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भारत में सौर ऊर्जा से बनेगी ग्रीन हाइड्रोजन..

भारत में सौर ऊर्जा से बनेगी ग्रीन हाइड्रोजन..

1 किलो गैस बनाने पर इतना आएगा खर्च..

 

 

देश-विदेश: देश में नेशनल हाइड्रोजन मिशन की चर्चा जोर-शोर से चलाई जा रही हैं। आपको बता दे कि अभी हाल में बीते स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने इस मिशन का खास ऐलान किया और बताया कि 2047 तक भारत ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होगा। इसके लिए गैस आधारित अर्थव्यवस्था बनाई जा रही है जिससे विदेशों से करोड़ों डॉलर का पेट्रोल-डीजल आयात न करना पड़े। इस दिशा में नेशनल हाइड्रोजन मिशन अहम रोल निभाएगा जिससे ग्रीन हाइड्रोजन गैस पैदा की जाएगी।

 

जहां तक बात हाइड्रोजन की है तो कई वर्षों से फैक्ट्रियों में इसका इस्तेमाल होता आ रहा है। लेकिन अब बात ग्रीन हाइड्रोजन की हो रही है। यानी कि हाइड्ऱोजन का निर्माण रिन्यूएबल एनर्जी के तौर पर हो। इसके लिए कई विधियां अपनाई जाएंगी जिनमें सबसे अहम है इलेक्ट्रोलाइजर विधि। इस विधि में पानी को बिजली की मदद से ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में तोड़ना है। यानी कि बिजली की मदद से पानी को तोड़ना। अगर यहां बिजली रिन्यूएबल सोर्स ले ली जाए तो उससे पैदा होने वाली हाइड्रोजन गैस को ही ग्रीन हाइड्रोजन कहेंगे।

 

सस्ते में बनेगी ग्रीन हाइड्रोजन गैस..

यह ग्रीन हाइड्रोजन पूरी तरह से कार्बन मुक्त होगी। यह गैस प्रदूषण मुक्त होगी. इससे पैदा होने वाली ग्रीन हाइड्रोजन गैस से रिफाइनिंग सेक्टर, फर्टीलाइजर सेक्टर, एविएशन सेक्टर और यहां तक कि स्टील सेक्टर में भी ऊर्जा की सप्लाई कर सकेंगे. अभी इन क्षेत्रों में तेल या गैस आधारित ऊर्जा लगती है जिसमें प्रदूषण बहुत ज्यादा होता है। देश में रिन्यूएबल एनर्जी की कॉस्टिंग काफी कम है। जैसा कि सोलर एनर्जी पर प्रति यूनिट 2 रुपये से कम लागत आती है। ऐसे में रिन्यूएबल एनर्जी के इस्तेमाल से ग्रीन हाइड्रोजन पैदा करना आसान और सस्ता होगा।

 

 

 

ग्रीन हाइड्रोजन का मिशन है कि आने वाले समय में फैक्ट्रियों के लिए एक लिमिट तय की जाएगी कि कितना परसेंट तक ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल करना जरूरी होगा। इस मात्रा को धीरे-धीरे बढ़ाई जाएगी जिससे कि फैक्ट्रियों से पैदा होने वाले कार्बन की मात्रा घटेगी। इससे देश में ग्रीन हाइड्रोजन का एक बाजार बनेगा। एनटीपीसी जैसे संस्थान इसके निर्माण पर जोर दे रहे हैं जिनकी सप्लाई आगे चलकर देश ही नहीं बल्कि विदेशों में हो सकती है।

 

भारत में 1970 से बनती है हाइड्रोजन..

आपको बता दे कि भारत में ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के इंफ्रास्ट्रक्चर की जहां तक बात है तो यहां 1970 से ही एक स्थापित व्यवस्था है। भारत में 1970 के दशक में ग्रीन हाइड्रोजन पर काम शुरू हुआ था जिसमें अच्छी सफलता मिली थी। भारत में 1970 में फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन बना था जो बाद में एनएफएल के तौर पर परिवर्तित कर दिया गया।

 

एनएफएल के पास उस वक्त एक ग्रीन पॉवर प्लांट था जो भाखड़ा नांगल बांध से जुड़ा था। भाखड़ा के पानी को उपयोग में लेने के लिए एक वाटर इलेक्ट्रोलीसिस प्लांट बनाया गया था। शुरू में इस प्लांट से ग्रीन हाइड्रोजन बनाया जाता था, लेकिन बाद में नाइट्रोजन बनाया जाने लगा जो कि ग्रीन एनर्जी का ही एक हिस्सा था। यह नाइट्रोजन गैस भी पानी से बनती थी, इसलिए इससे पैदा होने वाली बिजली ग्रीन एनर्जी की श्रेणी में दर्ज थी।

 

 

भारत में ग्रीन हाइड्रोजन की टेक्नोलॉजी पहले से है लेकिन इसकी विधि महंगी है जिसकी कॉस्टिंग कम करने पर ध्यान है। यह गैस तभी सस्ती होगी जब बड़ी मात्रा में इसका उत्पादन होगा। इसे समझने के लिए सोलर पावर का उदाहरण ले सकते हैं। 2013 में देश में पहला सोलर प्लांट लगा था, तब प्रति यूनिट खर्च 16 रुपये था। आज यह कॉस्ट 2 रुपये तक आ गई है। यह तभी हो पाया जब बड़ी मात्रा में सोलर एनर्जी पैदा की गई। यही बात ग्रीन हाइड्रोजन के लिए लागू होती है।

 

2 डॉलर तक लागत लाने पर विचार..

जानकारी के अनुसार आने वाले समय में भारत अगर प्रति किलो ग्रीन हाइड्रोजन गैस का खर्च 2 डॉलर प्रति किलो तक ले जाएगा तो ऊर्जा के क्षेत्र में इसकी उपयोगिता बढ़ेगी। अभी यह खर्च 3 से 6.5 डॉलर तक है। भारत सरकार इस खर्च को घटाने के लिए सोलर पावर की तैयारी कर रही है। भारत में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं और यह सस्ती भी है। लेकिन इस ऊर्जा का निर्यात नहीं कर सकते। इसलिए सौर ऊर्जा से ग्रीन हाइड्रोजन बनेगा और उस ऊर्जा को निर्यात कर भारत अच्छी कमाई करेगा। भारत का ध्यान आने वाले समय में ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में ग्लोबल हब बनने पर है।

 

 

 

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