उत्तराखंड

जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर उत्तराखंड में सियासत शुरू, भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने..

जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर उत्तराखंड में सियासत शुरू, भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने..

उत्तराखंड: उत्तर प्रदेश की तर्ज पर अब उत्तराखंड में भी जनसंख्या नियंत्रण कानून पर प्रदेश सरकार विचार कर सकती है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इसके संकेत दे चुके हैं। अभी सरकार ने इस कानून पर विचार करना शुरू भी नहीं किया है, लेकिन इसे लेकर सियासत गरमा उठी है। कांग्रेस ने इसे भाजपा की ध्रुवीकरण की सियासत करार दिया है। तो वही भाजपा का कहना है कि राष्ट्र और राज्य हित में जो भी कानून जरूरी हों, वो बनने चाहिए और लागू होने चाहिए।

 

निकायों और पंचायतों में पहले से लागू है कानून..

उत्तराखंड की शहरी निकायों और त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं में जनसंख्या नियंत्रण का कानून लागू है। इस कानून के तहत दो से अधिक संतान होने पर जनप्रतिनिधि अपनी कुर्सी गंवा सकते हैं। हालांकि इस कानून को सिर्फ पंचायती राज संस्थाओं और निकायों पर लागू करने के खिलाफ जनप्रतिनिधियों में असंतोष भी है। जिला पंचायत सदस्य अमेंद्र सिह बिष्ट जो आम आदमी पार्टी के नेता हैं, उनका कहना हैं कि जनसंख्या नियंत्रण का कानून व्यापक रूप में लागू होना चाहिए।

 

केवल पंचायत या शहरी निकायों के जनप्रतिनिधियों तक सीमित रखने के बजाय केंद्र सरकार को विधायिका पर भी यह कानून लागू करना चाहिए। सरकारी नौकरियों और सरकारी योजनाओं की पात्रता में जनसंख्या नियंत्रण कानून को शामिल करके इसे ज्यादा प्रभावी बनाया जा सकता है।

 

जनसंख्या नियंत्रण को लेकर सरकारी तंत्र में ही एक विरोधाभास भी देखने को मिली है। एक तरफ राज्य में जनसंख्या नियंत्रण कानून पर विचार करने के संकेत दिए जा रहे हैं, तो दूसरी तरफ सरकारी कर्मचारियों को सीमित परिवार के लिए प्रोत्साहित करने वाला परिवार नियोजन भत्ता खत्म कर दिया हैं।

 

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रदेश कार्यकारी महामंत्री अरुण पांडेय का कहना हैं कि केंद्र ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत परिवार नियोजन भत्ता समाप्त किया और यूपी और उत्तराखंड राज्यों की सरकारों ने इसका अनुसरण करते हुए इसे समाप्त कर दिया। परिवार नियोजन भत्ते के तौर पर कर्मचारियों को ग्रेड पे का 10 प्रतिशत दिया जाता था।

 

उत्तराखंड में जनसंख्या नियंत्रण कानून की आवश्यकता नहीं है।  ये भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति है। इसके लिए भाजपा यह नए राग को छेड़ रही है। उसे महंगाई, बेरोजगारी, खराब स्वास्थ्य सिस्टम की चिंता करनी चाहिए। सिर्फ त्रिस्तरीय पंचायतों या शहरी निकायों की ही क्यों होनी चाहिए। इसके दायरे विधायिका को क्यों नहीं आना चाहिए? लेकिन यह विषय राज्य का नहीं केंद्र का है।

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