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उत्तराखंड के लोकपर्व ‘घुघुतिया’ के अतिथि कौव्वों पर संकट..

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उत्तराखंड के लोकपर्व ‘घुघुतिया’ के अतिथि कौव्वों पर संकट..

उत्तराखंड: उत्तराखंड में मकर संक्रांति पर मनाये जाने वाले लोकपर्व घुघुतिया के मुख्य अतिथि कौव्वे संकट में हैं। शुक्रवार को कुमाऊं के तमाम हिस्सों में लोग भोग लगाने के लिए कौव्वों को बुलाते रहे लेकिन गिनती के कौव्वे नजर आए। पक्षी विशेषज्ञ मानते हैं कि शिकारी पक्षी माने जाने वाले गिद्ध के बाद अब कौव्वे भारी संकट में हैं।

पर्यावरणविद्धों का मानना है कि ज्यादा चिंताजनक बात ये है कि बीज खाने वाले संकटग्रस्त पक्षियों को बचाने के लिए तो पहल की जा रही है लेकिन शिकारी पक्षियों की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। लोकपर्व घुघुतिया के साथ उत्तराखंड में तमाम मान्यताएं जुड़ी हैं। सबसे खास है पौष महीने की अंतिम रात को पकवान बनाकर माघ की पहली सुबह कौव्वों को खिलाने की परंपरा।

लेकिन बीते कुछ सालों से कव्वों की कमी से अनुष्ठान पूरा नहीं हो पा रहा है। इसके पीछे कौव्वों की गिरती संख्या बड़ी वजह है। सेंटर फॉर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च देहरादून में डायरेक्टर डॉ. विशाल सिंह कहते हैं ये संकट पिछले पांच दशकों से पर्यावरण, मौसम और रहन-सहन में आ रहे बदलावों की वजह से उपजा है। यही वजह है पिछले एक दशक में ही पक्षियों की कई प्रजातियां गायब हो गई हैं।

मौसम में बदलाव से कौव्वों की प्रजनन क्षमता गिरी..

पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार कौव्वे जनवरी से मार्च अंत तक अंडे देते हैं। लेकिन बीते दशकों इन तीन महीनों के मौसम में बड़ा बदलावा आया है। कभी अत्यधिक ठंड तो कभी तेज गर्मी हो रही है। इससे कौव्वों के 90 फीसदी तक अंडे बर्बाद हो रहे हैं। इस कारण कौव्वों की संख्या सबसे ज्यादा गिरी है। इसके अलावा जंगल कटने से भी संकट बढ़ा है।

भोग लगाने बुलाए कौव्वे, पहुंचे बंदर..

जंगलों में गड़बड़ा रही भोजन शृंखला का असर शहरों पर सालों से दिख रहा है। जंगलों में फल-फूल खत्म होने के कारण बंदर आबादी की तरफ भाग रहे हैं। शुक्रवार को भी घुघुतिया पर लोगों ने भोग लगाने के लिए कौव्वों को बुलाया तो बंदर चले आए। कई जगहों पर बंदर ही भोग खा गए।

गिद्धों के बाद कौव्वों के लिए काल बन रहा डिक्लोफिनेक..

डॉ. विशाल कहते हैं डिक्लोफिनेक गिद्धों के बाद कौव्वों के लिए काल बन रहा है। पालतू जानवर गाय, भैंस आदि को प्रसव के दौरान दर्द निवारण के लिए डिक्लोफिनेक दवा दी जाती है। इन जानवरों के मरने के बाद इन्हें जंगलों में फेंक दिया जाता है। यह भी कौव्वों के लिए बड़ा संकट बन रहा है।

कौव्वों के साथ अन्य कई पक्षियों की प्रजाति इस समय संकट में है। बदलता मौसम और कैमिकल वेस्ट इसकी बड़ी वजह है। कौव्वों की प्रजनन क्षमता घटने से भी संकट बढ़ा है। बीज खाने वाले पक्षियों के साथ ही शिकारी पक्षियों को बचाने की पहल तेज करनी होगी।

 

 

 

 

 

 

 

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