प्रदीप रावत
गुप्तकाशी : वैसे तो मन्दिर में माता रानी के दर्शन करने का सौभाग्य हर वर्ष मिलता रहता है लेकिन मन्दिर के प्रांगण में लगने वाले मेले में लगभग सात वर्षो बाद सम्मलित हुवा। सचमुच मेले का आकर्षण केवल धर्मिक,सांस्कृतिक, व्यापारिक गतिविधिया ही नही है बल्कि मेले का सबसे बड़ा आकर्षण अपने पुराने दोस्तों से मिलना होता है |
सोशल मीडिया वाली इस आभासी दुनिया में लोग सोसल मीडिया पर तो अनेकों दोस्त बना चुके है लेकिन वास्तविक जीवन में इन्हें कोई महत्व नही देते है,इसलिए दोस्ताना केवल सोशल मीडिया तक ही सीमित रहता है, लेकिन मेले,त्योहार हमारी इस आभासी दुनिया को हकीकत में तब्दील कर देते है,मेले में पुराने मित्रो एवं नाते रिश्तेदारों से मिलना सुखद रहा,आखिर मन की श्रद्धा हमे इन आयोजनों में साम्मलित होने के लिए आकर्षित कर ही लेती है। इसी आत्मीयता व श्रद्धा के कारण गाँव छोड़कर पलायन कर चुके लोग में साम्मलित होने के लिए अपने पैतृक गाँवो की तरफ उमड़ पड़ते है |
तालतोली स्थित,माँ राजराजेश्वरी तुलंगा,ल्वाणी,अन्द्रवाड़ी,सल्या,खेड़ा, बेलखुर,नया गाँव,भनोली,ल्वारा, जमलोक,सोला,देवांगढ़,नमोली गाँवो की आराध्य देवी है प्रतिवर्ष इस स्थान पर मन्दिर के प्रांगण में मेले का आयोजन किया जाता है जिसमे दूर दराज से आये भक्तजन माता रानी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मेले में बड़ी संख्या में पहुँचते है।
मेले के पहले दिन मन्दिर के गर्भ गृह से माता रानी की डोली को भक्तजनों के दर्शन के लिए निकाली जाती है। अगले दिन भी दोपहर बाद माता रानी की डोली को पूरे प्रांगण में भक्तों के दर्शन के लिए चारों और घुमाई जाती है, देर शाम को पारंपरिक रीति रिवाज के अनुसार माता रानी की डोली को झूले पर सवार करने के पश्चात डोली को पुनः मन्दिर के गर्भ गृह में रखा जाता है। लेकिन इस वर्ष मन्दिर कमेटी द्वारा सभी गाँवो की सहमति और सहयोग लेकर प्रांगण में ही क्षेत्र की खुशहाली के लिए 9 दिवसीय आहूत होम यज्ञ की तैयारी सूरू कर दी है अयुत होम यज्ञ का उदयघाटन 29 मार्च से मा०जिलाधिकारी महोदय के कर कमलों द्वारा होना प्रस्तावित है। अयुत होम यज्ञ के लिए अभी से ही आयोजक गाँवो के घरों में अतिथियों का आना सुरु हो गया है, इस प्रकार के आयोजनो से न केवल हमारी आध्यात्मिक और धार्मिक चेतना बनी रहती है बल्कि हमारे पारम्परिक रीति रिवाजों का भी सरक्षंण एवं सवंर्धन होता है।