कौन कहता है कि हर मुकाम में वो शख्स अकेला है
हर पल साथ उसके चाहने वालों का मेला है…
हुआ दर्द सीने में जो उसके
एक आँह उठी सीने में सबके
हुई आँखें बंद जो उसकी
नजरें धूमिल हो गयी सबकी
दिल जो उसका तड़प रहा था
दर्द की चुभन से कराह रहा था
करोड़ों सीनों में फिर भी वह
एक दिल बनकर जगमगा रहा था
वाणी से उसके खुलता जहाँ है दिन
अब चुप है तो सूना है सब उस बिन
वो सिर्फ एक देह नहीं पहाड़ की आवाज है
पहाड़ के हर जर्रे को उस शख्सियत पर नाज़ है
सरा-रा-रा-प्वां-प्वां से लेकर रॉक-एंड-रौल तक
रुमुक से लेकर वा जुन्याली रात तक
नंदा देवी राजजात से लेकर सुरमा सरेला तक
बेटी-ब्वारी से लेकर घस्यारी तक
डलेबर-कलेंडर से लेकर पतरोल तक
रूप की झौल से लेकर ठंडो पाणि तक
मांगल गीत से लेकर चांचड़ी झमाको तक
ऐजदी भग्यानी से लेकर माया को मुंडारु तक
नौछमी नारैण से लेकर कदगा खैलु तक
हर विधा को आजमाया है उसने
हर शब्द को एक सूरत है दी उसने
हो रहे थे जो तिरिस्कृत जग में
उनको एक पहचान है दी उसने
हर वाद्य यन्त्र का वो पुरोधा
सबका है वो पुनर्जन्म दाता
बचपन से लेकर बुढ़ापे तक
हर कोई उसे गुनगुनाना चाहता है
दौड़ती भागती उलझती ज़िन्दगी में
उसके गीतों में सुकून पाना चाहता है
उसकी कलम और कण्ठ का वो इश्क
रच गया है सबके मन मस्तिष्क
खुदेड़ भावनाओं की वो लेखनी
प्रेम की चासनी में डूबी वो लेखनी
ज़िन्दगियों को उत्साहित करती वो लेखनी
हर दिल अजीज है उसकी वो लेखनी
फिर क्यों वो आज तकलीफ में है
करोड़ों लोगों के साथ वो खुदा भी सदमे में है
हे ‘गढ़- उत्तराखण्ड रत्न’ तुम उठो
चलो चलते हैं उस पथ पर
जिन पथों से तुमने
ज़िन्दगियों को पहाड़ प्रेम है सिखलाया
तुम्हारी सुर लहरी ने ही तो
उस उत्तराखंड आंदोलन को है सजाया
सबकी दुआएं सतरंगी रंग ले आएंगी
दिलों में पनपती आशाएं खुशियाँ मनाएंगी
वो लौट हमारे बीच आएंगे
साज सुरों को गले लगाएंगे
विश्वास है झूमते सावन में
फिर कोई तराना महक जायेगा
हर पेड़ पहाड़ में
फिर ख़ुशी में पंछी चहचायेगा
ये जो बुरा वक़्त है
वह भी टल ही जाएगा
आने वाली सुबह भी
ख़ुशी का दिन ही लाएगा
अपने गीतों से उसने
एक मधुर सी दुनिया बनाई है
उसके आँखें खोलने से
फिर पहाड़ में रंगत आई है
ये उत्तराखंड उसकी पहचान है
यही उसकी आन बान है
वो सिर्फ एक इंसान नहीं
हमारे लिए उत्तराखंड की शान है
वो चले तो चल पड़ेगा पहाड़ मेरा
डूबते सूरज के बाद फिर उगेगा नया सबेरा
उसका दिल धड़कता रहे
धुनों की साज सजती रहे
अरमां ये हर उत्तराखण्डी की है
गीत गंगा पुनः बहती रहनी चाहिए
“नेगी दा ” की उम्र बढ़ती रहनी चाहिए
संदीप थपलियाल
मासों (एकेश्वर)
पौड़ी गढ़वाल
तुम जागी जवा नेगी जी ,
तुम राजी रवा नेगी जी ,,,
गन बाच गाड़ा दूं
आंखी जरा हुगाड़ा दूं।
तुमरे पिछन च सेरू पहाड़,,
जरा अपरूं सणी पछाणा दूं
अब आंखी त हुगाड़ा दूं।।
जागी जवा नेगी जी
द्यो पुजेली धुपणू केली।
अपणा अपणा इष्ट मूं ..
सबूने उचणू भी धेली ।
अपरी मयली भौण मा ,,
जरा त हुगंरा द्या जी
जागी जवा नेगी जी ।
राजी रवा नेगी जी ।
(उपासना सेमवाल)