उत्तराखंड

तबादला एक्ट की समय-सारणी पर खरा नहीं उतर रहे विभाग, सूची जारी करने में हो रही देरी..

तबादला एक्ट की समय-सारणी पर खरा नहीं उतर रहे विभाग, सूची जारी करने में हो रही देरी..

 

 

 

उत्तराखंड: प्रदेश सरकार द्वारा बनाए गए तबादला एक्ट के तहत तय की गई समय-सारणी के अनुसार सभी विभागों को 15 अप्रैल तक अपने-अपने पात्र शिक्षकों और कर्मचारियों की तबादला सूची जारी करनी थी। हालांकि कुछ विभाग अब तक यह सूची तय समय पर जारी नहीं कर पाए हैं, जिससे न केवल प्रशासनिक प्रक्रिया प्रभावित हो रही है, बल्कि कर्मचारियों में भी असमंजस का माहौल बन गया है। सरकार ने तबादलों में पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित करने के लिए एक्ट के तहत एक स्पष्ट टाइमलाइन तय की है।

तबादला एक्ट के तहत तय की गई स्पष्ट समय-सारणी के बावजूद कई विभाग अब तक पात्र कर्मचारियों, सुगम-दुर्गम क्षेत्रों के कार्यस्थलों, और खाली पदों की सूची अपनी वेबसाइट पर अपलोड नहीं कर पाए हैं। जबकि एक्ट के अनुसार यह सारी जानकारी 15 अप्रैल तक अनिवार्य रूप से प्रकाशित किया जाना था। इसके बाद 20 अप्रैल तक अनिवार्य तबादलों के लिए पात्र कर्मचारियों से 10 तक इच्छित स्थानों के विकल्प मांगे जाने हैं। लेकिन कुछ विभाग सूची जारी नहीं कर पा रहे हैं। शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना हैं कि तबादलों को लेकर हर वर्ष शासन से अलग से निर्देश/गाइडलाइन प्राप्त होती है, जो अब तक जारी नहीं हुई है। सूची जारी न होने से न केवल प्रक्रिया में देरी हो रही है, बल्कि कर्मचारियों में भी अस्पष्टता और असंतोष का माहौल बन रहा है। कई कर्मचारी संगठन अब शासन से हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं।

उत्तराखंड में तबादला एक्ट के तहत तय की गई समय-सारणी के बीच अब तक मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई उच्च स्तरीय बैठक के निर्णयों पर भी कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी नहीं हुए हैं, जिससे तबादला प्रक्रिया को लेकर विभागों और कर्मचारियों के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है। अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि कितने प्रतिशत शिक्षकों और कर्मचारियों के तबादले किए जाने हैं। शिक्षा विभाग ने अब तक सुगम और दुर्गम क्षेत्रों का नया निर्धारण भी नहीं किया। पिछले वर्ष की स्थिति के आधार पर ही इस बार तबादलों की रूपरेखा तैयार की जा रही है। जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद थापा का कहना हैं कि खाली पड़े पदों पर शत-प्रतिशत तबादले किए जाएं। इसके लिए 10 या 15 प्रतिशत की सीमा तय करना उचित नहीं है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विभाग ने सुगम और दुर्गम क्षेत्रों का ताजा सर्वे नहीं किया, जिससे पारदर्शिता प्रभावित हो सकती है।

 

 

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