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पांडवों ने एक रात में बनाया था केदारनाथ मंदिर

आनंद शुक्ला  

(तीर्थ पुरोहित केदारनाथ )

 

विश्व प्रसिद्ध श्री केदारनाथ धाम   

श्री केदारनाथ जी का धाम भारत वर्ष के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जनपद के अंतर्गत बमसू मैखंडा पट्टी में पृथ्वी के अक्षांश 30.7300° N, 79.0700° E पर समुद्र तल से 11750 फीट की ऊँचाई पर केदार भूमि पर स्थित हैं जहाँ भगवान आशुतोष के बारह ज्योतिर्लिंगों में से ग्यारहवाँ स्वयंभू ज्योतिर्लिंग हैं ।

केदारनाथ मंदिर का निर्माण के सम्बन्ध में कई कहानियाँ प्रचलित हैं जो वायु पुराण , केदार कल्प और केदारखंड नामक ग्रंथो में हैं । केदारनाथ मंदिर 6 फीट ऊँचे चबूतरे पर 85 फीट ऊँचा (उत्तराखंड का सबसे ऊंचा मन्दिर), 187 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा हैं, इसकी दीवारें 12 फीट मोटी हैं । पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए इंटरलाँकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया हैं ।

वायु पुराण में लिखा हैं कि जब परमात्मा ने मानव सृष्टि उत्पन्न की थी उसी समय नर नारायण को उसकी रक्षा के लिये भेजा उन्होंने जगत के कल्याण के निमित गंद मादन पर्वत पर उग्र तप करके भगवान आशुतोष को प्रसन्न किया और भगवान भोलेनाथ से यह वर माँगा कि हे प्रभो ! हम विश्व के कल्याण के निमित आपका स्मरण करते हैं, यदि आप हमारी सेवा से प्रसन्न हैं तो आप सदेह प्रकट रूप में इस स्थान पर विराजमान रहें जिस से संसार के जीव आप के दर्शन से मुक्ति लाभ करते रहें । भगवान भोलेनाथ ने नर नारायण की प्रार्थना स्वीकार करके इस केदार भूमि को अपना स्थायी निवास स्थान स्वीकार किया तब से यह परम पावन तीर्थ केदारनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।


दूसरी कथा यह है कि जब पाण्डव राज पाट छोड़ कर हिमालय में शिव के दर्शन के लिए आये थे, तब भगवान शिव ने उनको गोत्र हत्या का जान कर भैसें का रूप धारण कर भैसों के झुंड में शामिल हो गये जब पांडवो को भगवान की माया समझ में आयी तो महावली भीम ने दोनों पर्वतों पर अपनी टांगे रख दी और बाकी पांडव माया रूपी भैसों को उनके टांगो के नीचे से हाँकने लगे , मायारूपी भैंसें तो टांगो के नीचे से गुजर गई लेकिन शिव रूपी भैस अपने सर को जमीन पर रगड़ कर जमींन में समाने लगा, तो भीम ने उनकी पूंछ पकड़ ली और उनका पृष्ट भाग वही रुक गया, और अग्र भाग (मुख ) नेपाल पहुँच गया जो नेपाल में पशुपतीनाथ के नाम से प्रसिद्ध है । श्री केदारनाथ धाम में भगवान शंकर के पृष्ट भाग की पूजा की जाती हैं ।पांडवों के पास उस समय भगवान श्री केदारेश्वर जी की पूजा के लिए चने की दाल और मख्खन ही था इसलिए आज भी भगवान श्री केदारेश्वर जी पूजा में चने की दाल और घी का बहुत ही महत्व है । भगवान श्री केदारेश्वर जी के लिंग को ध्यान से देखने पर उसके एक भाग में श्री गणेश जी आकृति और दूसरी जगह पर माँ दुर्गा का चिन्ह दिखाई देता है । पांडवो ने यही से स्वर्गारोहण किया था ।

श्री केदारनाथ जी मन्दिर का निर्माण दो भागों में किया गया है एक भाग जिसे गर्भगृह कहते है जिसमें चार विशाल खम्भों के वीच में भगवान श्री केदारेश्वर जी का ज्योतिर्लिंग है और एक भाग जिसे सभा मण्डप कहा जाता है जिसके मध्य में एक ऊँचे चबूतरे में पीतल के नंदी उनके

अग्र भाग में वीरभद्र जी और उनके चारों ओर पंड़ावों के साथ – साथ लक्ष्मीनारायण जी की मूर्तियां स्थापित है । स्थानीय लोक कथाओं के अनुसार यह मंदिर पांडवो द्वारा एक ही रात में बनाया बताया जाता हैं, राहुल साकृत्यायन के अनुसार यह मंदिर 12-13 वीं शताब्दी का हैं इतिहास कार डाँ० शिव प्रसाद डबराल मानते हैं कि शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जी की यात्रा पर आते रहे हैं तब भी यह मंदिर मौजूद था। माना जाता हैं कि केदारनाथ जी की यात्रा 1000 वर्षो से जारी हैं। कुछ लोक कथाओं में इस मन्दिर का निर्माण राजा जन्मेजय द्वारा किया गया और उन्ही के द्वारा श्री केदारनाथ मन्दिर के सभा मण्डप

में अपने पूर्वजों ( धर्मराज युधिष्टर , महावली भीम ,धनुर्धारी अर्जुन ,नकुल और सहदेव के साथ – साथ माता कुन्ती और पांचाली (द्रोपदी ) की मूर्ति स्थापित की गई , यह भी कथा स्थानिय प्रचलित है कि यह मन्दिर बनाया तो गया पंड़ावों द्वारा और मन्दिर का जीर्णोद्धार आदि गुरु शंकराचार्य जी द्वारा किया गया । मन्दिर किसी ने भी बनाया हो मन्दिर की शैली और इस ऊँचाई पर इतने बड़े – बड़े पत्थरों से इस मन्दिर का निर्माण करना अपने आप में एक आश्चर्य है । मन्दिर के सबसे ऊपर एक विशालकाय पत्थर का कमल पुष्प अपने आप में आकर्षण का केंद्र है । अगर मन्दिर की बनावट को गौर से देखा जाय तो इसके कई पत्थर 8 से 10 फीट लंबे है और इनकी मोटाई 1 से 2 फीट । यह मन्दिर किसी भी हिमालयी क्षेत्र का सबसे विशाल मन्दिर है ।
इस धाम की विशेषता और महत्व को जानकर ही हिन्दू धर्म के सबसे बड़े प्रचारक और पूरे भारतवर्ष को एक सूत्र में बांधने वाले आदि गुरु शंकराचार्य जी ने भी मात्र 32 वर्ष की आयु में 820 ई में अपना देह त्याग किया और इस धाम में समाधि ले ली थी , जँहा आपदा से पहले उनकी समाधि स्थल पर एक भव्य मन्दिर और उनकी मूर्ति स्थापित थी । जो की आपदा में पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गयी , लेकिन आपदा के बाद भी उस जगह पर न ही मन्दिर समिति और न ही सरकार द्वारा कोई काम किया गया । जिन्होंने भगवान विष्णु जी की मूर्ति नारद कुण्ड से निकाल कर बद्रीनाथ मन्दिर में स्थापित की साथ ही जिन्होंने भारतवर्ष के चारों धामों की स्थापना की और भारत वर्ष के चारों कोनों में मठों की स्थापना की आज उन्ही की समाधि स्थल सरकार ,मन्दिर समिति और हिन्दू धर्म के बड़े – बड़े महंतों से अपने उत्थान की आस लगाये है ।


भगवान श्री केदारनाथ धाम के कपाढ अक्षय तृतीया के दिन शुरुवात खुलते है और छः महीने बाद भैयादूज को बंद होते है ।श्री केदारनाथ जी में छः महीने नर और छः महीने यक्ष ,गंदर्भ आदि भगवान श्री केदारेश्वर जी की पूजा अर्चना करते है । कपाढ़ बंद होने पर भगवान श्री केदारेश्वर जी की स्वर्ण मुकुट युक्त पञ्च मुखी चाँदी की उत्सव मूर्ति को ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में छः महीने तक पूजा अर्चना की जाती है ।
16-17 जून ,2013 को आये भयंकर आपदा ने श्री केदारनाथ धाम का पूरा भूगोल ही परिवर्तित कर दिया ,आज भी इस दिव्य धाम में आपदा का प्रभाव देखा जा सकता है । हांलाकि तत्कालीन सरकार ने श्री केदारनाथ धाम और यात्रा को पटरी पर लाने के लिए काफी अच्छे प्रयास किये जिनका परिणाम भी बहुत अच्छा रहा । 2017 में अब तक रिकॉर्ड यात्री श्री केदारनाथ धाम पहुंचे ,और सरकार , मन्दिर समिति एवं स्थानीय लोगों के लिए काफी राहत की बात रही । श्री केदारनाथ जी यात्रा को पटरी पर लाने में निम् की अहम भूमिका रही साथ ही श्री केदारनाथ धाम को नया स्वरूप और सुरक्षा प्रदान करने में भी निम् का योगदान महत्वपूर्ण रहा । आपदा से पहले श्री केदारनाथ यात्रा मंम स्थानीय लोगों का काफी महत्वपूर्ण स्थान था लेकिन आपदा के बाद यात्रा पर सरकार का हस्तक्षेप ,रोक – टोक होने से स्थानीय लोगों का यात्रा में अब न के बराबर योगदान है । हालाँकि सरकार ने स्थानीय लोगों के लिए दुकानों की व्यवस्था की गई है लेकिन इनमें आपदा से पहले जैसी बात नही ।
एक मुख्य बिन्दु यह भी है कि सरकार का श्री केदारनाथ जी के निर्माण में दोहरा मापदण्ड समझ से परे है । एक ओर सरकार द्वारा श्री केदारनाथ धाम में बड़ी – बड़ी मशीनों और पर्यावरण विरोधी उपकरणों का उपयोग करके निर्माण कार्य किया जा रहा है , जँहा -जँहा उसको जरुरत है वँहा – वँहा वह निर्माण कार्य कर रही है क्या इनके लिए यह भूमि सेंचुरी एरिया नही है ? क्या इनके निर्माण कार्य से पर्यावरण को नुकसान नही पहुँच रहा है ? । वही दूसरी ओर स्थानीय लोगों के लिए उनकी नपत भूमि पर निर्माण कार्य प्रतिबंधित है अगर सरकार द्वारा स्थानीय लोगों को भी निर्माण कार्य की अनुमति प्रदान की जाती है तो यात्रा और भी बढ़ेगी साथ ही यात्रिगणों को रहने के लिए पक्के भवन मिल जायेंगे और स्थानीय लोगों के रोजगार में भी इजाफा होगा । जितने धन का उपयोग सरकार द्वारा धाम तक मार्ग बनाने और एक हैलीपैड को बार – बार विस्तार करने में खर्च किया गया शायद उतने धन से धाम तक सड़क का निर्माण हो जाता । जिससे की श्री केदारनाथ जी यात्रा सुगम और सुरक्षित होती साथ ही हेली कम्पनी की मनमानी , घोड़े – खच्चर के लिए कष्ट ये सभी कटु अनुभव यात्रिगण अपने साथ न ले जाते ।

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