केदारनाथ धाम के कपाट’ खुलने से पहले होती है इनकी पूजा..
केदारनाथ के पहले रावल माने जाते है बाबा भुकंट भैरव..
बाबा भुकुंट भैरव को पौराणिक कथाओं के अनुसार केदारनाथ का पहला रावल माना गया है। इसके साथ ही उन्हें क्षेत्र का क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। इसलिए भी बाबा केदारनाथ जी की पूजा से पहले हमेशा बाबा भैरवनाथ जी की पूजा की जाती है।
उत्तराखंड: सनतान धर्म के प्रमुख धामों व 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल केदारनाथ धाम एक विशेष दर्जा रखता है। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, देश में जहां-जहां भगवान शिव या देवी के सिद्ध मंदिर हैं, वहां पर भैरवजी के मंदिर भी हैं और इन मंदिरों के दर्शन किए बिना भगवान शिव व देवी मां दोनों के दर्शन करना अधूरा माना जाता है। शिव मंदिरों मे चाहे काशी बाबा विश्वनाथ हों या उज्जैन के बाबा महाकाल। दोनों ही स्थानों पर काल भैरव के मंदिर हैं और भक्त भगवान शिव के दर्शन के बाद इन दोनों स्थानों पर आकर भी सिर झुकाते हैं जिसके बाद ही उनकी तीर्थ यात्रा पूर्ण मानी जाती है।
आपको बता दे कि ऐसे ही भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ में भी भुकुंट भैरव का मंदिर है, जो मंदिर से लगभग 300 मीटर की दूरी पर स्थित है। यहां भी हर साल केदारनाथ के कपाट खुलने से पहले भैरव मंदिर में पूजापाठ की जाती है।
बाबा भुकुंट भैरव को पौराणिक कथाओं के अनुसार केदारनाथ का पहला रावल माना गया है। इसके साथ ही उन्हें क्षेत्र का क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। इसलिए भी बाबा केदारनाथ जी की पूजा से पहले हमेशा बाबा भैरवनाथ जी की पूजा की जाती है। जिसके बाद ही विधि विधान से बाबा केदारनाथ मंदिर के कपाट खोलने की परंपरा है।
आपको बता दे कि भगवान भैरवनाथ की मूर्तियों के ऊपर कोई छत नहीं है। मान्यता हैं कि जब शीतकाल के लिए बाबा केदारनाथ जी के कपाट बंद हो जाते हैं तो,केदारनाथ मंदिर की सुरक्षा की जिम्मेदारी भैरव बाबा की होती है। परंपरा के अनुसार,बाबा केदार की चल विग्रह उत्सव डोली के धाम रवाना होने से पहले केदारपुरी के क्षेत्र रक्षक भैरवनाथ की पूजा का विधान है। भगवान केदारनाथ जी के शीतकालीन गद्दीस्थल उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में विराजमान भैरवनाथ की पूजा के बाद भैरवनाथ केदारपुरी को प्रस्थान करते है। आपको बात दें कि केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने से पूर्व बाबा भैरवनाथ की पूजा-अर्चना केवल मंगलवार और शनिवार को ही की जाती है।
यहा कहानी भी हैं चर्चित..
कहा जाता है कि साल 2017 में मंदिर समिति और प्रशासन के लोगों को कपाट बंद करने में काफी परेशानी हुई थी। कपाट के कुंडे लगाने में दिक्कत हो रही थी और फिर उसके बाद पुरोहितों ने भगवान केदार के क्षेत्रपाल भुकुंट भैरव का आह्वान किया तो कुछ ही समय के बाद कुंडे सही बैठ गए और ताला लग गया। यहां शीतकाल में केदारनाथ मंदिर की सुरक्षा भुकुंट भैरव के भरोसे ही रहती है।