आर्टिकल

ये शख्स अन्धे जरूर हैं लेकिन जब ये गाते है तो दिल रो पड़ता है..

ये शख्स अन्धे जरूर हैं लेकिन जब ये गाते है तो दिल रो पड़ता है..

ये शख्स अन्धे जरूर हैं लेकिन जब ये गाते है तो दिल रो पड़ता है..

उत्तराखंड :  अल्मोड़ा जिले के धौलछीना गांव में रहने वाले नेत्रहीन दिव्यांग जोड़ें एवं उत्तराखंड के लोक गायक संतराम और उनकी पत्नी आनंदी देवी को इन दिनों में जीवन यापन के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। कहते है प्रतिभा की न कोई उम्र होती है और न कोई मंच। जिस तरह कोयले की खान से हीरे निकल आया करते है उसी तरह कभी कभी छोटे गांव कस्बो से भी ऐसे हुनर सामने आते है जो अपने टैलेंट के दम पर ही बड़े बड़ो के लिए मिसाल बन जाते है आज हम आपको छोटे से एक गावं के एक ऐसे लोकगायक संतराम और आनंदी देवी की कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं।

 

 

 

संतराम एवं आनंदी देवी लोक गायक हैं और यह दृष्टिहीन जोड़ा आपने कई मेलों या बड़े महोत्सव में गाते हुए देखा होगा संतराम जी के मधुर गाने पहले आकाशवाणी में भी सुनने को मिलते थे. संतराम जी के हुड़के की थाप और उनकी कंठ की मधुर आवाज सभी लोगों का दिल जीत लेती है. संतराम एवं आनंदी देवी जी कुमाऊनी न्योली, छपेली, चाचरी जागर व भगनोल आदि सुनाते है. ऐसे कलाकारों को उत्तराखंड रत्न पुरस्कार जरूर मिलना चाहिए जिन्होंने अपनी सांस्कृतिक विरासत को इतनी कठिन परिस्थितियों में भी सजोये रखा है. उत्तराखंड सरकार को इनकी जरूर मदद करनी चाहिए.

 

 

भैंसियाछाना ब्लाक के ग्राम पिपली हाल निवासी धौलछीना संतराम जन्म से ही दृष्टिहीन हैं। ईश्वर ने उन्हें आंखों की रोशनी तो नहीं दी किंतु मधुर कंठ जरूर दिया। इसके चलते शुरू में संतराम आसपास के गांवों में रोपाई गुड़ाई के वक्त लगने वाले बौल प्रस्तुत करते थे। फिर जागेश्वर के श्रावणी मेला, अल्मोड़ा नंदा देवी महोत्सव, चितई गोलू महोत्सव, धौलछीना विमल कोट महोत्सव सहित शादी ब्याह के मौके पर वह हुड़के की थाप पर अपनी आवाज का जादू बिखेरने लगे।

संत राम बताते हैं की पैदा होने के तीसरे महीने उनकी आँखों की रोशनी चली गयी। माँ बाप ने ऐसे में उन्हें अकेले छोड़ दिया,आमा ने भात का माड़ खिला के जीवन बचाया धीरे धीरे कंटर बजाकर गीत गाने शुरू किए। नंदा देवी के मंदिर में पहले दफा गीत गा रहे थे तो आकाशवाणी के स्वर्गीय शंकर उप्रेती ने उनके हुनर को पहचाना और संत राम ने रेडियो से पहला गीत गाया, उनका आकाशवाणी में पहला गीत,दलिया मसूरा, दलिया मसूरा सास ब्वरियों झे झिकौर भयो मयूर की कसोरा है। इसी बीच गुरूड़ाबाँज के पास भ्वेना गाँव की आनंदी देवी से करीब 20 साल पहले संतराम ने अपने सहारे के लिए अल्प दृष्टि बाधित को जीवन संगिनी बनाया लेकिन विडंबना यह रही कि कुछ साल बाद आनंदी देवी की आंखों की रोशनी भी पूरी तरह चली गई। आनंदी देवी भी लोक गायिका हैं और पति संतराम का बराबर साथ देती हैं।

 

 

लेकिन कोरोना के कारण दोनों ही पिछले काफी समय से मेले, महोत्सवों में भागीदारी नहीं कर सके हैं, जिससे वह काफी निराश हैं। हालांकि उन्होंने उम्मीद जताई है कि जल्द ही कोरोना महामारी का अंत होगा, फिर से मेले होने लगेंगे और उन्हें भी अपनी लोक कला को प्रस्तुत करने का अवसर मिलेगा।

लोक गायक संतराम ने जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर धौलछीना में स्थित एक सरकारी कमरे में 36 साल से शरण ले रखी है। कुछ समय पूर्व स्थानीय जनप्रतिनिधियों की पहल पर उनके कमरे की मरम्मत की गई लेकिन अब कमरे की हालत फिर खराब हो चुकी है। लोक गायक होने के बावजूद भी सरकार का ध्यान कभी ऐसे लोक गायकों की तरफ नहीं जाता है।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

To Top