नैनीताल। नैनीताल हाईकोर्ट ने जून 2013 में उत्तराखंड त्रासदी से प्रभावित व पीड़ित लोगों को 50 प्रतिशत अतिरिक्त क्षतिपूर्ति के निर्देश दिए हैं. राज्य सरकार की पुनर्वास योजना की विभिन्न योजनाओं के तहत लोगों के टूटे-उजड़े घरों व सार्वजनिक भवनों के पुनर्निर्माण के लिए अभी तक पीड़ित लोगों को कोई मुआवज़ा नहीं मिला, आपदा से पीड़ित लोगों ने न्यायालय का ध्यान दिलाया था कि उन्हें उत्तराखंड सरकार की ओर से मुआवज़े के तौर पर कोई भी राहत नहीं दी गई है.
नैनीताल उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति आलोक सिंह की संयुक्त पीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थानांतरित याचिका संख्या (सी) न. 767/2013 और उसके बाद पुनरअंकित पीआईएल संख्या 05/2016 व साथ में पीआईएल संख्या 206/2014 पर उपरोक्त आदेश पारित किया.
इसके पूर्व सुप्रीम कोर्ट की ओर से न्यायालय में स्थानांतरित याचिका में केदारघाटी के पीड़ित लोगों शिवसिंह पुत्र जगत सिंह, रणजीत सिंह रावत पुत्र ज्ञान सिंह व एक विधवा महिला श्रीमती सुरजी देवी निवासी ग्राम रंसी कंडूरा तहसील उखीमठ ज़िला रुद्रप्रयाग की ओर से दाखिल की गई थी.
उक्त याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय में गुहार लगाई थि कि जून 2013 में भारी बाढ़ के कारण खेती की ज़मीन भी बाढ़ में बह गई. पीड़ितों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जाने-माने वकील सोली सोराबजी व बी.के. पाल पेश हुए थे. मामला उत्तराखंड उच्च न्यायालय में स्थानांतरित होने के बाद पीड़ित लोगों शिव सिंह व अन्य ने कुछ तकनीकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए याचिका को नए सिरे से पेश किया. इस संशोधित याचिका पर उच्च न्यायालय नैनीताल की संयुक्त पीठ ने 19 नवंबर 2016 को सुनवाई करते हुए संशोधित याचिक निरस्त कर दी थी, लेकिन 20 जून 2017 को त्रासदी से पीड़ित परिवारों की ओर से एडवोकेट बी.के.पाल ने उच्च न्यायालय में दलील पेश करते हुए कहा कि इस मामले को निरस्त करने का फैसला एकतरफा हुआ है क्योंकि पीड़ित पक्षों को संशोधित याचिका की सुनवाई की तिथि के बाबत कोई सूचना नहीं दी गई.
बहरहाल कोर्ट ने केदारनाथ घाटी के पीड़ित लोगों की याचिका में उठाए गए तथ्यों की गंभीरता को देखते हुए पीड़ित व प्रभावित लोगों को तत्काल 50 प्रतिशत मुआवज़ा राशि के भुगतान के निर्देश दिए हैं. मामले में उत्तराखंड सरकार की ओर से पंकज पुरोहित व केएन जोशी डिप्टी एडवोकेट जनरल व केंद्र सरकार की ओर से एडवोकेट ललित शर्मा मौजूद थे.