संजय चौहान
आखिरकार बीते एक पखवाड़े से देवभूमि के विभिन्न हिस्सों में आयोजित मां नंदा की वार्षिक लोकजात आज नंदा सप्तमी के दिन हिमालय में पहुंच गईं है। नंदा राजराजेश्वरी बधाण की लोकजात वेदनी बुग्याल, नंदा कुरूड दशोली की लोकजात बालपाटा बुग्याल, बंड भूमियाल की लोकजात नरेला बुग्याल, ऊर्गम की लोकजात भनाई बुग्याल में पहुंची।
सैकड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति और हल्की बूंदाबांदी के बीच मां नंदा को जागरों के द्वारा कैलाश को विदा किया गया। नंदा को कैलाश विदा करते समय महिलाओं की आंखों से अविरल आंसूओ की धारा बह रही थी। क्योंकि अब एक साल बाद ही नंदा से मिलन होगा।
इस अवसर पर मां नंदा को समौण के रूप में दिये गये खाजा, बुखणा, काखडी, मुंगरी, अखंरोट, चूडी, मूनडी, सहित श्रृंगार का साजो सामन भी भेंट भी अर्पित की गयी। लोक से जुड़े सुनील कोठियाल कहते है कि नंदा का लोकोत्सव देवभूमि को एक सूत्र में पिरोता है। नंदा देवभूमि की अराध्य देवी है। माँ नंदा लोक में इस तरह से रची बसी है कि उनके बिना लोक की परिकल्पना नहीं की जा सकती। नंदा को कैलाश विदा करने का पल बेहद भावुक होता है।