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इतनी बार दूल्हा बनने पर फिर भी बिना दुल्हन के लौटी बारात..

इतनी बार दूल्हा बनने पर फिर भी बिना दुल्हन के लौटी बारात..

देश-विदेश : ईसानगर के नरगड़ा गांव के विश्वम्भर दयाल मिश्रा सोमवार को 38वीं बार दूल्हा बन गए थे। गाजे-बाजे के साथ बारात लेकर दुल्हन के दरवाजे पर पहुंच गए। बारात का स्वागत-सत्कार हुआ। फेरे की रस्में हुईं और विदाई भी। पर हर साल की तरह 38वीं बार विश्वम्भर की बारात बिना दुल्हन के बैरंग वापस हुई। इससे पहले 35 मर्तबा विश्वम्भर के बड़े भाई श्यामबिहारी की बारात भी बिना दुल्हन के वापस लौट चुकी थी।

 

 

 

होली का दिन, रंगों से सराबोर बारातियों का जत्था ट्रैक्टर पर सवार दूल्हे के साथ गांव के बीच निकला। बारात में करीब-करीब पूरा गांव शामिल था। नरगड़ा के संतोष अवस्थी के दरवाजे पर बारात पहुंची। बारातियों का स्वागत हुआ। परम्परानुसार बारातियों को जलपान कराकर जनवासे में ठहरा दिया गया। इधर संतोष अवस्थी के परिजन बारात में शामिल लोगों के पांव पखार रहे थे। उधर घर में महिलाएं मंगलगीत गा रही थीं। द्वारपूजन के बाद विवाह की रस्में निभाई गईं। बारात और दूल्हे के साथ वे सारी रस्में निभाई जाती हैं। जो आमतौर पर शादियों में होती हैं। लेकिन दूल्हे को नहीं मिलती तो बस दुल्हन।

 

 

 

हम बात कर रहे हैं होली के दिन ईसानगर के मजरा नरगड़ा में निकाली जाने वाली बारात की। इस बारात की खासियत यह है कि इसमें एक ही परिवार के सदस्य सैकड़ों वर्षों से दूल्हा बनते आए हैं। होली के दिन पूरा गांव दूल्हे के साथ नाचते-गाते रंग, अबीर-गुलाल से सराबोर होकर दूल्हे के साथ बरात लेकर पहुंचते हैं। नरगड़ा निवासी बुजुर्गों कनौजी महराज बताते हैं कि यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। होली के दिन बारात लेकर पूरा गांव जाता है। सारी रस्मे शादी-बारात वाली ही होती हैं। पुरानी परम्परा के मुताबिक आज भी हम लोग भी इस प्रथा को निभा रहे हैं। यह भी परम्परा है कि बारात को बिना दुल्हन के विदा किया जाता है।

 

 

 

इस परंपरा में गांव के विश्वम्भर दयाल मिश्रा 38वीं बार दूल्हा बने। विश्वम्भर की ससुराल गांव में ही है। होली के पहले उनकी पत्नी मोहिनी को कुछ दिन पहले मायके बुला लिया जाता है। शादी के स्वांग के बाद जब बारात विदा होकर आ जाती है। तब होलाष्टक खत्म होने के बाद मोहिनी को ससुराल भेज दिया जाता है। विश्वम्भर से पहले उनके बड़े भाई श्यामबिहारी इसी तरह दूल्हा बनते थे। 35 वर्षों तक श्यामबिहारी दूल्हा बन भैंसा पर सवार होकर बारात लेकर निकलते थे।

 

 

 

यह अनोखी शादी देखने और बारात में शामिल होने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। सैकड़ों सालों से चली आ रही यह परंपरा आज भी लोक संस्कृतियों की यादें समेटे हुए है। भले ही आज की शादियों में बड़ा बदलाव आ गया हो पर नरगड़ा की इस अनोखी शादी में बारात के स्वागत, ज्योनार के समय गारी और सोहर,सरिया और मंगलगीतों की परम्पराएं जीवंत हैं।

 

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