मसूरी गोलीकांड की 27वीं बरसी आज, राज्य आंदोलनकारियों पर पुलिस ने बरसाईं थी गोलियां..
खटीमा गोलीकांड के विरोध में निकाली थी रैली..
उत्तराखंड: दो सितंबर का दिन मसूरी के इतिहास के लिए काला दिन माना जाता है। दो सितंबर 1994 को राज्य आंदोलनकारियों पर पुलिस ने गोलियां चला दी थी, जिसमें छह लोगों सहित एक पुलिस अधिकारी भी शहीद हो गए थे। राज्य आंदोलनकारियों का कहना है कि मसूरी गोलीकांड के जख्म आज भी ताजा हैं। भले ही हमें अलग राज्य मिल गया हो, लेकिन शहीदों के सपने आज भी अधूरे ही रह गए हैं।
आज मसूरी गोलीकांड की 27वीं बरसी है, लेकिन राज्य आंदोलनकारी आज भी पहाड़ का पानी, जवानी और पलायन रोकने की मांग लगातार कर रहे हैं। राज्य आंदोलनकारी बिजेन्द्र पुडींर का कहना हैं कि खटीमा गोलीकांड के विरोध में दो सितंबर 1994 को आंदोलनकारी मसूरी में गढ़वाल टैरेस से जुलूस लेकर उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के कार्यालय झूलाघर जा रहे थे।
लेकिन इस दौरान गनहिल की पहाड़ी से किसी ने पथराव कर दिया, जिससे बचने के लिए आंदोलनकारी कार्यालय में जाने लगे। इसी बीच पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चला दी। जिसमें छह आंदोलनकारियों की मौके पर ही मौत हो गई। साथ ही सैंट मैरी अस्पताल के बाहर पुलिस के सीओ उमाकांत त्रिपाठी की भी मौत हो गई थी। गोलीकांड में राज्य आंदोलनकारी मदन मोहन मंमगाई, हंसा धनाई, बेलमती चौहान, बलवीर नेगी, धनपत सिंह, राय सिंह बंगारी शहीद हो गए थे।
राज्य आंदोलनकारी जयप्रकाश उत्तराखंडी का कहना हैं कि गोलीकांड के बाद पुलिस 46 आंदोलनकारियों को बरेली सेंट्रल जेल ले गई और आंदोलनकारियों के साथ बुरा बर्ताव किया गया। उन्होंने कहा कि मसूरी में पुलिस ने जुल्म की सारी हदें पार कर दी थी। लोगों को घरों से उठाकर मारना-पीटना आम बात हो गई थी। कहा कि जिन सपनों के लिए राज्य की लड़ाई लड़ी गई, वो अब तक पूरे नहीं हुए हैं। पहाड़ से पलायन रोकने में सरकारें असफल रही हैं, भू-कानुन को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बन सकी है।