संजय चौहान।
बागेश्वर : बेहतर भविष्य और मूलभूत सुविधाओं के आभाव में उत्तराखंड के हिमालय के समीप बसे गाँव धीरे धीरे खाली हो रहें हैं। लोग अपने इन पुश्तैनी घर गाँव को छोड़कर शहरों की ओर बढ़ चलें हैं। लेकिन गाँवों के खाली होने पर सबसे ज्यादा नुकसान सांस्कृतिक विरासत को हो रहा है। ऐसा ही एक गाँव हैं उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद का खाती गाँव। पथारोहियों के रोमांच का सबसे शानदार ट्रैक पिंडारी ग्लेशियर मार्ग पर खाती गाँव बागेश्वर जनपद का अंतिम गाँव है। प्रकृति नें इस गाँव पर अपना सबकुछ न्यौछावर किया है। परंतु आजादी के 70 साल बाद भी ये गाँव विकास से वंचित है। बेहद विपरीत परिस्थितियों में यहाँ के वाशिंदो नें कभी हार नहीं मानी। बरसों से अपनी लोकसंस्कृति, सांस्कृतिक विरासत और वास्तुकला को संजोकर रखा है यहाँ के लोगों नें।
आजकल हिमालय का ये अंतिम गांव लोगो के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है। विगत एक महीने से गांव में बाहर से आये लोगों का जमवाड़ा लगा है। लोगों की चहलकदमी से गांव में पसरा सन्नाटा टूट गया है। क्योंकि गांव में इन दिनों देश के विभिन्न हिस्सों से आये युवा और बेहतरीन चित्रकारों की एक पूरी टीम गांव के मकानों की दीवारों पर गांव की पुरानी यादों को चित्रों से उकेर रहें हैं। और इस मिशन को अंजाम दिया है चम्बा ब्लाक के कोट गांव निवासी होनहार युवा दीपक रमोला के “प्रोजेक्ट फ्यूल” के द्वितीय एडिसन और हंस फाउंडेशन की जुगलबंदी ने। जिसके तहत गांव के मकानों की दीवारों पर चित्रकारी की जा रही है। चित्रों के द्वारा गांव के जीवन के पाठ का दस्तावेजीकरण किया जा रहा हैं। यह उत्तराखंड का दूसरा गांव है जहाँ इस तरह की पहल की जा रही है। इससे पहले टिहरी के सौड गाँव में भी सफल प्रयास किया जा चुका है। जिसके लिए “प्रोजेक्ट फ्यूल” के दीपक रमोला को प्रख्यात बाॅलीबुड एक्टर शाहरुख खान द्वारा एक कार्यक्रम में उनके प्रयास कि भूरी भूरी सराहना की गई तो वहीं एनडीटीवी न्यूज चैनल द्वारा विशेष एपीसोड में सौड गाँव पर प्रसारित किया गया।
“प्रोजेक्ट फ्यूल” और हंस फांउडेशन के सहयोग से खाती गांव की मकानों पर गांव की पुरानी यादों को चित्रों के माध्यम से उकेरा गया है। जिसमे एक दिवार पर गाँव में परंपरागत रीति रिवाज के तहत बारात में दुल्हन को ले जाते हुये दूल्हे की तस्वीर को उकेरा है और रंगों के जरिए उस दृश्य को जींवित कर दिया है। जबकि एक मकान की दीवार पर परंपरागत फूलदेई त्यौहार के दृश्य को उकेरा है। वहीं एक अन्य मकान की तस्वीर में गाँव के लोगों का जंगली जानवरों के साथ संघर्ष को जीवंत किया है। कुमाऊँ की वैभवशाली और लोकसंस्कृति की पहचान ऐपण कला को भी एक मकान की दीवारों रंगो के द्वारा जीवंत किया है। कुल मिलाकर इन चित्रों के माध्यम से गाँव के पौराणिक इतिहास, जीवन शैली, दिनचर्या और कार्यों को अंगित किया गया है, जिससे पता चल सके की पहले गांव की तस्वीर क्या थी। और अब क्या है।
विगत 20 बरसों से हिमालय के गांवो की समस्याओं से भलीभाँति वाकिफ और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में निरंतर भागेदारी करती ज्योत्सना खत्री Jyotsana Pradhan Khatri कहती हैं कि ‘’प्रोजेक्ट फ्यूल’’ के तहत खाती गाँव के मकानों की दीवारों पर गांव की पुरानी यादों को संजोया जा रहा है तो वो अपने आप में एक अनोखी पहल है। गांव के हर मकान की दीवार गांव के इतिहास, लोकजीवन, लोकसंस्कृति, विरासत को चित्रों के माध्यम से खुद बंया कर रही है। इससे न केवल ये पहल गाँव छोड़ चुके लोगो को वापस गांव लौटने को प्रेरित करेगी अपितु विलेज टूरिज्म को भी बढ़ावा मिलेगा और देश विदेश से पिंडारी ग्लेशियर आने वाले पर्यटकों को भी गाँव की जानकारी मिल सकेगी। इस तरह के अभिनव प्रयास जरुर पलायन के कारण खाली हो चुके गांव के लिए वरदान साबित हो सकतें है। दीपक रमोला और उनकी पूरी टीम को इस अभिनव प्रयास के लिए ढेरो शुभकामानाएं।
आपको बताते चलें की बहुमुखी प्रतिभा के धनी दीपक रमोला मुंबई विश्वविद्यालय से मास मीडिया स्टडीज में एक टेड स्पीकर, एक शिक्षक, एक लेखक, अभिनेता, गीतकार और एक पत्रकार है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, कैसर थिएटर प्रोडक्शंस और नो लाइसेंस के साथ काम करने के बाद दीपक ने थियेटर में अनुभव हासिल किया है और प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हाउस (गढ़वाल पोस्ट और सीएनएन आईबीएन) दोनों के साथ काम भी किया है। एक अभिनेता के रूप में दीपक ने राजश्री प्रोडक्शन के “आइ लाइ लाइफ में” काम किया है। जबकि सलमान खान के साथ “बॉडीगार्ड” में और धारावाहिक “ससुराल सिमर का” में भी काम किया है। दीपक नें हिंदी फिल्म मांझी सहित कई फिल्मो के लिए गीत में लिखे हैं। दीपक को ”प्रोजेक्ट फ्यूल” के लिए विचार और प्रेरणा अपनी मां से मिली थी। आज उनकी प्रेरणा से दीपक का ‘प्रोजेक्ट फ्यूल’ पूरे देश में अपनी चमक बिखेर रहा है।
वास्तव में दीपक के ‘’प्रोजेक्ट फ्यूल’’ के तहत सौड गांव के बाद हिमालय के अंतिम गाँव खाती के मकानों की दीवारों पर गांव के लोकसंस्कृति, लोकजीवन, सांस्कृतिक विरासत और इतिहास को चित्रों के माध्यम से संजोना अपने आप में एक अभिनव प्रयास और अनुकरणीय कार्य है। दीपक ने इस प्रोजेक्ट के जरिये कार्य करके दिखाया है की यदि कार्य करने की ललक, जूनून, और जज्बा हो तो कोई भी कार्य कठिन नहीं होता है। इस लेख के जरिये दीपक रमोला, हंस फाउंडेशन और उनकी पूरी टीम को ढेरों बधाईयाँ आशा करतें हैं की सौड गांव से शुरू हुआ ये अभियान हिमालय के अंतिम गाँव खाती से होते हुये अन्य गाँव तक पहुँचे और रिवर्स माईग्रेसन के लिये मील का पत्थर साबित हो।
अगर आपके पास भी समय हो तो एक बार जरूर जाइये हिमालय के अंतिम गाँव पिंडारी ग्लेशियर के निकट खाती गाँव —-!!