उत्तराखंड

संघर्ष की भट्टी में तपकर कुंदन बने लोक गायक कप्रवाण

बीस साल की उम्र में घर छोड़कर संगीत और नृत्य को बनाया लक्ष्य

जनरेटर उठाने, खाना बनाना और झूठे बर्तन धोने का किया कार्य

अपनी मेहनत से दो एल्बमों को कर चुके हैं लांच

रुद्रप्रयाग- किसी ने सच ही कहा है, मेहनत करने से ही मुकाम हासिल होता है और संघर्ष की भट्टी में तपकर ही कुंदन बना जा सकता है। ऐसे ही एक शख्स हैं, जिन्होंने बीस साल की उम्र में संगीत और नृत्य को अपना लक्ष्य बना दिया और अपनी मेहनत व लगन की बदौलत आज वे अपने को दर्शकों के बीच स्थापित करने में सफल हो पाये हैं। लम्बे समय तक संगीतकारों के साथ कार्य कर आज उन्होंने अपनी दो एल्बमों को बाजार में उतारा है, जिसमें गढ़वाली और जौनसार का गठजोड़ समाया है और युवा दर्शकों के जुबां से ये गीत उतरने का नाम नहीं ले रहे हैं।

रुद्रप्रयाग नगर क्षेत्र के हितडांग निवासी कुलदीप कप्रवाण को बचपन से ही संगीत और नृत्य का शौक था। अपने सपने को पूरा करने के लिए कुलदीप ने बीस साल की उम्र में ही घर को छोड़कर म्यूजिक एल्बमों में कार्य करने वालों का दामन थाम लिया। इस दौरान उन्हें काफी मुसीबतों से भी जूझना पड़ा। कलाकार और संगीतकारों के साथ रहते हुए उन्होंने जनरेटर उठाने, खाना बनाना और झूठे बर्तन धोने का कार्य किया। फिर देखा-देखी करते हुए नृत्य सीख लिया, जबकि संगीत का ध्यान गायकों ने उन्हें दिया। बचपन से ही सरस्वती का वरदान कुलदीप के साथ रहा। उनकी आवाज को हर मंच पर सराहा गया, लेकिन उन्हें ऐसा कोई मुकान नहीं मिला, जहां से वे अपने सफर की शुरूआत कर सकें। उन्होंने प्रसिद्ध गायक नरेन्द्र सिंह नेगी के माया कू मंुडारू और स्याली के एल्बमों में लीड रोल की भूमिका अदा की। जबकि वीरेन्द्र राजपूत के नौनी डांडा एल्बम के डांडा छनि में नृत्य किया। इसके बाद नरेन्द्र सिंह नेगी की परम्परा फीचर फील्म में उन्होंने टाइटल सांग करने का मौका मिला। उनकी प्रतिभा को देखकर गढ़वाली कलाकार और संगीतकार उनकी तारिफ किया करते थे। युवा लोक गायक कुलदीप कप्रवाण ने कभी भी हार नहीं मानी। दिन-रात बड़े कलाकारों के साथ काम करते हुए उन्होंने अपनी आवाज और कलाकारी को बेहतर बनाने की कोशिश की। उन्होंने प्रसिद्ध गढ़वाली लोक गायक प्रीतम भरतवाण, सुनिल थपलियाल, राकेश पंवार के एल्बमों में नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी, जिससे दर्शकों ने जमकर सराहा। गढ़वाली के साथ ही कुलदीप ने कुमाऊंनी गीतों में भी नृत्य किया। उन्होंने कुमाऊंनी एल्बम सुन मोहना के प्रमुख गाने में लीड रोल अदा किया। उनकी संस्कृति के प्रति जिज्ञासा को देखकर तो कई बार कलाकार और संगीतकार हतप्रभ रह जाते थे। अपने बड़े कलाकार और संगीतकारों के साथ कार्य करने के बाद उन्होंने अपनी एल्बम निकालने की ठानी और सबसे पहले उन्होंने कमला बठिणा गीत निकाला, जिसमें गढ़वाली और जौनसार का गठजोड़ रखा गया। यह गीत यूट्यूब में काफी सराहा गया, जिसकी सफलता के बाद उन्होंने मिजाज्या रे तरू गीत निकाला है। इसमें लेखक की भूमिका अजय नौटियाल ने अदा की है तो एल्बम को लांच करने में खिलेश कला मंच के अध्यक्ष नवीन सेमवाल ने उनका पूरा साथ दिया। कुलदीप आज भी अपने आगे बढ़ने का श्रेय श्री सेमवाल को देते हैं, जिनकी बदौलत वे बाजार में अपनी एल्बमों को निकाल पायें हैं। उनकी नई एल्बम सुणजा मेरी बात गैल्या भी जल्द ही बाजार में आने जा रही है। लोक गायक एवं कलाकार कुलदीप कप्रवाण का कहना है कि सरकार की ओर से गढ़वाली संगीतकार और कलाकारों के बारे में सोचना चाहिए। इनके लिए एक गढ़वाल और कुमाऊंनी भाषा पर आधारित चैनल लांच किया जाना चाहिए। इसमें छोटे से लेकर बड़े कलाकारों को मौका दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज पहाड़ी दूरस्थ इलाकों में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं हैं, लेकिन संसाधनों के अभाव में ये प्रतिभाएं दम तोड़ रही हैं। उन्होंने पिछड़ रही प्रतिभाओं को आगे आने के लिए मंच देने का आह्वान किया है।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

To Top