उत्तराखंड

उत्तराखंड के एक ही जिले के 35 गांव आबादी विहीन..

उत्तराखंड के एक ही जिले के 35 गांव आबादी विहीन..

उत्तराखंड : जनपद रुद्रप्रयाग के ग्रामीण छेत्रों में सामाजिक आर्थिक और सुदृढ़ आजीविका या रोजगार न होने के कारण यहां से करीब 52 प्रतिशत लोगों ने पलायन किया। रुद्रप्रयाग चार धाम यात्रा मार्ग के मुख्य पड़ावों में से एक है केदारनाथ धाम होते हुए भी रुद्रप्रयाग जिले की प्रति व्यक्ति आय प्रदेश में सबसे कम है। यहां से करीब 22 हजार लोग पलायन कर चुके हैं और 35 गांव गैर आबाद पाए गए हैं। मंगलवार को जारी हुई पलायन आयोग की रिपोर्ट में यह तस्वीर सामने आई।

पिछले 10 सालों में अगस्त्यमुनी की 153 ग्राम पंचायत, जखोली की 98 और ऊखीमठ की 65 ग्राम पंचायतें अस्थायी पलायन से प्रभावित हुईं हैं। इसका मतलब यह है कि इतने गांवों के लोग गांव छोड़ चुके हैं, लेकिन किसी न किसी बहाने गांव से संपर्क बनाए हुए हैं। कुल मिलाकर इस तरह के गांवों की संख्या 316 है। पूर्ण पलायन से प्रभावित 230 गांव हैं।7835 लोग पूर्ण रूप से पलायन कर चुके हैं। 26 से 35 आयु वर्ग में करीब 40 प्रतिशत पलायन हुआ है और यह अन्य वर्गों की तुलना में अधिक है। अब ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन और ऑल वेदर रोड परियोजना से इस जिले को सबसे ज्यादा उम्मीद है। माना जा रहा है कि इन दोनों परियोजनाओं के जरिये इस जिले की तस्वीर काफी हद तक बदल जाएगी।

पिछले साल ही केदारनाथ में करीब 10 लाख तीर्थयात्रियों ने दर्शन किए। इसके बावजूद आर्थिक मोर्चे पर रुद्रप्रयाग जिले के हालात सही नहीं हैं। पलायन आयोग के अध्यक्ष एसएस नेगी के मुताबिक रुद्रप्रयाग जिले की प्रति व्यक्ति आय मात्र 83551 है, जबकि हरिद्वार जिले की दो लाख से अधिक है। यही वजह है कि रुद्रप्रयाग पर पलायन की खासी मार है।

पलायन..

गांवों से मैदानी शहरों में बसे लोगों ने पहाड़ों से उतरते ही अपनी खेती बाड़ी बंजर छोड़ दी. आज हालत ये हैं कि वे शहरी गंदगी के जिस रहन-सहन में रहने को विवश हैं, उससे वे अनेक तरह की बीमारियों के शिकार होते जा रहे हैं. लेकिन गांव में रोजगार, शिक्षा न होने के कारण लोगों को मज़बूरी के साथ गांव से पलायन करना पड़ता हैं अगर सरकार गांव के पलायन पर थोड़ा भी ध्यान दे तो लोग कभी भी गांव से पलायन न करते।

पलायन आयोग द्वारा राज्य बनने के पहले 8-10 वर्षों के हालात की अनदेखी करने से पलायन के कारणों की सही तस्वीर का पता लगाया जाना मुमकिन नहीं. पलायन आयोग रिपोर्ट कहती है कि 10 साल में 700 गांव बंजर हो गए. 3.83 लाख लोगों ने अपना गांव ही छोड़ दिया. इनमें से 1,18,981 लोगों ने स्थायी तौर पर उत्तराखंड को बाय-बाय कह दिया. हालांकि रिपोर्ट को जिस हड़बड़ी व जल्दबाजी में तैयार किया गया, उसके पीछे मकसद लोगों की समझ से परे है।

सरकारी योजनाओं का भी फायदा नहीं ले पा रहा जिला..

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम से लेकर अन्य सरकारी योजनाओं का भी लाभ जिले के लोग नहीं ले पा रहे हैं। 2017-18 के मुकाबले 2019-20 में प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम में आवेदकों की संख्या में 13 प्रतिशत और रोजगार में तीन प्रतिशत की कमी आई। जिले में कुल डेयरियों में से मात्र 24 प्रतिशत ही सक्रिय रह पाती हैं। गंगा गाय डेयरी महिला विकास समिति तो जिले में एक भी नहीं है। जिले में दूध की मांग अधिक है, लेकिन स्थानीय आपूर्ति 10 प्रतिशत ही है।

पर्यटन योजनाओं का भी नहीं है फायदा..

पर्यटन के लिए पहचाने जाने वाले इस जिले के जखोली विकासखंड में तो एक भी होम स्टे नहीं है। वर्ष 2019-20 में यहां बाकी के दो विकासखंडों में 10 होम स्टे थे, जिनसे कुल 15 लोगों को रोजगार मिला। प्राइवेट वाहनों की तुलना में कॉमर्शियल वाहनों का पंजीकरण लगातार घट रहा है और यह अब 16 प्रतिशत ही रह गया है।

 

 

 

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