उत्तराखंड

प्रकृति, संस्कृति और शिल्प देखना हो तो आइए उर्गम घाटी

दीपक बेंजवाल

बद्रीनाथ राजमार्ग पर हेलंग से कल्प गंगा के उदगम तक फैली उर्गम घाटी उत्तराखण्ड की बेहद खूबसूरत घाटियो मे से एक है। प्रकृति के ढेरो नेमतो से सजी c मे पहाड़ की कला संस्कृति और शिल्प के भी खूबसूरत दर्शन होते है। घाटी मे सल्ला, बड़गिन्डा, उर्गम, देवग्राम, भेटा, भर्की अरोसी, पिलखी वासा, रौता सहित एक दर्जन से अधिक छोटे बड़े गाँव है।

प्राचीन आख्यानो के अनुसार महर्षि उर्ग ने इस स्थान पर तपस्या की थी, जिससे इस स्थान का नाम उर्गम हुआ। समुद्रतल से 2080, मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह स्थान शांत एव प्राकर्तिक आध्यात्मिक दृष्टि से महतवपूर्ण है। बांसा गाव में मह्रिषी उर्गव/उर्वा की तपस्थली है। देव ग्राम से 2 किलो मीटर की चडाई पार करके हुए इस स्थल पर पंहुचा जा सकता है। मान्यता है कि इस स्थान से नर नारायण ने इन्द्र का मान मर्दन हेतु स्वर्ग की मेनका आदि अफसराओ में अति सुंदर उर्वशी का आह्वान कर इन्द्र को उपहार रूप में भेजा था। 1803 इस क्षेत्र में आये भूकंप के दौरान यह आश्रम ध्वस्त हो गया था। अब इसे नया रूप दे दिया गया है।

कल्पेश्वर मन्दिर उत्तराखण्ड के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मन्दिर उर्गम घाटी में समुद्र तल से लगभग 2134 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस मन्दिर में ‘जटा’ या हिन्दू धर्म में मान्य त्रिदेवों में से एक भगवान शिव जटाओ की पूजा की जाती है। कल्पेश्वर मन्दिर ‘पंचकेदार’ तीर्थ यात्रा में पाँचवें स्थान पर आता है। वर्ष के किसी भी समय यहाँ का दौरा किया जा सकता है। सनातन हिन्दू संस्कृति के शाश्वत संदेश के प्रतीक रूप मे स्थित है। कल्पेश्वर मन्दिर के पुजारी देवग्राम के नेगी राजपूत है। जो प्रातःकाल देवग्राम के गौरा मंदिर की पूजा करने के उपरात कल्पेश्वर की पूजा करने जाते है। माँ गौरा हर बारह वर्ष बाद देवरा पर भी जाती है। प्रत्येक चैत्र मास मे गौरा बड़गिडा स्थित आदिकेदार मंदिर की परिक्रमा करने भी निकलती है तब इस स्थान पर भव्य मेला आयोजित होता है।

 

मुख्य मन्दिर ‘अनादिनाथ कल्पेश्वर महादेव’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस मन्दिर के समीप एक ‘कलेवरकुंड’ है। इस कुंड का पानी सदैव स्वच्छ रहता है और यात्री लोग यहाँ से जल ग्रहण करते हैं। इस पवित्र जल को पी कर अनेक व्याधियों से मुक्ति पाते हैं। यहाँ साधु लोग भगवान शिव को अर्घ्य देने के लिए इस पवित्र जल का उपयोग करते हैं तथा पूर्व प्रण के अनुसार तपस्या भी करते हैं। कल्पनाथ मंदिर से 4 किमी का सफर तय कर फ्यूलानारायण पहुचा जाता है, जहा शंकराचार्यकलीन प्राचीन मंदिर है।उर्गम घाटी के अंतिम गाव बासा से कूछ दूरी पर प्रसिद्ध श्री वंशी नारायण मंदिर 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है! 12000, फीट की ऊँचाई पर इस स्थान पर पहुचाने के लिए बांसा से मुल्ला/तप्पड (2 किलोमीटर) कुड्मुला (1 किलोमीटर) बडजिखाल (2 किलोमीटर), नक्चुना (2 किलोमीटर) होते हुए वंशी नारायण मंदिर (3 किलोमीटर) पंहुचा जा सकता है! बांसा के वंशी नारायण, जंगल वाले मार्ग है जो विभिन्न जड़ी बूटियों, भोज पत्र के वक्षो, सिमरु के अनेक प्रजाति के झाडी नुमा वृक्षों जिनमे सफ़ेद, हल्का बैगनी रंग के फूल दिखाई पड़ते है! जो देखने में बुराश के फूल की तरह दिखाई देता है!

उर्गम गाव के श्री वंशी नारायण (10 किलोमीटर) की यह यात्रा खड़ी चडाई युक्त है! मंदिर तक पहुचने के लिए बांसा से दो पहाड़ की चोटियों पार कर तीसरे पहाड़ ऊँचाई तक पहुचना होता है! इस मार्ग में स्थान स्थान पर कुछ विशिष्ट प्रकार पक्षियों का कलरव इस शांत वातावरण में सुमधुर संगीत प्रतुत करता है! बांसा के बाद 10 किलोमीटर के भीतर न ही कोई गाव और न कोई आबादी, सिर्फ प्रकृति के सानिध्य में चलते हुए पक्षियों का कलरव मात्र सुनायी पड़ता है!

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