देश/ विदेश

7 मौकों पर एक वोट ने पलटा दी बाजी..

7 मौकों पर एक वोट ने पलटा दी बाजी..

देश-विदेश : देश के पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी में विधानसभा चुनावों (Assembly Elections 2021) का सिलसिला जारी है. देश में चुनाव को लोकतंत्र का पर्व माना जाता है और वोटिंग इस त्योहार की सबसे बड़ी रस्म होती है. हालांकि इसके बाद भी बहुत से लोग मतदान से कतराते हैं कि उनके एक वोट से क्या फर्क पड़ जाएगा. लेकिन फर्क तो पड़ता है और ऐसा पड़ता है कि कई बार एक वोट से सत्ता ही पलट जाता है.

 

 

 

वाजपेयी सरकार के दौरान हुआ वाकया..

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का घटना साल 1999 की है. केंद्र में वाजपेयी की सरकार कई पार्टियों के समर्थन से बनी हुई थी. लेकिन एआईएडीएमके (AIADMK) के समर्थन वापस लेने के बाद सरकार को संसद में विश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा. उनके पक्ष में 269 वोट पड़े, जबकि विरोध में 270 वोट पड़े. इस तरह केवल एक वोट से सरकार गिर गई.

 

 

 

कांग्रेसी नेता के घरवालों ने ही नहीं किया वोट राजस्थान का वारदात तो वहां साल 2008 के विधानसभा चुनाव में सीपी जोशी कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री के दावेदार थे. इस चुनाव में उन्हें 62,215 वोट मिले, जबकि कल्याण सिंह को 62,216 वोट प्राप्त हुए. दिलचस्प बात ये है कि उस रोज सीपी जोशी की मां, पत्नी और ड्राइवर ने मतदान नहीं किया था. यानी अगर ये तीनों वोट देते तो भी सत्ता उनके पक्ष में होती.

 

 

 

दक्षिण भारत भी नहीं है अछूता..

वैसे सीपी जोशी अकेले नहीं हैं, जो एक वोट के कारण विधानसभा चुनाव हारे, बल्कि इस कतार में एक और नाम भी है. साल 2004 में जेडीएस के एआर कृष्णमूर्ति सिर्फ एक वोट से विधायक बनने से चूक गए थे. इसी साल कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनावों में कृष्णमूर्ति को 40,751 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के आर ध्रुवनारायण को 40,752 वोट हासिल हुए. यहां भी हैरान करने वाली बात ये है कि कृष्णमूर्ति के कार ड्राइवर ने मतदान नहीं किया था क्योंकि उसे समय नहीं मिल सका था.

 

 

 

एक वोट से महाभियोग से बच निकले थे अमेरिकी राष्ट्रपति..

विदेशों में भी मिलती-जुलती घटनाएं होती रही हैं. अमेरिका के 17वें राष्ट्रपति एंड्रूयू जॉनसन के साथ भी ऐसा ही हुआ था. हालांकि एक वोट के कारण वे बच गए थे. दरअसल ऑफिस एक्ट तोड़ने के आरोप में जॉनसन पर महाभियोग चला था लेकिन केवल एक वोट के फर्क से महाभियोग साबित नहीं हो सका और वे बच निकले. ये साल 1868 के मार्च की घटना है. मई में दोबारा महाभियोग साबित करने के लिए वोटिंग हुई लेकिन दोबारा वे एक वोट से बच गए.
साल 1876 में अमेरिका में हुए 19वें राष्ट्रपति पद के चुनावों में रदरफोर्ड बी हायेस 185 वोट हासिल कर राष्ट्रपति चुने गए थे. इन चुनावों में उनके प्रतिद्वंदी सैमुअल टिलडेन को 184 वोट हासिल हुए और इस तरह से महज एक वोट के अंतर से वो दुनिया के सबसे अमीर लोकतंत्र के मुखिया बनने से चूक गए.

 

 

 

ब्रिटेन में एक ही बार ऐसी घटना..

ब्रिटेन में केवल एक बार ऐसी घटना देखी गई है कि जब कोई एक वोट से फर्क से हारा या जीता. हेरॉल्ड मोर नाम के लीडर की संसद सदस्यता केवल एक वोट के कारण छिन गई. घटना 1911 की है, जब ये सदस्य 4 वोटों से जीता, हालांकि हफ्तेभर बाद ही इस जीत को चुनौती मिली और फिर एक वोट न मिल पाने पर उनकी सदस्यता रद्द हो गई.

 

 

जब जर्मन भाषा लेने जा रही थी अंग्रेजी की जगह..

ये तो हुई नेताओं के एक वोट से जीतने-हारने की बात लेकिन भाषा के साथ भी ऐसा हो चुका है. जी हां, महज एक वोट के अंतर से हारने के कारण जर्मन भाषा अमेरिका की पहली भाषा बनते-बनते रह गई, और अंग्रेजी ने इसकी जगह ले ली. तब देश में मौजूद कई ताकतवर लोग जर्मनी से ताल्लुक रखते थे. यही कारण है कि साल 1795 में जर्मन भाषा को यहां की पहली जबान घोषित किया ही जाने वाला था लेकिन तभी कई विरोध के स्वर सुनाई दिए. सर्वे कराया गया तो पता चला कि अमेरिका में केवल 9 प्रतिशत लोग जर्मन को पहली भाषा की तरह इस्तेमाल करते हैं और ज्यादातर लोग अंग्रेजी बोलते हैं. हालांकि इसके बाद भी वोटिंग हुई और एक वोट की बदौलत ही जर्मन की जगह अंग्रेजी अमेरिकी मातृभाषा बनी.

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