उत्तराखंड में चारधाम यात्रा के दौरान वाहनों का बढ़ता दबाव और शहरों में लगने वाले जाम से निपटने के लिए बाईपास योजनाएं बनाई गई थीं, लेकिन ये योजनाएं अभी भी सरकारी प्रक्रियाओं में उलझी हुई हैं। खासकर ऋषिकेश बाईपास का खाका 12 साल पहले खींचा गया था, लेकिन तकनीकी और प्रशासनिक अड़चनों के चलते अब तक यह योजना धरातल पर नहीं उतर सकी है।
प्रमुख बाईपास योजनाएं:
. ऋषिकेश बाईपास: योजना एक दशक से अधिक पुरानी, लेकिन तकनीकी कारणों से काम शुरू नहीं हो पाया।
. श्रीनगर, चंपावत, लोहाघाट, पिथौरागढ़ बाईपास: निर्माण से पहले कई अनुमतियां बाकी हैं, जिससे काम में देरी हो रही है।
वर्तमान स्थिति:
. 17 किमी लंबी बाईपास की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) पिछले साल सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को भेजी गई थी।
. अब इस पर स्टैंडिंग फाइनेंस कमेटी की बैठक होनी है।
. मंजूरी मिलने के बाद वन भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू होगी।
. वन भूमि उपलब्ध होने के बाद ही निर्माण कार्य प्रारंभ हो सकेगा।
बाईपास योजनाओं का महत्व:
. चारधाम यात्रा के दौरान यातायात सुगम होगा।
. शहरों में जाम की समस्या से राहत मिलेगी, विशेषकर ऋषिकेश में।
. तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के अनुभव को बेहतर बनाएगी।
आगे की चुनौतियां:
. प्रशासनिक प्रक्रियाओं में तेजी लाने की आवश्यकता है।
. वन विभाग और सड़क परिवहन मंत्रालय के बीच समन्वय आवश्यक।
. भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय स्वीकृतियां भी महत्वपूर्ण हैं।
बाईपास योजनाओं का धरातल पर उतरना चारधाम यात्रा को सुगम बनाने के साथ ही उत्तराखंड के शहरों में ट्रैफिक की समस्याओं को कम करेगा। हालांकि, इसके लिए सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय और प्रक्रियाओं में तेजी की आवश्यकता है, ताकि यह महत्वाकांक्षी परियोजना जल्द ही साकार हो सके।
