नाकारा स्वास्थ्य व्यवस्था की भेंट चढ़ी एक और गर्भवती महिला..
आयुर्वेदिक पंचकर्मा की नर्स हुई शिकार..
रुद्रप्रयाग : न जाने कब तक पहाड़ की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की कीमत पहाड़ की महिलाओं को चुकानी पड़ेगी। न जाने कब तक नाकारी व्यवस्था के कारण असमय ही पहाड़ के लोगों को अपनी जिंदगी गवानी पड़ेगी। स्वास्थ्य जैसी प्राथमिक सुविधा को बेहतर बनाने के ढोल पिछले 21 सालों से पीटे जा रहे हैं लेकिन यहां के अस्पताल जिंदगी देने के बजाय हत्यारे बन रहे हैं। यूँ तो रुद्रप्रयाग अस्पताल अपनी बदहाली के लिए पहले से मशहूर है लेकिन अब यह अस्पताल हत्यारे की सूची में शामिल हो गया है। इस अस्पताल की लापरवाही के कारण कहीं गर्भवती महिलाएं दम तोड़ चुकी हैं। इस बार इसी अस्पताल की आयुर्वेदिक पंचकर्मा की नर्स को इसकी कीमत चुकानी पड़ गई है।
दरअसल गुप्तकाशी क्षेत्र की निधि पत्नी दीपक रगडवाल हाल महादेव मुहल्ला रूद्रप्रयाग जिला अस्पताल के आयुर्वेदिक पंचकर्म में नर्स हैं बीते रोज उनको प्रसव वेदना हुई तो वे जिला अस्पताल पहुंचे और करीब 11:00 बजे उन्हें वहां भर्ती किया गया। शाम 4:15 बजे उनकी डिलीवरी हुई तो एक स्वस्थ बच्चे ने जन्म लिया लेकिन गर्भवती निधि का रक्त स्राव बंद नहीं हुआ। करीब 2 घंटे तक गर्भवती महिला यहां जीवन बचाने के लिये तड़प रही थी लेकिन संसाधन ना होने के बावजूद यहां के डॉक्टर बेकार कोशिश करते रहे और अंत में जब बचने की उम्मीद ना के बराबर हुई तो डॉक्टरों ने हायर सेंटर के लिए रेफर कर दिया। बताया जा रहा है कि महिला की बेस अस्पताल पहुंचते ही मौत हो गई थी।
रुद्रप्रयाग जिला चिकित्सालय में इस केस को देख रहे डॉ दिग्विजय सिंह रावत ने बताया की महिला की नॉर्मल डिलीवरी की जा रही थी और डिलीवरी सफलतापूर्वक हो भी गई थी और एक 4 किलो ग्राम के स्वास्थ बच्चे को जन्म दिया। लेकिन रक्तस्राव बंद न होने के कारण उन्हें आगे रेफर करना पड़ा उन्होंने कहा कि उनके द्वाराकाफी कोशिश की गई लेकिन वह ब्लडिंग रोकने में सफल नहीं हो पाए। डॉ रावत ने बताया कि रक्तस्राव इतना हो चुका था कि उनका बचना नामुमकिन था।
गर्भवती महिला की मौत के बाद परिजनों में कोहराम मच गया है लेकिन जिला अस्पताल की नाकारा स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर भी एक बार फिर से सवाल खड़े होने बैठ गए हैं। इससे पहले भी कहीं गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी करते समय यहां मौतें हो चुकी हैं बावजूद इन घटनाओं से सबक लेकर व्यवस्थाओं को सुधारने की दिशा में कार्य नहीं किया जा रहा है। जिंदगी देने के बजाय आखिर क्यों यह अस्पताल हत्यारे बन रहे हैं और क्यों असमय लोंगो को अपनी जिन्दगी गवानी पड़ रही है। करोड़ों रुपए हर साल रुद्रप्रयाग जिला चिकित्सालय पर खर्च हो रहे हैं और यहां के जनप्रतिनिधि से लेकर अधिकारी तक जिला अस्पताल को सुविधा संपन्न बनाने के ढोल पीटते पीटते धक नहीं रहे हैं लेकिन स्थिति यह है कि अस्पताल में जाने से भी लोग भय खा रहे हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के नाम पर भाजपा-कांग्रेस हर बार सत्ता पर काबिज तो हो जाती है लेकिन सत्ता पाने के बाद व पहाड़ों की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को भूल जाते हैं। इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है कि पहाड़ वासी मरे या जिंदा रहे, यहां के अस्पताल भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए हैं और व्यवस्थायें भगवान भरोसे। हे सत्ता के मठाधीशो लानत है तुम पर कि तुम्हें पहाड़ में असमय मरती हुई जिंदगी की चीखें नहीं सुनाई देती।