मुकेश बहुगुणा
हिमाचल की किन्नौर घाटी के वान्ग्लू–करछम से स्पीती घाटी लाहौल घाटी और लद्धाख घाटी होते हुए कारगिल (लगभग ७०० किमी ) तक पहुंचेंगे तो आप स्वयं को एक अलग सी दुनिया में महसूस करेंगे I दूर-दूर तक बर्फ–मिटटी-पहाड़ – चट्टानें –कहीं बहती हुई नदियाँ तो कहीं कुछ जमी और कुछ चलती नदियाँ I पेड़ पौधे व वनस्पति यहाँ बहुत ही कम होती है, वह भी किसी किसी स्थान पर I जहाँ वनस्पति है वहीँ छोटे-छोटे गाँव और कुछ खेत भी मिल जायेंगे I
बर्फीला रेगिस्तान कहलाये जाने वाले इस क्षेत्र में जनसंख्या तो बहुत कम है, पर इंसान और इंसानियत भरपूर है I कठोर चट्टानों ने यहाँ के बाशिंदों को नर्म और मृदुल होना सिखाया है, बर्फीली हवाओं और हाड कंपाती ठण्ड ने सिखाया है व्यवहार में गर्मजोशी I जमी हुई नदियों ने इन्हें खिलखिला कर हँसते हुए जीवन प्रवाह में तैरना सिखाया है I ऊँचे विकट पहाड़ों ने सिखाया है विनम्रता से झुक कर रहना I
आप कई बार बड़े-बड़े शापिंग माल्स या व्यावसायिक संस्थानों में गए होंगे, वहां स्वागत कक्ष में ड्यूटी पर बैठे लड़के-लड़कियां मुस्करा कर आपका स्वागत भी करते हैं I अगली बार कभी फिर से जाएँ तो ध्यान से देखिएगा I उनके सिर्फ होंठ मुस्कराहट के अंदाज में फैले होते हैं, चेहरा नहीं हँसता I लाफिंग मशीन की तरह, जिसमें हंसने की आवाजें तो खूब आती हैं पर वह हंसती नहीं I लेकिन जब आप यहाँ के लोगों से मिलते हैं तो आप पायेंगे कि उनके न सिर्फ होंठ मुस्कुरा रहें हैं बल्कि उनकी आँखें – गाल – कान –नाक यहाँ तक कि हाथ-पैर भी साथ मुस्कुरा रहे हैं. मुस्कराहट सशरीर सजीव खिलखिलाती है इस क्षेत्र में I
खेती बहुत ही कम है, पर जितने भी खेत हैं सब जीवन से भरे हुए मिलेंगे आपको I बहुत कम बहुत ज्यादा कैसे हो सकता है ,यह कला यहाँ मूर्त हो जाती है I दुकाने भी हैं, पर लूट के भाव वाली नहीं I सहज मुनाफे वाली, ताकि विनिमय जारी रह सके। अधिकाँश घरों में पेइंग गेस्ट की सुविधा मौजूद है। आप यहाँ पारिवारिक माहौल में अपने घर में महसूस कर सकते हैं I मकान अधिकतर स्थानीय संस्कृति और परम्परा के अनुरूप ही बने हैं , रहन-सहन ,खान-पान भी स्थानीयता से लबालब भरा हुआ I
इस पूरे इलाके में आपको वो सुनने को नहीं मिलेगा जो उत्तरभारत के अधिकतर सार्वजनिक स्थानों सुबह से शाम तक सुनाई देता है – गालियाँ I “जी” ( कुछ स्थानों पर “जी” का स्थान “सर” ने लिया है , “सर जी “ भी सुनाई देगा ) , जनाब , भाई , भैय्या , बहन जी ,जैसे शब्द हर समय हर जगह सुनाई देंगे आपको I यहाँ तक की शराबखानों –बस स्टैंड में भी गालियाँ नहीं सुनाई देती ( एक दो अपवादों से साथ , पर इन अपवादों में भी उत्तर भारत के विशेष भाषाप्रेमी लोग निर्विवाद रूप से देखे मैंने ) I आदर और सत्कार यहाँ की हवाओं में बहते हैं , हर दिशा में I
खेत हो या खलिहान, मकान हो दुकान, पूजा स्थान हो या बाजार, महिलायें हर जगह हर समय पुरुषों के साथ समान भाव से सहयोग करती मिलेंगे इस पूरे क्षेत्र में I महिला जीवन का अभिन्न अंग है यहाँ, बेहिचक- बेख़ौफ़-बेखटक – बेरोक –बराबरी के भाव से युक्त I
यहाँ प्रधान भी हैं , विधायक और सांसद भी I पर सड़क-मकान-गाँव –मोहल्ले और शहर पर बदनुमा –बदसूरत धब्बा बनाते स्वागत-आभार-धन्यवाद के पोस्टर –होर्डिंग्स नहीं दिखाई देते I हर मकान उतना ही सुन्दर है जितना उसमें रहने वाले चाहते हैं – बना सकते हैं I
यहाँ जिन्दगी महानगरों से अलग है I जीवन यहाँ पागल कुत्तों की तरह बेतहाशा–बदहवास नहीं दौड़ता, बल्कि गाय के बछड़े की तरह कभी कुलांचे भरता है तो कभी शांत बैठ चैन से जुगाली करता है तो कभी स्नेह से प्रकृति की गर्दन के नीचे सर रख कर सो जाता है I