तो हिमालय की चमचमाती श्वेत चादर और चौखम्भा का मनोरम दृश्य देखकर प्रकृति का हिस्सा बना जाता है। वहां से प्रकृति का जो दृश्य श्रद्धलु को दिखता है वह मनुष्य के दिलोदिमाग पर छा जाता है। इसलिए क्रौंच पर्वत पहुंचने वाला श्रद्धालु पूजा- अर्चना के बाद घंटों वहां की प्रकृति में रम जाता हैं भगवान कार्तिकेय को क्षेत्र के 360 गांव अपना ईष्ट देवता, कुल देवता व भूम्याल देवता मानते है तथा समय – समय पर धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किये जाते है।
लोक मान्यता है कि काफी समय व्यतीत होने के बाद पार्वती ने पुत्र वियोग में आकर भगवान शिव से कहा कि मेरा प्रिय पुत्र कहां है । पार्वती की बात सुनकर भगवान शंकर ने उन्हे बताय कि बेटा कार्तिकेय क्रौंच पर्वत पर तपस्या में लीन है। तब शिव और पार्वती वैकुंठ चतुर्दशी की रात्रि को भगवान कार्तिकेय को मिलने के लिए क्रौंच पर्वत पहुंते, मगर माता – पिता से खिन्न होकर भगवान कार्तिकेय अपने तपस्या स्थल से चार कोस दूर हिमालय की ओर चले जाते है। तब से लेकर वर्तमान समय तक श्रद्धालुओुं द्वारा वैकुंठ चतुर्दशी व कार्तिक पूर्णिमा को दो दिवसीय मेले का आयोजन कर रात्रि भर अखंड कीर्तन व जागरण किया जाता है।