फिर ये चुनाव नशे की भेंट चढ़ा पहाड़..
उत्तराखंड में युवा पीढ़ी को खोखला कर रही हैं नशे की लत..
प्रदेश में चुनावी फिजाओं में सभी राजनीतिक पार्टियां और अन्य पार्टियां अपने वोटरों को लुभाने का कोई कसर नहीं छोड़ती हैं। यहां तक कि बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक के हाथ में शराब की बोतल और मुर्गा (मांस) थमा देते हैं, और वोटर भी बोतल मिलते ही अपना वोट बेच देते हैं।
उत्तराखंड: प्रदेश में चुनावी फिजाओं में सभी राजनीतिक पार्टियां और अन्य पार्टियां अपने वोटरों को लुभाने का कोई कसर नहीं छोड़ती हैं। यहां तक कि बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक के हाथ में शराब की बोतल और मुर्गा (मांस) थमा देते हैं, और वोटर भी बोतल मिलते ही अपना वोट बेच देते हैं। क्या वाकई ही हमारी वैल्यू सिर्फ एक शराब की बोतल जितनी ही रह जाती हैं। जबकि राज्य के कई क्षेत्रों में ऐसी अनेक समस्या हैं जिनका समाधान आज तक नहीं हो पाया हैं। हर बार चुनाव आते है, और हम एक शराब की बोतल तक ही सिमित रह जाते हैं। उत्तराखंड को बने हुए 21 साल हो गए हैं इसके बावजूद भी हमने कभी अपने क्षेत्र की समस्याओं को देखते हुए वोट नहीं दिया हैं।
जबकि हमारे क्षेत्र में रोजगार,स्वास्थ्य जैसे कई तमाम समस्या हैं। जिनका निराकरण करना अनिवार्य हैं। स्वास्थ्य की अगर बात करे तो ना जाने एक दिन में कितनी गर्भवती महिलाओं की मौत हो जाती हैं। अस्पताल पहुंचने के लिए उन्हें ना जाने कितनी कठिनाइयों का सामना कारण पड़ता हैं। अस्पताल अगर पहुंच भी गए तो वहां पर उनको वो मूलभूत सुविधाएँ नहीं मिलती जो एक गर्भवती महिला को मिलनी चाहिए। आपतकालीन स्थिति में भी यहां पर एम्बुलेंस नहीं पहुंच पाती हैं जिसके कारण हर एक गरीब व्यक्ति दम तोड़ देता हैं। लोगो के पास प्राईवेट अस्पताल में अपना ईलाज करवाने का भी कोई विकल्प नहीं होता। बमुश्किल गरीब व्यक्ति दिहाड़ी मजदूरी करके अपने परिवार का पालन पोषण करता हैं।
पहाड़ के अस्पताल बस एक मात्र रेफर सेंटर ही बन कर रह गए हैं। जहां केवल भवन तो बने होते है, लेकिन यहां न तो डॉक्टर मौजूद होते हैं और न ही दवाइयां उपलब्ध होती हैं। जो कि अपने आप में ही किसी बीमार से कम नहीं हैं। वही रोजगार की अगर बात करे तो कई युवा बेरोजगारी के कारण आत्महत्या कर देते है। रोजगार उत्तराखंड में एक मात्र नाम रह गया हैं। बमुश्किल अगर उत्तराखंड में कही भर्ती निकलती भी हैं तो वह पर नेता अपने चहेतों को चिपका देते हैं। क्यूंकि उन्हें पता होता हैं कि चुनाव के समय उत्तराखंड की जनता को कैसे एक शराब की बोतल देकर मुगला बनाया जाना हैं।
बावजूद इसके भी उत्तराखंड की जनता चुनावी समय में रोजगार, स्वास्थ्य को मुद्दा न बनाकर एक शराब की बोतल पर ही खुश हो जाती हैं। हर बार विधानसभा चुनाव आते हैं और हर बार चुनावी नशे की भेंट चढ़ा जाते हैं पहाड़। प्राकृतिक रूप से सुंदर दिखने वाली इस देवभूमि को देखकर कोई सोच भी नहीं सकता कि यह के लोग रोजगार, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।
प्रदेश सरकार यह भी दिखाती आई है कि वह नशाखोरी के खिलाफ बेहद सख्त है। लेकिन चुनाव के समय खुद ही सबके हाथों में शराब की बोतले थमाते नजर आती हैं तमाम पार्टियां। प्रदेश की सत्ता पर काबिज रही सरकारों की कथनी और करनी में बड़ा अंतर होता है। इसका अंदाजा इस तथ्य से ही लगाया जा सकता है कि राज्य गठन के 21 सालों में शराब का कारोबार तो खूब फला फूला लेकिन शिक्षा,स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को हल करना सरकार भूल ही गई हैं ।
उत्तराखंड गठन के बाद सरकार सिर्फ अपने पद तक ही सिमित रह जाती है। राज्य गठन के बाद आज भी पहाड़ो में स्वास्थ्य व्यवस्था सुधरने की जगह खत्म होती जा रही हैं और आज पहाड़ों में स्वास्थ्य व्यवस्था का अस्तित्व मिट जाने के कगार पर आ पहुंचा है। क्यूंकि यहां पर अस्पताल के नाम पर भवन तो बने हुए हैं। लेकिन उन भवनो में डॉक्टरों की तैनाती आज तक नहीं हो पायी हैं।