देहरादून में खुला देश का पहला गोर्खा रेडियो स्टेशन घाम-छाया..
गूगल प्ले स्टोर से रेडियो का एप भी डाउनलोड किया जा सकता है..
इस रेडियो स्टेशन में गोर्खाली के अलावा हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा के कार्यक्रम आन एयर होंगे..
उत्तराखंड: गोर्खा समुदाय के वीरों की शौर्य गाथाएं अब दुनिया में कहीं भी सुनी जा सकेंगी। देहरादून के गोर्खाली समाज के लोगों ने मिलकर घाम-छाया 90.0 कम्यूनिटी एवं डिजिटल रेडियो की शुरुआत की है, जिसकी मदद से यह संभव होगा। घाम-छाया रेडियो स्टेशन की उपाध्यक्ष मधु गुरुंग ने देश का पहला गोर्खा रेडियो स्टेशन दून में खुले जाने का दावा किया है। रेडियो पर गोर्खा इतिहास, भाषा एवं संस्कृति से जुड़े कार्यक्रम ब्राडकास्ट होंगे। जिसमें गोर्खाली के अलावा हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा में भी कार्यक्रम आन एयर होंगे।
घाम-छाया रेडियो स्टेशन की उपाध्यक्ष मधु गुरुंग का कहना हैं कि उन्होंने अपने समाज की संस्कृति के संरक्षण एवं उत्थान के लिए यह प्रयास किया है। देहरादून के शहीद ले. गौतम गुरुंग ट्रस्ट एवं गोर्खाली सुधार सभा समेत पूरे गोर्खा समाज के सामूहिक प्रयास से दून में इस रेडियो स्टेशन की शुरुआत की गई है। मधु का कहना हैं कि वर्तमान में गोर्खा समाज के युवा अपनी भाषा, खाना संस्कृति भूलते जा रहे हैं।
इस प्रयास के जरिये गोर्खाओं के इतिहास एवं संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाया जाएगा। रेडियो स्टेशन सुबह सात से 11 और शाम को पांच से नौ बजे के बीच संचालित होगा। इसके अलावा गूगल प्ले स्टोर से रेडियो का एप भी डाउनलोड किया जा सकता है। उनका कहना हैं कि यह देश का पहला गोर्खा सामुदायिक रेडियो स्टेशन है।
आपको बता दे राज्यपाल ले. जनरल (सेनि.) गुरमीत सिंह ने बीते दिनों घाम-छाया 90.0 कम्यूनिटी रेडियो स्टेशन के उद्घाटन किया था। जिसमें उन्होंने कहा कि यह रेडियो स्टेशन गोर्खा समाज की आवाज बनेगा। रेडियो उत्तराखंड समेत देशभर में रहने वाले गोर्खाली समुदाय को एकता के सूत्र में बांधने के साथ ही उनकी समृद्धशाली संस्कृति, परंपराओं, भाषा, विरासत के संरक्षण में प्रभावी भूमिका निभाएगा।
साथ ही कमजोर लोगों की आवाज बनकर उनकी समस्याओं और मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठा सकता है। उन्होंने रेडियो संचालकों से महिला, बच्चों एवं दूरस्थ पर्वतीय गांवों को सशक्त करने को प्रयास करने पर भी जोर दिया। सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी का कहना हैं कि यह रेडियो स्टेशन गोर्खाली समुदाय की संस्कृति के संरक्षण एवं उत्थान में मील का पत्थर सिद्ध होगा।