शिक्षिका ने सरकारी स्कूल को कॉन्वेंट स्कूल में बदला..
हरीश गुसाईं
अगस्त्यमुनि। कौन कहता है आसमान में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। दुष्यत कुमार की इस कविता को आत्मसात करते हुए दुर्गम क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय की एक शिक्षिका ने वह कर दिखाया जो शहरी क्षेत्र के सुविधा सम्पन्न विद्यालय भी नहीं कर पा रहे हैं। एक ओर जहां शहरी क्षेत्रों में खुलने वाले अधिसंख्य प्राइवेट विद्यालय सरकारी विद्यालयों की बन्दी का कारण बन रहे हैं वहीं दूसरी ओर इस शिक्षिका ने शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से प्राइवेट विद्यालय ही बन्द करा दिया। उसने सिद्ध कर दिया कि यदि मन में सच्ची लगन और दृढ़ निश्चय हो तो कुछ भी असम्भव नहीं है। 2014 में जहां छात्र संख्या केवल एक रह गई थी। आज वहां पर 20 छात्र छात्रायें अध्ययन कर रहे हैं।
अगस्त्यमुनि ब्लाॅक मुख्यालय से 20 किमी की दूरी पर स्थित उच्छाढ़ुंगी न्याय पंचायत के अन्तर्गत ग्राम पंचायत कान्दी के राजस्व ग्राम जाबरी का राजकीय प्राथमिक विद्यालय बना है। स्कूल में प्रवेश करते ही सभी छात्र छात्रायें साफ सुथरे गणवेश में नजर आते हैं। छात्र छात्रायें न केवल पढ़ाई में बल्कि सामान्य ज्ञान एवं अंग्रेजी में भी अच्छा दखल रखते हैं। मध्याह्न भोजन डायनिंग टेबिल पर खाया जाता है। यह सब सम्भव हुआ वहां की प्रभारी प्रधानाध्यापिका अरूणा नौटियाल एवं सहायक अध्यापिका चन्दा रावत के अथक प्रयासों से। उन्होंने एक दुर्गम क्षेत्र के विद्यालय को कान्वेन्ट विद्यालय में बदल दिया। उनका यह प्रयास उन शिक्षकों के लिए एक मिशाल भी है जो सुविधाओं का रोना रोकर शिक्षण में रूचि नहीं लेते हैं।
वर्ष 2006-07 में सर्व शिक्षा अभियान के तहत खुला प्राथमिक विद्यालय जाबरी शुरू से ही जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों की अनदेखी का शिकार बना रहा। पहले इसका संचालन प्रावि कान्दी में ही हुआ। विद्यालय भवन की स्वीकृति के बाबजूद बन नहीं पाया। इसकी वजह से निरन्तर इसकी छात्र संख्या घटती चली गई। वर्ष 2009 में विद्यालय में आई शिक्षिका अरूणा नौटियाल ने विद्यालय में प्रभारी प्रधानाध्यापिका का चार्ज सम्भाला। उसके बाद से ही उन्होंने विद्यालय के अपने भवन के लिए जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों से वार्ता की। जिसमें उन्हें पाचं साल बाद सफलता मिली और खण्ड शिक्षा अधिकारी केएल रड़वाल एवं तत्कालीन विधायक शैलारानी रावत के सहयोग से 2014 में विद्यालय को अपना भवन मिल पाया। भवन तो मिला परन्तु छात्र संख्या घट कर एक रह गई और विद्यालय पर बन्द होने की तलवार लटक गई।
अरूणा नौटियाल ने अधिकारियों से एक मौका देने का अनुरोध किया। उनकी लगन को देखते हुए उन्हें अधिकारियों ने मौका तो दिया साथ ही उन्हें शीघ्रातिशीघ्र छात्र संख्या बढ़ाने के निर्देश भी दिए। इसी बीच गांव में एक प्राइवेट विद्यालय भी खुल गया। अब उनके सामने दो चुनौतियां थी। एक तो अपने विद्यालय को बन्द होने से बचाना दूसरा अभिभावकों को अपने पाल्यों को सरकारी विद्यालयों में लाने के लिए प्रेरित करना। इसके लिए उन्हें प्राइवेट विद्यालय से कम्पटीशन करना था। परन्तु उन्होंने हार नहीं मानी। और सर्वप्रथम विद्यालय को सुसज्जित करने का बीड़ा उठाया। विद्यालय में सभी कक्षाओं में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षण कार्य हो रहा है। प्रत्येक शनिवार को दोनों शिक्षिकाओं द्वारा एक घण्टे कौशल कार्य के तहत गुलदस्ते, खिलौने, पेन्टिंग सहित कई रोचक शिक्षण की सामाग्री बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है।
सभी छात्र छात्राओं को ड्रेस, नेमप्लेट एवं टाई की समुचित व्यवस्था की गई है। वह भी तब जब कि उनका वेतन कई माह तक नहीं मिल पाता है। और मिलता भी है तो टुकड़ों में। इसके बाबजूद उन्हें न कोई गिला है न कोई शिकायत। वह अपना कार्य पूरी लगन एवं ईमानदारी से कर रही हैं। उनकी यह मेहनत काम आई और आज विद्यालय में छात्र संख्या 20 तक पहुंच गई है। जबकि उनके लिए चुनौती बना प्राइवेट विद्यालय बन्द हो चुका है। उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में बेहाल प्राथमिक शिक्षा की बेहतरी के लिए अरूणा की यह पहल उम्मीद तो जगाती ही है।
जाबरी की शिक्षिका अरूणा नौटियाल एवं चन्दा रावत ने बेहतरीन कार्य कर विद्यालय को एक माॅडल विद्यालय बना दिया है। उनके इस अभिनव प्रयोग को ब्लाॅक के अन्य विद्यालयों में भी अपनाया जायेगा। उनका यह प्रयास अन्य शिक्षकों को भी प्रेरित करेगा।
केएल रड़वाल (खण्ड शिक्षा अधिकारी, अगस्त्यमुनि) – प्रावि
सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में अरूणा द्वारा प्राथमिक शिक्षा में किया गया यह प्रयोग उनकी दूरदर्शिता को दिखाता है। ऐसी शिक्षिका को राष्ट्रपति पुरस्कार मिलना ही चाहिए।
देवेश्वरी नेगी (जिला पंचायत सदस्य, उच्छाढ़ुंगी)
