उत्तराखंड

केदारनाथ में लगातार तीन दिनों से हो रही बारिश , तीर्थपुरोहित धरने पर डटे हैं आज एक महीना पूरा

बारिश से धाम में चल रहे पुनर्निर्माण कार्यो की गति भी हुई धीमी..

बारिश और ठंड में भी धरने पर डटे हैं केदारनाथ में तीर्थपुरोहित..

तीर्थ पुरोहितों के आंदोलन को हुआ पूरा एक महीना..

देवस्थानम बोर्ड के विरोध में नारेबाजी के साथ दे रहे धरना..

रुद्रप्रयाग: विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम में बीते तीन दिनों से लगातार बारिश हो रही है। बारिश के चलते केदारनाथ धाम में काफी ठंड बढ़ गई है। इसके अलावा धाम में चल रहे पुनर्निर्माण कार्यो की गति भी बारिश ने धीमी कर दी है। हालांकि धाम में यात्रियों की आवाजाही पर रोक है, लेकिन धाम में रह रहे जवानों, मजदूरों, पुजारियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर केदारनाथ में देवस्थानम बोर्ड के विरोध में तीर्थपुरोहितों के आंदोलन को एक माह का समय हो गया है। बारिश और ठंड के बावजूद तीर्थ पुरोहित धरने पर डटे हुए हैं और मंदिर परिसर में नारेबाजी के साथ धरना देते हुए सरकार पर आंदोलन की उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं।

बता दें कि केदारनाथ धाम में बीते तीन दिनों से लगातार बारिश जारी है। बारिश होने पर केदारनगरी पूरी तरह से घने कोहरे में लिपट गयी है। लगातार बारिश होने से धाम में चल रहे पुनर्निर्माण कार्य भी धीमे हो गये हैं। इन दिनों धाम में द्वितीय चरण के पुनर्निर्माण कार्य चल रहे हैं, लेकिन पुनर्निर्माण कार्यों को कराने में बारिश बाधक बन गई है। इसके अलावा धाम में बारिश के बाद ठंड भी बढ़ गई है। हालांकि कोरोना के चलते केदारनाथ यात्रा बंद होने से केदारनगरी में दूर-दूर तक कोई भी नहीं दिखाई दे रहा है। इन दिनों धाम में सिर्फ मंदिर के पुजारी, कुछ तीर्थ पुरोहित, मजदूर और सुरक्षा जवान मौजूद हैं।

 

वहीं केदारनाथ में बारिश और ठंड में भी तीर्थपुरोहित धरने पर डटे हुए हैं। धाम में हो रही बारिश के बावजूद तीर्थपुरोहित मंदिर परिसर में नारेबाजी के साथ सरकार से बोर्ड को भंग करने की मांग कर रहे हैं। आचार्य संजय तिवारी एवं नवीन शुक्ला ने कहा कि आंदोलन को एक माह का समय हो गया है, मगर अभी तक सरकार के किसी भी सक्षम अधिकारी ने उनसे बातचीत करना जरूरी नहीं समझा है। उन्होंने कहा कि देवस्थानम बोर्ड के सहारे सरकार उत्तराखंड के चारधाम पर कब्जा कर यहां की पूजा पद्धति को बदलना चाहती है। बोर्ड में हक-हकूकधारियों व तीर्थपुरोहितों के हकों की अनदेखी की गई है, जिस कारण उन्हें यह किसी भी स्थिति में मंजूर नहीं है।

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