उत्तराखंड

चुनाव की रणभेरी बजते ही केदारनाथ विधानसभा में सरगर्मियां हुई तेज..

चुनाव की रणभेरी बजते ही केदारनाथ विधानसभा में सरगर्मियां हुई तेज..

केदारनाथ सीट पर क्या इस बार कांग्रेस मार पायेगी हैट्रिक..

भाजपा पिछली हार का बदला चुकायेगी या पहली बार निर्दलीय विधायक करेगा जीत हासिल..

 

 

 

रुद्रप्रयाग। उत्तराखण्ड में चुनाव की रणभेरी बजते ही चुनावी समर में उतरने को आतुर दलों एवं निर्दलीयों की सरगर्मियां भी तेज होने लगी है। एक ओर जहां बड़े राजनीतिक दल अपने प्रत्याशियों के दम को आंकने में मसगूल हैं तो वहीं निर्दलीय पूरे तौर से दंगल में उतर चुके हैं। उत्तराखण्ड विधान सभा में केदारनाथ सीट पर भी सरगर्मियों तेज होने लगी हैं। एक ओर भाजपा जहां अपने प्रत्याशी को लेकर उधेड़बुन में है, वहीं कांग्रेस में वर्तमान विधायक मनोज रावत की दावेदारी को लेकर कहीं कोई संशय नहीं है।

 

आप ने भी अभी तक अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है, जबकि उक्रांद ने एडवोकेट गजपाल रावत को अपना प्रत्याशी घोषित कर चुनावी समर में अपनी सरगर्मियां बढ़ा दी हैं। निर्दलियों ने भी ताल ठोकना प्रारम्भ कर दिया है, जिसमें कुलदीप रावत एवं देवेश नौटियाल प्रमुख हैं। केदारनाथ सीट पर अभी तक दो बार भाजपा एवं दो बार कांग्रेस का कब्जा रहा है। 2002 में कांग्रेस ने अगस्त्यमुनि ब्लाॅक की प्रमुख शैलारानी रावत पर दांव खेला तो भाजपा ने जिपंस आशा नौटियाल पर। इस चुनाव में आशा नौटियाल ने जीत हासिल की।

 

2007 में भाजपा ने फिर से आशा नौटियाल पर दांव खेला, जिन्होंने कांग्रेस के पूर्व विधायक कुंवर सिंह नेगी को हराकर लगातार दूसरी बार जीत हासिल की। 2012 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर से शैलारानी रावत को चुनावी समर में उतारा। इस बार उन्होंने आशा नौटियाल की हैट्रिक रोककर कांग्रेस को जीत दिलवा दी। 2016 में प्रदेश में भारी राजनैतिक उलट फेर हुआ। कांग्रेस के कई विधायक कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गये, जिसमें केदारनाथ की तत्कालीन कांग्रेस विघायक शैलारानी भी थी। राजनैतिक वादे के अनुसार 2017 में भाजपा को मजबूरन शैलारानी को अपना उम्मीदवार बनाना पड़ा।

 

इससे नाराज आशा नौटियाल ने बगावत कर दी और निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गई। कांग्रेस ने पत्रकार मनोज रावत को टिकट देकर सभी को चैंका दिया। वहीं एक ओर निर्दलीय उम्मीदवार कुलदीप रावत ने सभी दलों की वोटों पर जबरदस्त तरीके से सेंधमारी की। इससे केदारनाथ में चुनाव रोचक हो गया और जब परिणाम निकला तो केदारनाथ जैसी छोटी विधानसभा क्षेत्र में पहली बार चार प्रत्याशी दस हजार से ऊपर वोट लाये। कांग्रेस के मनोज रावत ने मामूली अन्तर से जीत हासिल की। निर्दलीय कुलदीप रावत दूसरे तथा बागी आशा नौटियाल तीसरे स्थान पर रही। भाजपा प्रत्याशी शैलारानी रावत चैथे स्थान पर खिसक गई और अब जब 2022 चुनाव की रणभेरी बज चुकी है, तो एक बार फिर से सबकी नजर इस सीट पर लगी है।

 

भाजपा जहां अपने किए विकास कार्य एवं प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर चुनाव में उतर रही है, वहीं कांग्रेस अपने तेज तर्रार युवा विधायक मनोज रावत द्वारा किए गये कार्यों के बल पर चुनावी नैया पार करने की तैयारी में है। केदारनाथ के वर्तमान विधायक मनोज रावत पर पिछले चार वर्षों में विधायक निधि खर्च न करने के आरोप लगते रहे हैं, जो कि आंकड़ों से भी दिखता रहा है। हांलांकि इन वर्षों में विधानसभा में हर मुद्दे पर उन्होंने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है और विधानसभा में सबसे अधिक प्रश्न करने वाले विधायकों में शुमार रहे हैं। पिछले दो वर्षों में कारोना महामारी के कारण भी विधायक निधि खर्च करने में वे पिछड़ते रहे, मगर चुनावी वर्ष आते ही उन्होंने अपने तरकस से ऐसे एसे तीर निकाले कि जो चुनाव में गेम चेंजर हो सकती हैं।

 

अब विपक्षियों को भी उसका तोड़ ढूंढ़े नहीं मिल रहा है। पहले अपनी विधान सभा क्षेत्र के प्रत्येक गांव में ग्रामीण पुस्तकालय, फिर अपनी लोक परम्परा एवं संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए मांगल एवं खुदेड़ गीतों की प्रतियोगिता और चुनाव घोषणा से कुछ दिन पूर्व शहीदों के सम्मान में उनके स्मारकों एवं मूर्तियों की स्थापना ने क्षेत्र के सैनिक वोटरों पर सेंध लगा कर भाजपा को बेकफुट पर लाने का कार्य किया है। हालांकि उनकी ये गेम चेंजर योजनायें जनता को कितना लुभा पाती हैं, यह निश्चित होगा 10 मार्च को जब पधिाम घोषित होंगे। लेकिन काफी कुछ तो भाजपा प्रत्याशी कौन होगा इस पर भी तय हो जायेगा। भाजपा में अभी तक प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया चल रही है। वर्ष 2017 से पूर्व इस सीट पर कांग्रेस से चुनाव लड़ने के लिए लम्बी कतार रहा करती थी, मगर अब यह स्थिति भाजपा में है। जहां से इस बार 11 उम्मीदवारों ने अपनी दावेदारी की है।

 

ऐसे में भाजपा के लिए प्रत्याशी चुनना कठिन कार्य हो गया है। अधिक उम्मीदवार होने से चुनाव के समय बगावत होने की संभावना अधिक रहती है। इसका खमियाजा 2017 में भाजपा भुगत चुकी है। ऐसे में भाजपा को फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना होगा। वास्तव में देखा जाय तो इनमें से केवल कुछ ही उम्मीदवार चुनाव लड़ने के लिए गम्भीर हैं, जबकि बाकी केवल अपना नाम बड़े नेताओं में शुमार करने के लिए ही दावेदारी कर रहे हैं। जिससे वे भविष्य में दर्जाधारी वाला पद के लिए दावा कर सकें। भाजपा से पहला दावा तो शैलारानी रावत का लगता है। वे पूर्व में ब्लाॅक प्रमुख, जिपंअ तथा विधायक रही हैं। 2016 में जब वे भाजपा में शामिल हुई थी तो उस समय उनसे क्या वादा किया गया था, यह भी उन्हें टिकट दिलाने में सहायक होगा।

भाजपा का आन्तरिक सर्वे भी टिकट दिलाने में अग्रणी भूमिका निभायेगा। आशा नौटियाल का दावा तो बड़ा है। वे पूर्व में दो बार विधायक रही हैं, मगर पिछली बार बगावत करके चुनाव लड़ना, उनकी दावेदारी को कमजोर करता है। भाजपा से तीसरा दावा अगस्त्यमुनि नगर पंचायत के पहले अध्यक्ष एवं बीकेडीसी के पूर्व उपाध्यक्ष अशोक खत्री का है। वे विद्यार्थी परिषद से लेकर भाजपा तक संगठन में कई पदों पर रह चुके हैं। अगस्त्यमुनि नगर पंचायत का अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने अपनी कार्य दक्षता का परिचय दिया था, जिसकी बदौलत नपं को पूरे देश में स्वच्छता पर पहला पुरस्कार मिला था। चैथा दावा पूर्व जिपंअ चण्डी प्रसाद भट्ट का लगता है। वे भी संगठन में विभिन्न पदों पर रहे हैं तथा संघ से अपनी नजदीकियों के चलते उनका दावा भी मजबूत है।

 

इसके अलावा भाजपा वरिष्ठ नेत्री एवं पूर्व जिलाध्यक्ष शकुन्तला जगवाण भी टिकट की दौड़ में शामिल हैं। वे तीस सालों से पार्टी की सेवा के साथ ही जनता के बीच पकड़ बनाए हुए हैं। एक उम्मीदवार अजेन्द्र अजय को पार्टी बद्री-केदार मन्दिर समिति में अध्यक्ष पद पर मनोनीत कर चुकी है। अन्य उम्मीदवार केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराने तक ही सीमित लग रहे हैं। आने वाले कुछ दिनों में भाजपा प्रत्याशी घोषित होते ही चुनाव रोचक हो जायेगा। निर्दलीय प्रत्याशियों में कुलदीप रावत एक बार फिर से चुनाव मैदान में उतरने को तैयार हैं।

 

पिछली बार वे केवल कुछ ही वोटों से चुनाव जीतने से रह गये थे। इस बार वे चुनाव घोषणा होने से पूर्व ही पूरे विधानसभा क्षेत्र में कई रैलियां कर अपनी तैयारियों की सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। वहीं देवेश नौटियाल भी पिछले दो सालों से अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का प्रयास कर रहे हैं। अब यह तो 10 मार्च को ही पता चलेगा कि केदारनाथ में किसे जनता रूपी वेलेन्टाइन का प्यार मिलता है। कांग्रेस हैट्रिक मारती है या भाजपा अपना परचम फहरायेगी या पहली बार निर्दलीय इस सीट पर जीत हासिल करेगा।

पैराशूट प्रत्याशी उतारने से संगठन में हो सकता है बिखराव..

प्रदेश में इस बार केदारनाथ सीट चर्चाओं में बनी हुई है। यहां भाजपा से 11 लोगों ने पार्टी हाईकमान के सामने अपनी दावेदारी पेश की है। ऐसे में यहां बगावती सुर फूटना तय माना जा रहा है। सूत्रों की माने तो अगर जिला संगठन में सहमति नहीं बनती है तो केदारनाथ सीट पर हाईकमान पैराशूट प्रत्याशी को उतार सकती है, जिसके बाद यहां संगठन में बिखराव की स्थिति पैदा हो सकती है।

 

वैसे काफी दिनों से वर्तमान काबीना मंत्री डाॅ हरक सिंह रावत के केदारनाथ सीट पर चुनाव लड़ने की आंशकाएं जताई जा रही हैं। अगर ऐसा होता है तो यहां टिकट के दावेदारों के साथ ही कार्यकर्ताओं में आक्रोश बढ़ सकता है। जो लोग कई सालों से संगठन में सेवाएं देने के साथ ही जनता के बीच रहकर सेवा कर रहे हैं। वे ही सबसे आगे आकर विरोध जता सकते हैं। ऐसे में भाजपा के लिए यह सीट जी का जंजाल बनी हुई है।

 

 

 

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