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यहां भगवान शिव ने पांडवों को वृद्ध व्यक्ति के रूप में दिए थे दर्शन..

यहां भगवान शिव ने पांडवों को वृद्ध व्यक्ति के रूप में दिए थे दर्शन..

 

 

 

उत्तराखंड: बूढ़ाकेदार टिहरी जनपद का प्रसिद्ध धाम है। दो नदियों बालगंगा व धर्म गंगा के मध्य यह धाम स्थित है। यहां पर दोनों नदियों का संगम भी है। यह मंदिर टिहरी गढ़वाल के थाती कठूड़ नाम पर स्थित है। टिहरी से लगभग 62 किमी की दूरी पर स्थित है ये मंदिर। इस परम धाम के दर्शन करने के बाद भक्तगण परमसुख की अनुभूति करते है। बूढ़ा केदार मंदिर का उत्तराखंड के चार धामों जैसा ही महत्व है यह हिन्दुओं का पवित्र धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।

 

बूढ़ा केदार का अपना विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यहाँ स्वयं निर्मित शिवलिंग है जिसकी गहराई अभी तक कोई नहीं नाप पाया है। इस शिवलिंग के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से तीर्थयात्री यहां पहुंचते है क्योंकि कहा जाता है कि इस लिंग के दर्शन करने से सुखद फल की प्राप्ति होती है।

 

एक समय में यहां पर पांच नदियों बाल गंगा, धर्म गंगा, शिवगंगा, मेनका गंगा और मतांग गंगा आकर मिलती थी लेकिन अब यहां पर दो गंगा का संगम है जहां स्नान करना पवित्र माना जाता है। बद्री केदार, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के अलावा बूढ़ा केदार को पांचवा परमधाम माना जाता है। कहा जाता है कि इन चारों पवित्र धामों की यात्रा के दौरान बीच में बूढ़ा केदार धाम की यात्रा करने से पुण्य प्राप्त होता है। बूढ़ा केदार से महासर ताल, सहस्त्र ताल, माझाड़ा ताल, जराल ताल, बालखिलये आश्रम, भैरवचट्टी, हटकुड़ी होते हुए त्रिजुगीनारायण और केदारनाथ की पैदल यात्रा की जाती है।

 

इस स्थान का नाम बूढ़ा केदार क्यों पड़ा..

आपको बता दे कि बूढ़ा का मतलब यानी वृद्ध। जबकि केदार भगवान शिव के कई नामों में से एक नाम है कहने का मतलब है कि बूढ़ा केदार मंदिर में भगवान शिव अपने वृद्ध रूप में विराजमान है यहां पर भगवान शिव ने पांडवों को वृद्ध के रूप के दर्शन दिए थे। स्कंद पुराण के केदारखंड में भगवान बूढ़ा केदार का जिक्र सोमेश्वर महादेव के रूप में किया गया है जिसमें कहा गया है भगवान शिव बाल गंगा और धर्म गंगा नदियों के संगम पर पांडवों को वृद्ध रूप में दर्शन देकर अंतर्ध्यान हो गए थे। इस तरह से वृद्ध ब्राह्मण में दर्शन देने के कारण सदाशिव भोलेनाथ वृद्ध केदारेश्वर या बूढ़ा केदारनाथ कहलाने लगे।

बूढ़ा केदार से जुड़ी पौराणिक कथा..

पांडवों पर अपने कुलवंशियों की हत्या का पाप लगा था इस पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने का सुझाव दिया। पांडवों द्वारा भगवान शिव की कई उपासना करने के बाद भी भगवान शिव पांडवों के समक्ष नही जाना चाहते थे क्योंकि वह पांडवों से नाराज थे, इसलिए भगवान शिव ने वृद्ध भैंसे का रूप धारण कर लिया और हिमालय की घाटियों में अन्य जानवरों के बीच छुप गए लेकिन भीम भगवान शिव के इस रूप को पहचान चुका था। जैसे ही भीम ने भगवान शिव के रूप को पकड़ना चाहा तो भगवान शिव का यह रूप कई भागों में विभाजित हो गया और आखिर में भगवान शिव ने इस स्थान पर वृद्ध रूप में दर्शन दिए और यहां पर लिंग का स्वरूप धारण कर लिया।

 

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार पांचो पांडव और द्रोपति जब स्वर्गारोहण के लिए निकले तो उन्होंने बालखिलये ऋषि का आशीर्वाद लिया। बालखिलये ऋषि ने पांडवों को बताया कि एक वृद्ध पांच नदियों के संगम पर ध्यान मग्न है वह वृद्ध कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव थे, जब पांडव वहां पहुंचे तो वह वृद्ध उन्हें दर्शन देने के बाद शिवलिंग के पीछे छुपकर अंतर्ध्यान हो गए बाद में इस शिवलिंग के चारों तरफ मंदिर का निर्माण किया गया।

 

बूढ़ा केदार मंदिर की संरचना..

मंदिर का प्रवेश द्वार लकड़ी और पत्थर पर की गई नकाशी का एक शानदार नमूना है। शिवलिंग पर भगवान शिव के अलावा माता पार्वती, भगवान गणेश, भगवान गणेश के वाहन मूषक, पांचो पांडव, द्रौपदी, हनुमान जी की आकृतियां बनी है। इस लिंग को उत्तरी भारत में सबसे बड़ा लिंग माना जाता है। मंदिर के बगल में ही भू-शक्ति, आकाश शक्ति और पाताल शक्ति के रूप में विशाल त्रिशूल विराजमान है। बूढ़ा केदार मंदिर के पुजारी नाथ संप्रदाय के होते है, पुजारी ब्राह्मण नहीं होते बल्कि नाथ जाति के राजपूत होते है। नाथ जाति के भी केवल वही लोग यहां पूजा करते है जिनके कान छिदे हो। बूढ़ा केदार में हर साल मार्गशीर्ष माह में मेला लगता है।

 

बूढ़ा केदार तीर्थ में आज भी लगभग 18 फुट गहरा कुआं मौजूद है, जिसके तल में संचित जल से गौमय की गंध आती है। कहा जाता है कि जो चारधाम तीर्थयात्रा करते है, उनके लिए अंत में इस तीर्थ की यात्रा करना अनिवार्य माना जाता है अन्यथा उनकी यात्रा अधूरी मानी जाती है। यहां शिव व काली के उपासक साधना करके अपने ईष्ट की सिद्धि सरलता से प्राप्त कर लेते है। टिहरी जिले का सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध स्थल होने के बावजूद बूढ़ा केदार धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में अभी तक अपनी विशिष्ट पहचान नहीं बना पाया है।

 

कैसे पहुंचे बूढ़ा केदार..

देवप्रयाग से टिहरी होते हुए बूढ़ा केदार पहुंच सकते हो, यह पवित्र स्थल देवप्रयाग से 102 टिहरी से 62 किलोमीटर की दूरी पर है। समुद्र तल से लगभग 4400 पुट की ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां हर साल मौसम ठंडा रहता है इसलिए तीर्थ यात्री एवं भक्तगण कभी भी किसी भी मौसम में आकर बूढ़ा केदार मंदिर के दर्शन कर सकते है।

 

 

 

 

 

 

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