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लोगों की जान कीमती है या चुनाव..

लोगों की जान

लोगों की जान कीमती है या चुनाव..

 

देश- विदेश: कोरोना वायरस का नया वैरिएंट ओमिक्रॉन भारत के कई राज्यों में तेजी से फैल रहा है. भारत कोरोना की तीसरी लहर का सामना कर रहा है. लेकिन तमाम पार्टियों के बड़े नेता चुनावी रैलियां करने में व्यस्त हैं. वे ज्यादा भीड़ चाहते हैं और अब तक चुनाव आयोग ने इस पर कोई सख्ती नहीं दिखाई है स्कूल बंद हो रहे हैं. वीकेंड कर्फ्यू लग रहा है.

रेस्तरां और बार फिर से आधी क्षमता पर लौट रहे हैं. सिनेमा हॉलों पर भी सख्ती की जा रही है. कुछ राज्यों में बिना मास्क पकड़े जाने पर चालान भी हो रहे हैं. दूसरी तरफ भारत के पांच राज्यों में चुनाव प्रचार और रैलियां जोरों पर हैं. उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं.

बीते एक हफ्ते में भारत में कोरोना के मामले चार गुना बढ़े हैं. केरल और महाराष्ट्र के अस्पतालों में फिर से मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है. भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई में एक बार फिर रिकॉर्ड संख्या में मामले आ रहे हैं. 8 जनवरी 2021 को भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि बीते 24 घंटे में 1,41,986 से ज्यादा मामले सामने आए हैं. हेल्थ एक्सपर्ट डॉक्टर जॉन कहते हैं,

“चुनावी रैलियों की वजह से साल के शुरू बनने वाली संक्रमण की चेन खत्म होने के लिए कई महीने लेगी” इन चिंताओं के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव चुनावी रैलियां करने में व्यस्त हैं. रैलियों को दौरान कई नेता खुद मास्क नहीं पहनते हैं. आलोचकों की नजर में यूपी की राजनीति में महत्वहीन मानी जाने वाली कांग्रेस का कहना है कि अब वह उत्तर प्रदेश में राजनीतिक रैलियां बंद करने जा रही है.

पार्टी आगे वर्चुअल कैंपेन करेगी. बीजेपी भी यही राह ले रही है. लेकिन क्या सारे राजनीतिक दल ऐसा करेंगे, ये साफ नहीं है. चुनाव आयोग से कितनी उम्मीद कोरोना वायरस के खिलाफ बनी केंद्र सरकार की रिपॉन्स टीम में शामिल डॉक्टर वीके पॉल मानते हैं कि ओमिक्रॉन हेल्थकेयर सिस्टम पर भारी पड़ सकता है.

पॉल के मुताबिक चुनावी गतिविधियों और रैलियों पर नियंत्रण लगाने का काम चुनाव आयोग को करना चाहिए. वहीं चुनाव आयोग का कहना है कि राजनीतिक दल रैलियां करना चाहते हैं. भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी कहते हैं कि अगर चुनाव आयोग चाहे तो चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध या पाबंदियां लग सकती हैं, लेकिन “उनमें इच्छाशक्ति की कमी है” 2021 जैसा हाल न हो कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट ने 2021 में भारत में भारी तबाही मचाई थी. जनवरी से जून तक दक्षिण भारत से उत्तर भारत तक कोरोना ऐसा फैला कि भारत दुनिया में कोरोना की सबसे बुरी मार झेलने वाले देशों में शामिल हो गया. तब बढ़ते दबाव के कारण चुनाव अभियान के बीच में कुछ राजनीतिक पार्टियों ने अपनी रैलियां रद्द कीं. अब फिर वैसी ही परिस्थितियां हैं.

उत्तर प्रदेश जैसे अहम राज्य समेत पांच प्रांतों में चुनाव हैं और कोरोना भी तेजी से फैल रहा है. कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि पिछले साल की सीख भुला दी गई है. भारतीय विषाणु विज्ञानी डॉक्टर टी जैकब जॉन कहते हैं, “बहुत तेजी से फैलने वाला ओमिक्रॉन वैरिएंट पीछा करता है और आपको जकड़ लेता है. लेकिन हमारे नेता बांहें फैलाकर इसका स्वागत कर रहे हैं” डॉक्टर जैकब आशंका बता रहे हैं कि भारत में इस साल भी 2021 की तरह हाहाकार मच सकता है. भारत में बीते साल महामारी के पीक के दौरान हर दिन 4,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो रही थी.

मार्च और मई 2021 के बीच कम से कम दो लाख लोगों की मौत दर्ज की गई. कई जगहों पर शमशान घाटों और कब्रिस्तानों में कतारें लग गई. दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, अहमदाबाद और भोपाल जैसे बड़े शहरों में भी लोग ऑक्सीजन के लिए छटपटाने लगे. भारत में बनी ओमिक्रॉन का पता लगाने वाली जांच किट ओमिक्रॉन के खतरे के बीच भारत ने शुरु किया 15-18 साल के बच्चों का वैक्सीनेशन स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक, 2022 में हालात काफी हद तक अलग हैं.

बीते एक साल में भारत में ज्यादातर लोगों को कोविड के टीके लग चुके हैं. कुछ राज्यों में तो 80 फीसदी से ज्यादा लोग दो डोज ले चुके हैं और अब तीसरे बूस्टर डोज की शुरुआत हो रही है. स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि अब तक यह देखा गया है कि ओमिक्रॉन से मौतें कम हो रही हैं और इसके ज्यादातर केस असिम्टोमैटिक हैं. लेकिन अधिकारी ये भी चेतावनी दे रहे हैं कि ओमिक्रॉन को हल्के में लेना भारी भूल होगी. लचर स्वास्थ्य सेवाओं वाले भारत में हल्का ओमिक्रॉन भी तबाही मचा सकता है.

 

 

 

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