उत्तराखंड

ये आपदा प्राकृतिक नहीं, मानव जनित है..

धौली गंगा ने मचायी चमोली में तबाही..

वैज्ञानिकों और अफसरों ने कर दिये अपने मोबाइल स्विच ऑफ..

उत्तराखंड: तपोवन-विष्णुगाड जलविद्याुत परियोजना। 16 साल का इंतजार। 4 गुणा 130 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य। 2978.5 करोड़ रुपए का अनुमानित निवेश और परिणाम जीरो। जनहानि अलग से। केदारनाथ आपदा के बाद सवाल उठे थे कि पहाड़ों के साथ इस तरह से छेड़छाड़ होनी चाहिए? तब हमने तौबा की लेकिन कुछ समय बाद ही हम सब भूल गये। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि हिमालय में चोराबाड़ी ग्लेशियर की तर्ज पर हिमालय में 800 से भी अधिक झीलें हैं। हम फिर भूल गये। इस बीच कई पावर प्रोजेक्ट तैयार हुए। आल वैदर रोड बनने लगी बिना यह जाने की सुक्खी टाप पर टाइटोनिक प्लेट तेजी से मुड़ रही है और एक छोटा कस्बा उसकी खोखली गुफा में समा सकता है। हमने इसकी परवाह नहीं की कि तोताघाटी को बमों से उड़ा दिया गया।

 

वीर माधो सिंह भंडारी द्वारा अपने बेटे की कुर्बानी देकर लाई गयी कूल से मलेथा की उपजाऊ भूमि को हमने रेलवे स्टेशन के लिए खोद डाला। एक सुरंग माधो सिंह भंडारी ने गांव के लोगों को पानी के लिए खोदी तो रेलवे ने यहां दो बड़ी सुरंग विकास के नाम पर माधो सिंह भंडारी के सपनों को कुचलने के लिए खोद डाली। आखिर ये कैसा विकास? हम आपदा के घर में शीशे के मकान बना रहे हैं? हम जिस विकास की बात करते हैं वो प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहा है। हम और हमारे वैज्ञानिक चुप्पी साधे हैं। आज धौली गंगा में आई तबाही के बाद मैंने कई वैज्ञानिकों और अधिकारियों को फोन से जानकारी मांगने की कोशिश की लेकिन अधिकांश वैज्ञानिकों और संबंधित अधिकारियों के मोबाइल स्विच आफ हैं।

 

विष्णुगाड-तपोवन परियोजना..

उत्तराखंड के चमोली जिले में साल 2004 में शुरू हुई इस परियोजना को वर्ष 2012 में बनकर तैयार हो जाना था। इसका निर्माण एनटीपीसी कर रहा है। लेकिन उसी साल सुरंग निर्माण के दौरान कच्चे पहाड़ का कीचड़ व मलबा मशीन पर आ गिरा और वह सुरंग में ही दब गई इसके साथ ही परियोजना का कार्य भी ठप पड़ गया। बता दें कि परियोजना की 12.3 किमी लंबी सुरंग के 8.3 किमी हिस्से में कार्य टीबीएम मशीन से होना था यहां टीबीएम की वजह से कई साल काम ठप्प पड़ा रहा। वहीं पिछले साल अक्टूबर में बताया गया था कि तपोवन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना पर 70 फीसद कार्य पूरा हो चुका है। उम्मीद जताई जा रही थी कि परियोजना अगले वर्ष से बिजली उत्पादन करने लगेगी। इस परियोजना के पूरा होने से उत्तराखंड समेत अन्य राज्यों की बिजली आवश्यकता पूरी की जाएगी। आज आई आपदा से पूरा प्रोजक्ट जल समाधि ले चुका है।

 

टीबीएम दुनिया की अत्याधुनिक मशीन है इस मशीन का टनल निर्माण में उपयोग देश में पहली बार किया गया था, कहा जाता है कि जहां कठोर चट्टानी क्षेत्र होता है, वहां ये मशीन एक माह में 800 से 900 मीटर तक पहाड़ काट देती है। यह पहाड़ी के एक छोर से सुरंग काटते आगे बढ़ती है और दूसरे छोर से ही बाहर निकलती है। इसे बीच में बैक नहीं किया जा सकता है।

कई सवालों के घेरे में आपदा..

क्या फरवरी माह में ग्लेशियर टूट सकता है? जब दो दिन पहले हिमालय में ताजी बर्फ गिरी हो तो इतना पानी आखिर कहां और कैसे आ सकता है? क्या ये वाकई एवलांच था या बमों के विस्फोट के कारण उपजी स्थिति? यदि ग्लेशियर के पास पहले से ही पानी जमा था तो हिमालयी झीलों पर रिसर्च और निगरानी करने वाले वैज्ञानिक कहां सो रहे थे? इसे प्राकृतिक आपदा कहें या मानव जनित आपदा? आखिर इसके लिए दोषी कौन है? क्या हिमालय जैसे युवा पहाड़ में अत्याधिक छेडछाड़ सही है? आखिर हम आपदाओं के घर में क्यों बना रहे हैं शीशे के महल? आखिर इस मामले की निष्पक्ष और सही जांच कौन करेगा?

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