चमोली आपदा: 20 साल में दो बार आपदा झेल चुकी नीती घाटी..
उत्तराखंड: चीन सीमा क्षेत्र में स्थित नीती घाटी गांव के ग्रामीण बीस साल में दो बार आपदा झेल चुके हैं। इस आपदा में मलारी हाईवे का पुल दो किमी तक बह गया था और लोग घरों में कैद हो गए थे। इसके साथ ही लोगों की कृषि भूमि भी बह गई थी। उस समय भी सेना और आईटीबीपी के जवान ग्रामीणों की जीवनरक्षक बनकर आई थी।
नीती घाटी चारों ओर से पर्वत की चोटियों और उच्च हिमालय क्षेत्र से घिरी है। घाटी में बीस वर्ष पहले भी ग्लेशियर टूटने की घटना हुई थी। वर्ष 2000 में तोलमा गांव के ठीक सामने ग्लेशियर टूटने से सुरांईथोटा में मलारी हाईवे का पुल बह गया था। उस समय भी सेना और आईटीबीपी ग्रामीणों की रक्षा के लिए आगे आई थी। आईटीबीपी ने ग्रामीणों के साथ उनके मवेशियों को भी हेली रेस्क्यू से जोशीमठ पहुंचाया था।
वर्ष 2005 में द्रोणागिरी गांव के समीप दोगड़ी ग्लेशियर के टूटने से मलारी हाईवे करीब दो किलोमीटर तक बह गया था, जिससे ग्रामीण करीब डेढ़ माह तक अपने घरों में ही कैद होकर रह गए थे। तब यहां सड़क की नई हिल कटिंग कर वाहनों की आवाजाही शुरू कराई गई थी। अब सात फरवरी को ऋषि गंगा में आए सैलाब के कारण नीती घाटी के 13 गांवों के ग्रामीण फिर अपने गांवों में ही कैद होकर रह गए हैं।
नीती घाटी में भोटिया जनजाति के ग्रामीण रहते हैं। यहां शीतकाल में छह माह तक बर्फबारी और बारिश रहती है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अधिकांश गांव बर्फ के आगोश में रहते हैं। बहुत ज्यादा ठंड में भी ग्रामीणों की दिनचर्या गांवों में ही व्यतीत होती है। ग्रामीण कड़ाके की ठंड से बचने के लिए ग्रीष्मकाल में ही जंगलों से सूखी लकड़ी और खाद्यान्न सामग्री इकट्ठा कर लेते हैं।
ग्रामीणों का सेना के साथ है बेहतर समन्वय..
चीन सीमा क्षेत्र होने के कारण नीती घाटी के ग्रामीणों का सेना और आईटीबीपी के जवानों के साथ बेहतर समन्वय रहता है। किसी भी आपदा में सैन्य बल ग्रामीणों की हरसंभव मदद के लिए आगे रहता है। ग्रामीण भी सेना को हर तरह की मदद के लिए तैयार रहते हैं।