उत्तराखंड

नाम ज्योर्तिमठ रखो या जोशीमठ, गांव का फिर भी नहीं होना विकास..

नाम ज्योर्तिमठ रखो या जोशीमठ, गांव का फिर भी नहीं होना विकास..

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद भी अभी तक नहीं बन पायी सड़क..

 

 

 

 

उत्तराखंड: यूपी के बाद उत्तराखंड में नाम भी बदलने का सिलसला शुरू हुआ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी जोशीमठ का नाम ज्योतिर्मठ करने की घोषणा की। जिसमे उन्होंने कहा कि जनता की भावनाओं के अनुरूप यह फैसला किया गया है। अरे साहब! नाम में क्या रखा है। यहां के लोगों का कहना है कि हमें सड़क मार्ग से ही जोड़ दो वही बहुत है।

 

इस सदी में आज भी इस जोशीमठ गांव के लोग 26 किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर हैं। नाम बदलना हो या न हो। लेकिन सड़क मार्ग से ही गांव को जोड़ दो। इससे शायद उस बीमार या मजलूम को तो फायदा होगा जो अपनी आखिरी सांसें गिन रहा हो और शायद समय पर उपचार तो मिले?

आपको बता दे कि जोशीमठ जनपद चमोली के जोशीमठ ब्लॉक का एक ऐसा गांव है जहां पहुंचने के लिए आज भी 26 किलोमीटर पैदल सफर करना पड़ता है। इस गांव के लिए 1965 से सड़क की मांग होती रही। तत्कालीन उत्तर प्रदेश के पर्वतीय विकास मंत्री नरेंद्र सिंह भंडारी ने लोगों को सपना दिखाया था कि गोपेश्वर जिला मुख्यालय से घीघंराण होते हुए डुमक कलगोठ उर्गम विष्णुप्रयाग तक एक सड़क बनेगी।

किंतु यह राजनीतिक वादा उन्होंने पूरा नहीं किया। उसके बाद कांग्रेस के कुंवर सिंह नेगी भी यहां के विधायक रहे। उन्होंने भी इस सड़क को नहीं बनाया। भाजपा के तत्कालीन उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री केदार सिंह ने भी इस सड़क को हासिए पर ही रखा।

इसके बाद उत्तराखंड राज्य बना और उत्तराखंड के राजनीतिक दल कांग्रेस बीजेपी ने बारी-बारी से यहां राज किया और इस क्षेत्र को रोड से जोड़ने के नाम पर हर चुनाव में वोट मांगे, परंतु कोई दल और नेता इस सड़क को नहीं बना पाया। कांग्रेस पार्टी के बद्रीनाथ विधायक स्व. अनुसूया प्रसाद मैखुरी ने अपने कार्यकाल में इस सड़क को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत स्वीकृत करने के लिए उत्तराखंड शासन को प्रस्ताव दिया।

तत्कालीन जिलाधिकारी मदन सिंह ने प्रमुख सचिव ग्रामीण विकास को इस आशय का पत्र लिखा कि यह सड़क 18 ग्राम पंचायतों को जोड़ने का काम करेगी। इसलिए इस सड़क को 29 किलोमीटर स्वीकृत किया जाए और इस सड़क स्वीकृति भी मिली। उसके बाद केदार सिंह फोनिया चुनाव जीते और उन्होंने बदरीनाथ विधानसभा की इस सड़क को नहीं बनाया। 2009 में बदरीनाथ के विधायक अनुसूया प्रसाद मैखुरी बने।

उन्होंने इस सड़क को बनाने की कोशिश की। उस समय तक वन हस्तांतरण की कार्रवाई के कारण कई वर्षों तक सड़क लटकी रही। इसके बाद विधानसभा चुनाव में बदरीनाथ से राजेंद्र सिंह भंडारी जीते। फिर कुछ समय सड़क का काम आगे बढ़ा। घीघराँण से स्यूँण तक सड़क बनी। इसके बाद बदरीनाथ से महेंद्र भट्ट बद्रीनाथ की विधायक बने। उनके कार्यकाल में इस सड़क पर कोई काम नहीं हो पाया। डुमक कलगोठ के नाम पर सड़क पर खानापूर्ति हुई। जगह-जगह मशीनें खड़ी पड़ी हैं।

विगत 5 वर्षों के कार्यकाल में कुछ भी काम नहीं हुआ। कई बार ग्रामीणों ने भाजपा के वर्तमान विधायक महेंद्र भट्ट से गुजारिश की, सड़क बना दो, किंतु सड़क नहीं बन पाई। पाँगतोली के जंगलों में सड़क फंसी हुई है। लोगों के घास के मैदान भी खराब कर दिए गए हैं। जगह-जगह तोड़फोड़ की गई किंतु सड़क गाँव तक नहीं पहुंची।

आज भी डुमक गांव के लोग जिला मुख्यालय से 26 किलोमीटर पैदल चलते हैं। यहां कोई दुर्घटना हो जाए तो गांव से डंडी कंडी के सहारे 26 किलोमीटर चलने के बाद अस्पताल सड़क मार्ग तक पहुंचा जा सकता है। दर्जनों लोगों ने आज तक अपनी जीवन लीला बिना सड़क के कारण यहां उपचार के अभाव में गंवा दी है। आखिरकार इन ग्रामीणों का क्या दोष है जिन्हें सड़क का लाभ नहीं मिल पा रहा है? उत्तराखंड के दर्जनों ही नहीं सैकड़ों ऐसे गांव हैं जहां लोग सड़क सुविधाओं के अभाव में आदिमानव जैसा जीवन इस 21वीं सदी में गुजारने को मजबूर हैं।

 

 

 

 

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