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विधानसभा चुनाव के शोर में दब गए पंचायत चुनाव..

विधानसभा चुनाव के शोर में दब गए पंचायत चुनाव..

स्थगन आदेश साबित हो रहा सबसे बड़ा रोड़ा..

 

देश – विदेश : पंचायत चुनाव कराने के लिए पिछले साल ही प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी। इसमें परिसीमन प्रक्रिया को संपन्न कराने में भी कई बार स्थगन के आदेश दिए गए।

पंचायत चुनाव में स्थगन आदेश सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो रहा है। आरक्षण प्रक्रिया ही अब तक तीन बार स्थगित की जा चुकी है। इससे ग्रामीणों में रोष पनपने लगा है। पिछले साल 28 मार्च को ग्राम पंचायतों का कार्यकाल संपन्न हो गया था। तब से पंचायतों में बतौर प्रशासक अफसर कार्यभार संभाले हुए हैं।

पंचायत चुनाव कराने के लिए पिछले साल ही प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी। इसमें परिसीमन प्रक्रिया को संपन्न कराने में भी कई बार स्थगन के आदेश दिए गए। कभी शासन की ओर से गठित नई नगर पंचायतों का मामला बीच में पड़ जाता था तो कभी अन्य आदेश आड़े आ जाते थे। कोरोना काल के कारण भी प्रक्रिया बाधित रही। किसी तरह चुनाव के लिए परिसीमन और मतदाता सूची फाइनल कर दी गई थी

अब पहले 29 नवंबर को आरक्षण के लिए अनंतिम सूची जारी होनी थी, लेकिन इसे स्थगित कर दिया गया। इसके बाद दस दिसंबर को इसका प्रकाशन होना था इसे भी स्थगित कर दिया गया। दोनों में कारण विधानसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची बनने का हवाला दिया गया। अब 22 फरवरी को आरक्षण के लिए अनंतिम सूची का प्रकाशन किया जाना था लेकिन आचार संहिता का हवाला देकर इसे भी रोक दिया गया। ऐसे में आरक्षित पदों की सूची ही जारी नहीं हो पा रही है।

पंचायत चुनाव प्रक्रिया कर दी गई स्थगित, निवर्तमान प्रधानों में निराशा..

रुड़की में दो साल से पंचायत चुनाव का इंतजार कर रहे निवर्तमान प्रधान और भावी प्रधानों के अरमानों पर फिर पानी फिर गया है। एक दिन पहले शुरू हुई चुनाव प्रक्रिया के अगले ही दिन स्थगित होने से निवर्तमान प्रधानों में रोष है। उन्होंने सरकार के साथ ही निर्वाचन आयोग से भी चुनाव प्रक्रिया जल्द से जल्द कराने की मांग की है।

हरिद्वार जिले में पंचायतों का कार्यकाल 29 मार्च 2020 को समाप्त हो गया था। इसके बाद प्रधानों के बस्ते जमा करवा दिए गए थे। साथ ही गांव में छह माह के लिए प्रशासक नियुक्त कर दिए गए थे। प्रशासक नियुक्त होते ही सरकार ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की प्रक्रिया शुरू की थी। प्रशासन ने पंचायतों की मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण करते हुए इनका अंतिम प्रकाशन भी कर दिया था।

इसके बाद पंचायतों में आरक्षण तय होना था। इसी बीच प्रशासकों का समय भी पूरा हो गया। ऐसे में प्रशासन ने दोबारा प्रशासकों का समय बढ़ा दिया। जब दूसरी बार भी प्रशासकों का समय पूरा हुआ तो लोगों को उम्मीद थी कि अब चुनाव करवा दिया जाएगा। इसी बीच विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया जिसके शोर में पंचायत चुनाव दब गए और प्रशासकों का समय एक बार फिर बढ़ गया।

वहीं अब विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद एक बार फिर आरक्षण तय करने की प्रक्रिया को दोबारा शुरू किया गया था। प्रक्रिया शुरू होते ही निवर्तमान प्रधान और भावी प्रधानों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। मंगलवार को आरक्षण की अनंतिम सूची प्रकाशित की जानी थी लेकिन इसी बीच निर्वाचन आयोग ने एक बार फिर प्रक्रिया पर रोक लगा दी। इससे भावी प्रधानों के चेहरे फिर उतर गए हैं। उनमें चुनाव नहीं कराए जाने को लेकर सरकार और प्रशासन के खिलाफ भारी रोष है।

लोगों का ये है कहना..

सरकार और प्रशासन को गांव की स्थिति देखनी चाहिए। बिना प्रधानों के गांव का विकास ठप हो गया है। इसके बावजूद सरकार बार-बार चुनाव की प्रक्रिया को शुरू करके रोक देती है।

वाजिद, टोटा एहतमाल..

प्रशासकों का समय लगातार बढ़ाया जा रहा है। इससे गांव में जनता में भी रोष बनने लगा है। अब ग्रामीण चाहते हैं कि चुनाव संपन्न कराकर गांव की सरकार गांव के हाथों में ही आनी चाहिए।

अफजाल हसन, जलालपुर..

इस तरह से चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर और रोककर ग्रामीण जनता व प्रतिनिधियों का उत्पीड़न किया जा रहा है। ग्रामीण बार-बार अपनी समस्याएं लेकर प्रतिनिधियों के पास पहुंच रहे हैं।

साजिद, टोटा एहतमाल..

अब सरकार को जल्द से जल्द चुनाव प्रक्रिया शुरू करवा देनी चाहिए। भले ही चुनाव 10 मार्च के बाद कराए जाएं लेकिन तब तक चुनाव की सभी औपचारिकताएं पूरी करवा देनी चाहिए थीं।

अब्दुल गफ्फार, भंगेडी महावतपुर..

 

 

 

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