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जानिए कामाख्या धाम में प्रसाद में क्यों मिलता है कपड़ा..

जानिए कामाख्या धाम में प्रसाद में क्यों मिलता है कपड़ा..

जून में लगता हैं अंबुवासी मेला..

देश के 51 शक्तिपीठों में एक हैं कामाख्या धाम मंदिर..

 

 

 

 

 

 

 

आज से विश्व प्रसिद्ध शक्तिपीठ कामाख्या धाम में अंबुवासी मेला शुरू हो रहा है। इस दौरान धाम के कपाट बंद हो जाते हैं और 26 जून को कपाट खोले जाते हैं। इसके बाद ही लोग मां कामाख्या के दर्शन करते हैं। इस दौरान लाखों श्रद्धालुओं के के साथ-साथ देश और दुनिया से तंत्र की साधाना करने वाले साधक और साधु धाम में पहुंचते हैं।

 

 

 

देश-विदेश: आज से विश्व प्रसिद्ध शक्तिपीठ कामाख्या धाम में अंबुवासी मेला शुरू हो रहा है। इस दौरान धाम के कपाट बंद हो जाते हैं और 26 जून को कपाट खोले जाते हैं। इसके बाद ही लोग मां कामाख्या के दर्शन करते हैं। इस दौरान लाखों श्रद्धालुओं के के साथ-साथ देश और दुनिया से तंत्र की साधाना करने वाले साधक और साधु धाम में पहुंचते हैं। वहीं धाम में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। दो हजार से अधिक सुरक्षाकर्मी वहां तैनात हैं। लेकिन क्या आप कामाख्या धाम के इतिहास और यहां लगने वाले मेले का नाम अंबुवासी मेला कैसे पड़ा इस बारे में जानते हैं, तो चलिए बताते हैं आपको कामाख्या धाम की कहानी।

 

आपको बता दे कि कामाख्या धाम देश के 51 शक्तिपीठों में से एक हैं। मान्यता है कि जब सुदर्शन चक्र से कटकर देवी सती के अंग भूमि पर गिरे थे तब योनी भाग यहां गिरा था। यही वजह है कि इसे कामक्षेत्र, कामरूप यानी कामदेव का क्षेत्र भी कहा जाता है। जिस स्थान पर देवी सती का योनी भाग गिरा था उस स्थान (नीलाचल पहाड़, जो गुवाहाटी से करीब 14 किलोमीटर दूर है) पर विश्व प्रसिद्ध कामख्या देवी का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर को तंत्र साधना का प्रमुख स्थान माना जाता है। हर वर्ष देश और दुनिया से तंत्र-मंत्र साधक अंबुवासी मेले में आते हैं। मां तीन दिनों के लिए रजस्वला हो जाती हैं, इसलिए इस दौरान मां के दर्शन नहीं होते। मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।

इस साल अंबुवासी मेले के लिए मंदिर का कपाट 22 जून यानी आज बंद हो जाएगा। साथ ही रात में 9 बजकर 27 मिनट और 54 सेकेंड पर प्रवृति शुरू होगी और 26 जून की सुबह 7 बजकर 51 मिनट और 58 सेकेंड पर निवृति होगी। इस दौरान अंबुवासी मेले का आयोजन किया जाएगा। वहीं 26 जून को देवी के पूजा स्नान के बाद मंदिर के द्वार खोले जाएंगे।

भक्तों को प्रसाद के रूप में देते हैं कपड़ा..

कामाख्या धाम में भक्तों को प्रसाद के रूप में कपड़ा दिया जाता है। इसे ही अंबुवासी कहते हैं। मान्यता के अनुसार देवी कामाख्या के रजस्वला होने के दौरान प्रतिमा के आस-पास सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल होता है। कहा जाता है कि जिस भी भक्त को यह वस्त्र मिलता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाता हैं। हर साल जून के महीने में यह मेला लगता है। वहीं मंदिर के पास ही ब्रह्मपुत्र नदी के बीचो-बीच उमानंद भैरव का भव्य मंदिर है। कहा जाता है कि इनके दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है। इस मंदिर की प्रसिद्ध इसकी वास्तुशिल्प के कारण भी है। मान्यता है कि इस मंदिर को किसी इंसान ने नहीं बनाया, बल्कि यह गर्भ से निकला है।

 

 

 

 

 

 

 

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