उत्तराखंड

लोकप्रिय हो रही है सिमरन के हौसले की जीत पुस्तक..

रोल माॅडल बनकर उभर रही हैं बैनोली के रिंगेड़ गांव निवासी सिमरन..

फंगस जैसी बीमारी से जूझने के बावजूद हौसला नहीं हुआ कम..

हेमंत चौकियाल

रुद्रप्रयाग:  कहते हैं अगर हौसला हो तो बड़ी से बड़ी बाधा से भी पार पाया जा सकता है। एक ऐसी ही मिसाल बनकर अपने जैसे कई लोगों के लिए रोल मॉडल बनकर उभरी हैं, बैनोली के रिंगेड़ गांव की सिमरन। जो न केवल लाखों लोगों में एक को होने वाली बीमारी से पार हुई, बल्कि समाज को भी एक सकरात्मक संदेश दिया कि किसी भी दशा में अपना मनोबल न टूटने दें। जनपद के जखोली विकासखण्ड की ग्राम पंचायत बैनोली का एक छोटा सा कस्बा है रिंगेड़। इसी गांव में 15 जून 1997 को टैक्सी ड्राइवर बीर सिंह रावत और गृहणी सुनीता के घर में एक सामान्य बालिका का जन्म हुआ।

 

छः बर्ष की उम्र तक आते-आते सिमरन फंगस के कारण नसों की एक अजीब सी बीमारी (जिसमें नसें कमजोर होने लगती हैं और शरीर के जोड़ों में दर्द के साथ जोड़ों पर फफोले उभर आते हैं, जो सूखने पर कील चुभने जैसा दर्द देते हैं) से ग्रसित हो गई। बकौल दिल्ली एम्स न्यूरोलाॅजी के विभागाध्यक्ष के अनुसार फंगस से होने वाली इस बीमारी के होने की दर हजारों में से किसी एक को होने की संभावना होती है। इसे भाग्य की विडंबना कहें या प्रारब्ध कि सिमरन उन हजारों लोगों में से एक है जो इस बीमारी से ग्रसित हुई। लेकिन कहते हैं कि हौसला है तो आप सभी संभावनाओं और धारणाओं को बौना साबित कर सकते हैं। अपने आत्मबल से कुछ ऐसा ही कर दिखाया है सिमरन ने।

 

तीन भाई बहिनों में सबसे बड़ी सिमरन ने अपनी शिक्षिकाओं के हौसला आफजायी से न केवल बार-बार बाधित हो रही पढ़ाई को जारी रखा, बल्कि साहित्य सृजन में भी हाथ बढ़ाया। वर्ष 2010 में कक्षा आठवीं उत्तीर्ण करने के बाद कक्षा नौ की पढ़ाई अर्धवार्षिक परीक्षाओं के बाद अस्वस्थता (पैदल चलने में असमर्थता के कारण) के चलते छोड़नी पड़ी। वर्ष 2014 में सिमरन ने व्यक्तिगत छात्रा के रूप में कक्षा 9वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। बकौल सिमरन उसके बार-बार टूटते हौसले को बनाये रखने वालों में पहला नाम राउप्रावि बैनोली में अध्यापिका श्रीमती गीता नौटियाल का है। श्रीमती गीता नौटियाल हिन्दी साहित्य से पीएचडी हैं और बहुत उच्च कोटि की अध्यापिका और साहित्य सेवी हैं। सिमरन बताती हैं कि जब भी वह निराश हो जाती तो नौटियाल मैडम ने न केवल उसे निराशा से बाहर निकाला, बल्कि मार्ग दर्शन भी किया।

 

 

पहले केवल अपनी बीमारी और अपने अनिश्चित भविष्य के बारे में ही सोचती रहती थी, मगर डॉ गीता नौटियाल का मार्गदर्शन मेरा मनोबल बढ़ाता रहा। मेरे पिता ने भी मुझे सिखाया कि निराशा से नहीं बल्कि आत्मबल से ही हम अपनी कमजोरियों पर विजय पाकर स्वयं अपना पथ तय कर सकते हैं। सिमरन की हालिया प्रकाशित पुस्तक ’हौसले की जीत’ जहां एक ओर उसके संघर्ष का दस्तावेज है, तो वहीं उन संभावनाओं की किरणें भी, जो उसे भविष्य में उच्च कोटि के साहित्यकारों की श्रेणी में खड़ा करने की उम्मीद जगा रही है।

 

अपनी इस पुस्तक में सिमरन ने चार कविताएं, सात कहानियां और एक नाटक से इस छोटी सी उम्र में ही उन संभावनाओं के अंकुर दिखाये हैं, जो भविष्य में उसे प्रथम पंक्ति के साहित्यकारों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर सकती हैं। सिमरन की प्रतिभा को देखते हुए हाल ही में कलश संस्था द्वारा उसे सम्मानित भी किया गया। सिमरन ने अपनी पुस्तक हौसले की जीत प्रकाशित करने के लिए श्री कम्युनिकेशन की गंगा असनोड़ा थपलियाल और अजीम प्रेमजी फाउण्डेशन के डॉ प्रदीप अन्थवाल का विशेष आभार व्यक्त किया।

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