प्रदीप रावत
गुप्तकाशी : कोरोना वायरस को लेकर जब पूरा विश्व समुदाय संकट में है और खासकर देश में इस संक्रमण से बढ़ते आंकड़े हम सभी के लिए चिंता का विषय बन चुके है। लेकिन संकट की इस घड़ी में मेरे लिए फिलहाल खुशी की बात यह है कि मैं अपने गाँव में हूँ और जब देश लॉकडाउन हो चुका है तो गाँव में हमारे लिए प्रकृति की अनेक चीज़े उपलब्ध है। गांवों के पास महामारियों और अकाल में लड़ने के प्रर्याप्त अनुभव भी है। बुजुर्गो का कहना है बहुत समय पहले जब एक बार हैजा जैसी बीमारी फैली थी तो उस समय भी गाँव में ऐसा माहौल था। कुछ दिनों पहले जो कोरोना गाँव के लिए सिर्फ टिक टोक एवं लाइक के कॉमेडियन वीडियो तक ही सीमित था वही कोरोना आज भय का कारण बन चुका है । कोरोना को लेकर आजकल गाँव में चर्चाएं जोरो पर है, युवा, वृद्ध, बच्चे सभी इस बीमारी के बारे में चर्चाएं करते नजर आ रहे है, सारे लोग इस खतरे से सचेत हो गए और टेलीविजन के पास न्यूज चैनल खोलकर इसकी अपडेट देखते रहते है। गाँव में सभी लोग सुशिक्षित है और इस बात को भलीभांति जानते है कोरोना के संक्रमण का कोई इलाज नहीं है और नही इससे बचने का कोई टीका या वैक्सीन उपलब्ध है।
लॉकडाउन के नियमों का भी अच्छे से अनुपालन हो रहा है गाँव के जो युवा बाहरी राज्यों में गए है और वापस गाँव की तरफ आ रहे है उन्हें टेस्टिंग के बाद ही गाँव में एंट्री मिल पा रही है इसके अलावा कुछ दिनों तक उन लोगों को परिवारजनों से अलग कर उनकी निगरानी रखी जा रही है और उनकी सूची उपलब्ध करायी गयी है। दिनप्रतिदिन गाँव में इस बीमारी से लड़ने के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है, ग्राम प्रधान नवीन रावत नबू द्वारा एक निगरानी समिति का गठन किया गया है जो लॉकडाउन के नियमों का अनुपालन एवं बाहरी व्यक्तियों की निगरानी सुनिश्चित कर रही है।
आजकल सभी लोग अपने परंपरागत संसाधनों का प्रयोग कर रहे है, लोग खेती बाढ़ी पर मेहनत करने की रणनीति बना रहे है, गाँव के कुछ युवा जंगलो से धन्धुरा जो कि एक औषधि ही नही बल्कि खान-पान में सब्जी के रुप में प्रयोग की जाती है उसके लेने के लिए जंगलो की तरफ निकल रहे है।
मुझे लगता है मैं अपने ग्राम में सुरक्षित हूँ और आगे भी सुरक्षित रहूँगा।