उत्तराखंड

दो वर्षों में मनरेगा योजना में हो रहा है गड़बड़ झाला

आडिट, अधिकारियों के भ्रमण और कार्यालय खर्चे पर लाखों रूपये व्यय
डाक टिकटों, वाहन तेल और अन्य खर्चा भी लाखों में
जबकि मनरेगा कर्मियांे को आठ माह से नहीं मिला है वेतन
रुद्रप्रयाग। जिला मुख्यालय सहित तीनों विकासखण्डों में तैनात मनरेगा कर्मियों को विगत 8 माह से वेतन तो नहीं मिला है, लेकिन मनरेगा के अन्र्तगत विगत दो वर्षो में मिली धनराशि को पानी की तरह बहाने से जिला प्रशासन व मनरेगा को संचालित करने वाले अधिकारियों की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गयी है। वित्तीय वर्ष 2016-17 तथा 17-18 की बात करे तो दो वर्षो में 1 करोड़, 45 लाख 56337 रूपये मनरेगा कर्मियों के वेतन भुगतान में खर्च किया गया है, जबकि 80 लाख 88441 रूपये आडिट, अधिकारियों के भ्रमण, कार्यालय खर्चा व आईईसी पर व्यय हुआ है। मनरेगा कर्मियों के वेतन के अलावा इतनी बडी़ धनराशि कैसे खर्च हुई, इसका पता नहीं चल पा रहा है।
विदित हो कि जिला मुख्यालय सहित तीनो विकासखण्डों में तैनात मनरेगा कर्मियों को विगत 8 माह से वेतन न मिलने के कारण उनके सन्मुख आजीविका का संकट बना हुआ है। मनरेगा कर्मियों द्वारा वेतन भुगतान को लेकर कई बार सरकारी हुकमरानों को अवगत कराने के बाबजूद भी मनरेगा कर्मियों को विगत 8 माह से वेतन तो नहीं मिल पाया है, मगर मनरेगा विभाग द्वारा मनरेगा के अन्र्तगत मिली धनराशि को किस प्रकार ठिकाने लगाया गया इसके लिए विभाग के आकडे़ स्वयं गवाह बने हुये हैं।

वित्तीय वर्ष 2016-17 की बात करे तो विभाग ने 78 लाख 60 हजार 529 रूपये मनरेगा कर्मियों के वेतन भुगतान पर खर्च किया है। जबकि विभाग ने 5750 रूपये आडिट, 16 लाख 63551 रूपये अधिकारियों के भ्रमण, 23 लाख 93918 रूपये कार्यालय खर्चा व 1 लाख 75881 रूपये आईईसी पर व्यय किया है। वित्तीय वर्ष 2017-18 की बात करे तो विभाग ने 66 लाख 95808 रूपये मनरेगा कर्मियों के वेतन पर व्यय किया है। जबकि इसी वित्तीय वर्ष 8 लाख 76138 रूपये अधिकारियों के भ्रमण तथा 21 लाख 30703 रूपये कार्यालय खर्चे पर व्यय किया है। दोनों वित्तीय वर्षों की बात करे तो 1 करोड 45 लाख 56337 रूपये मनरेगा कर्मियों के वेतन भुगतान तथा 80 लाख 88441 रूपये आडिट, अधिकारियों के भ्रमण, कार्यालय खर्चा व आईईसी पर व्यय हुआ है। विभागीय सूत्रों की माने तो तीनों विकासखण्डों के वाहनों के ईधन का खर्चा मनरेगा से व्यय किया जाता है। 16 सितम्बर 2016 को विभाग द्वारा 42500 रूपये का लेपटाॅप क्रय किया गया है। 30 जून 2016 को विभाग द्वारा 10 हजार डाक टिकटों का क्रय मनरेगा योजना से ही किया गया है।

जबकि 9 सितम्बर 2016 को 38430 रूपये टेलीफोन का बिल भी मनरेगा योजना से ही व्यय किया गया है। विभागीय जानकारी के अनुसार 11 मई 2017 को 1 लाख 5 हजार रूपये एक तहसील के वाहन के ईधन पर व्यय किया गया है तथा 11 मई 2017 को 34 हजार 565 रूपये का वोडाफोन के बिल का भुगतान भी मनरेगा योजना से ही किया गया है। 15 मई 2017 को पुनः 10 हजार डाक टिकटों का क्रय मनरेगा योजना से किया गया है। 20 दिसम्बर 2017 को तहसील प्रशासन जखोली के वाहन पर 42 हजार रूपये खर्च दिखाया गया है। मनरेगा के योजना के अन्र्तगत इतनी बडी़ धनराशि अन्य मदों पर खर्च करने के बाद भी मनरेगा कर्मियों का वेतन के लिए मोहताज होना चिन्ता का विषय बना हुआ है। कुल मिलाकर मनरेगा के आकडों को देखकर लगता है कि यदि मनरेगा की योजनाएं संचालित नहीं होती तो सरकारी वाहनो के पहिये किस मद से घूमते। या फिर मनरेगा योजना के लागू होने से पूर्व तहसील प्रशासन व तीनों विकासखण्डों के वाहनों के पहिये किस मद से घूमे यह सोचनीय विषय बना हुआ है। भले ही विगत 8 माह से मनरेगा कर्मी वेतन पाने से वंचित हैं, मगर मनरेगा के अन्र्तगत मिली धनराशि का अन्य मदों में किस प्रकार व्यय हुआ यह जांच का विषय बना हुआ है। वहीं जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने कहा कि यदि मनरेगा कर्मियों को वेतन नहीं मिला है तो उनका वेतन शीघ्र निकालने के प्रयास किये जाएंगे। उन्होंने कहा कि वाहन, टेलीफोन आदि का बिल मनरेगा से किया जा सकता है। इसके अलावा यदि कोई अतिरिक्त खर्चा हुआ है तो इसकी जांच कराई जायेगी।

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