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उच्च हिमालय में पौराणिक वेदनी कुंड सूखा

समुद्रतल से 13500 फीट की ऊंचाई पर स्थित ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व वाले वेदनी कुंड का पानी वर्तमान में पूरी तरह सूख चुका है।

चमोली : चमोली जिले में समुद्रतल से 13500 फीट की ऊंचाई पर स्थित ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व वाले वेदनी कुंड पर खतरा मंडरा रहा है। वेदनी बुग्याल में मौजूद इस कुंड का पानी वर्तमान में पूरी तरह सूख चुका है। इससे पर्यावरण प्रेमियों के माथों पर चिंता की लकीरें गहरा रही हैं। वह वेदनी कुंड के जलविहीन होने का कारण ग्लोबल वार्मिंग को मान रहे हैं।

इसके अलावा बीते वर्षों में भूस्खलन के चलते पानी के लगातार रिसने से भी कुंड का आकार सिकुड़ता जा रहा है। जबकि, वन विभाग का कहना है कि इस वर्ष कम बर्फबारी के चलते वेदनी कुंड में पानी की कमी आई है।

वेदनी में होती है राजजात की प्रथम पूजा

वेदनी बुग्याल (मखमली घास का मैदान) नंदा देवी व त्रिशूली पर्वत शृंखलाओं के मध्य वाण गांव से 13 किमी की दूरी पर स्थित है। इसी बुग्याल में बीच 15 मीटर व्यास में फैला हुआ है खूबसूरत वेदनी कुंड। जिसका चमोली जिले के इतिहास में विशेष स्थान है।

यह कुंड यहां की धार्मिक मान्यताओं से भी जुड़ा हुआ है। प्रत्येक 12 साल में आयोजित होने वाली श्री नंदा देवी राजजात के दौरान वेदनी कुंड में स्नान करने के बाद ही यात्री होमकुंड का रुख करते हैं। यहीं राजजात की प्रथम पूजा भी होती है। जबकि, प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाली श्री नंदा देवी लोकजात का भी वेदनी कुंड में ही समापन होता है।इस कुंड में स्नान करने के बाद मां नंदा को कैलास के लिए विदा किया जाता है। लेकिन, वर्तमान में इस कुंड के पूरी तरह सूख जाने से पर्यावरण प्रेमियों की चिंताएं बढ़ गई हैं।

12 वर्ष में होती है श्री नंदा देवी राजजात

मां नंदा को उत्तराखंड की आराध्य देवी माना गया है। इसलिए प्रत्येक 12 वर्ष में श्री नंदा देवी राजजात का भव्य आयोजन होता है। इस आयोजन में गढ़वाल व कुमाऊं दोनों मंडलों से नंदा देवी की सैकड़ों डोलियां शामिल होती हैं।
उच्च हिमालयी क्षेत्र में होने वाली यह दुनिया की सबसे लंबी पैदल धार्मिक यात्रा है। यात्रा में शामिल श्रद्धालु वेदनी बुग्याल स्थित वेदनी कुंड में स्नान करने के बाद ही होमकुंड के लिए प्रस्थान करते हैं।

प्रत्येक वर्ष होती है नंदा की लोकजात

चमोली जिले में नंदा देवी लोकजात का प्रत्येक वर्ष आयोजन होता है। लोकजात में बधाण व कुरुड़ की डोलियां वेदनी बुग्याल पहुंचती हैं। यहां वेदनी कुंड में स्नान-तर्पण करने के बाद ही यात्रा का समापन होता है।

वन विभाग की लापरवाही है जिम्मेदार

किरुली (पीपलकोटी) निवासी ट्रैकर संजय चौहान बताते हैं कि वह हाल ही में वेदनी ट्रैक पर गए थे। लेकिन, वेदनी कुंड की स्थिति देखकर घोर निराशा हुई। बीते वर्षों में इन दिनों यह कुंड पानी से भरा रहता था, मगर इस बार इसमें नाममात्र को ही पानी बचा है। कहते हैं, वन विभाग की ओर से इस कुंड की सुध न लिए जाने से यह स्थिति उत्पन्न हुई है।

कम बर्फबारी का असर

बदरीनाथ वन प्रभाग के डीएफओ एनएन पांडे के मुताबिक इस वर्ष चमोली जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र में कम बर्फबारी हुई है, जिसका असर वेदनी कुंड के जलस्तर पर भी पड़ा। पहले पर्याप्त बर्फबारी होने के कारण वेदनी कुंड गर्मियों में भी पानी से भरा रहता था। हालांकि, बरसात के दौरान फिर स्थिति सामान्य हो जाएगी।

जैव विविधता पर भी असर

श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. हेमंत बिष्ट के अनुसार बर्फबारी में कमी और पर्यावरण असंतुलन का ही कारण है कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में तालाब सूख रहे हैं। वेदनी कुंड भी इससे अछूता नहीं है। पहाडिय़ों से आने वाले पानी के साथ ही भूमिगत स्रोत से इस कुंड में जलापूर्ति होती थी। इस पानी से जंगली जानवरों के साथ ही चारागाह में रहने वाले पालतू पशु भी प्यास बुझाते थे। जाहिर है कुंड के सूखने का असर बुग्याली जैव विविधता पर भी पड़ेगा।

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