इन्द्रेश मैखुरी
उत्तराखंड में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के नेतृत्व वाली सरकार ने तय किया है कि जड़ी-बूटी का क्रय मूल्य बाबा रामदेव की कंपनी-पतंजलि योगपीठ तय करेगी.आयुर्वेदिक दवाइयों की निर्माता कंपनी को जड़ी-बूटियों के न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने का अधिकार देना वैसा ही है,जैसा शिकारी को शिकार के जीवित रहने का समय तय करने का अधिकार देना.
पर त्रिवेंद्र सिंह रावत जी कोई मामूली आदमी थोड़े हैं,जो ऐसी बातें न सोच सकें.वे डबल इंजन की सरकार के मुख्यमंत्री हैं.वो जो न करें सो कम है!वो चाहें तो बिल्ली को दूध की रखवाली का काम सौंप दें !
उत्तराखंड को हर्बल स्टेट बनाने की जुमलेबाजी भाजपा के पहले राज में ही शुरू हुई थी.हर्बल स्टेट बनाने के लिए तो जमीनी स्तर पर ढेर सारी योजनाएं बनाने की जरूरत है.उन काश्तकारों को प्रोत्साहित करने के ठोस उपाय करने की जरूरत है,जो अपने दम पर जड़ी-बूटी उत्पादन में लगे हैं.
चमोली जिले के मंडल में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा1980 के दशक में जड़ी-बूटी शोध संस्थान स्थापित किया गया था.लेकिन सरकारी उदासीनता के चलते यह संस्थान हाशिये पर है.इस संस्थान को शोध के साथ-साथ जड़ी-बूटी सम्बन्धी सभी मामलों में नोडल एजेंसी बनाया जा सकता था.तब शायद हर्बल स्टेट जैसे शब्द कुछ आकार ग्रहण कर पाते.लेकिन यहां तो हर्बल स्टेट बनाने का जिम्मा ऐसी सरकार के कंधों पर है,जो जड़ी-बूटियों का मूल्य तय करने का ‘कष्ट’ उठाने को भी तैयार नहीं है. जो जड़ी-बूटियों का मोल समझने को राजी नहीं, वे क्या खाक जड़ी-बूटी प्रदेश बनाएंगे?
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत से यह सवाल पूछना है कि जड़ी-बूटियों का क्रय मूल्य तय करने का काम भी यदि सरकार नहीं करेगी तो फिर सरकार करेगी क्या?नौकरियों आउटसोर्स की जा चुकी हैं.वो उपनल या अन्य ठेके के जरिये दी जा रही हैं.मेडिकल कॉलेज फौज चलाएगी,जड़ी-बूटियों का क्रय मूल्य रामदेव तय करेंगे.मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने तो लगता है,आउटसोर्सिंग का कीर्तिमान बनाने की ठान ली है.
विधानसभा के बजट सत्र में उन्होंने अपने अधीन आने वाले विभागों के सवालों का जवाब देने का जिम्मा भी अपने मंत्रियों को आउटसोर्स कर दिया.जब विधानसभा में सवालों के जवाब से लेकर नीति बनाने का काम तक आउटसोर्स कर दिया जा रहा है तो प्रचंड बहुमत से जीते हुए त्रिवेंद्र रावत और उनके मंत्री-विधायक क्या करेंगे?
वे आपस में सिर-फुटव्वल करेंगे,जैसा कि पिछले दिनों हरिद्वार में देखा गया.या फिर सरकार जनता के पैसे खनन और शराब वालों को राहत पहुंचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगी ! क्रय मूल्य तय करने या नीति बनाने का न्यूनतम काम भी यदि सरकार को नहीं करना है तो ऐसी सरकार के सत्ता में बने रहने का औचित्य क्या है?
