उत्तराखंड

तो क्या 222 गढ़ों की धरती है गढ़वाल

श्रीनगर। उत्तराखंड का गढ़वाल 52 गढ़ों का धरती नहीं, अपितु 222 गढ़ों की धरती है। इनमें से एचएनबी केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर का इतिहास एवं पुरातत्व विभाग अब तक 169 गढ़ों का मूल स्थान खोज चुका है। अभी तक 69 गढ़ों के अवशेष ढूंढ निकाले गए हैं। शेष 100 की अवशेषों की खोज जारी है। विभाग का मानना है कि गढ़ों की संख्या बढ़ भी सकती है।
प्राचीन धर्मग्रंथो में गढ़वाल को केदारखंड और कुमाऊं को मानसखंड कहा गया है। कालांतर में सुरक्षा की रणनीति के तहत केदारखंड में राज कर राजाओं ने सुरक्षा की रणनीति से गढ़ों या किलों (फोर्ट) की स्थापना की। इन गढ़ों की जिम्मेदारी गढ़पतियों को दे दी। गढ़ों से राजा को सामरिक मदद सहित कर व अनाज की प्राप्ति होती थी। इन गढ़ों में पूरी बस्ती बसा करती थी। राजा अजयपाल ने 52 गढ़ को जीतकर साम्राज्य की स्थापना की। तब से केदारखंड को गढ़वाल कहा जाने लगा। यहां 8वीं शताब्दी से ब्रिटिश काल तक गढ़ों का काल रहा।
गढ़ के बारे में हमेशा लोगों में उत्सुकता रही है। इसी को देखते हुए वर्ष 2011 में गढ़वाल विवि के इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के शोधार्थी डा. नागेंद्र रावत ने गढ़ों को खोज निकालने का जिम्मा लिया। वर्ष 2001 से 2017 के बीच उन्होंने गढ़वाल के 7 जिलों का भ्रमण कर 69 गढ़ों के अवशेष खोजे। उन्होंने शोध के दौरान इतिहास व धर्मग्रंथों का अध्ययन और इतिहासकारों व लोगों से बातचीत कर 222 गढ़ों के नाम एकत्रित किए। इनमें से 169 गढ़ ऐसे हैं, जिनका स्थान आइडेंटीफाई किया जा चुका है।

श्रीनगर। सबसे ज्यादा गढ़ पौड़ी में है। इसकी वजह पौड़ी जिले का पहाड़ व मैदान में विभाजित होना है। सबसे बढ़ा गढ़ पौड़ी जिले का चौंदकोट गढ़ (विकास खंड एकेश्वर) है। यह 46.33 हेक्टेअर भूमि में फैला था और इसमें त्रिस्तरीय व्यवस्था थी। सबसे पहले सुरक्षा चौकी, दूसरा स्थानीय निवासियों के घर और तीसरा गढ़पति का किला।

कैसे खोजे गढ़
श्रीनगर। गढ़ों की स्थापना विशेष रणनीति के तहत की जाती थी। इसमें स्थानीय निवासियों का साक्षात्कार और भौगोलिक स्थिति का आकलन कर गढ़ खोजे गए। कुछ स्थानों में गढ़ मंदिरों में तब्दील हो गए हैं। जबकि कुछ स्थानों पर मध्यकाल की स्थापत्य कला के अवशेष मिले हैं।
जिलावार गढ़
जिला संख्या
पौड़ी 59
उत्तरकाशी 40
चमोली 21
टिहरी 20
रुद्रप्रयाग 9
देहरादून 9
हरिद्वार 3

क्या कहते हैं विशेषज्ञ
गढ़ों के उद्भव को जाने के लिए प्रत्येक जिले में कम से कम एक गढ़ के उत्खनन होना चाहिए। इससे इनके स्थापना काल की जानकारी हासिल हो सकेगी। संरक्षण के अभाव पुरातात्विक महत्व की सामग्री नष्ट हो रहीे हैं।
डा. नागेन्द्र रावत, गढ़ों के खोजकर्ता

यह खोज मध्यकालीन इतिहास के नए अध्याय को खोलेगी। किस्सों-कहानी में पढ़े जाने वाले गढ़ों का वास्तविक इतिहास लोगों के सामने आएगा। गढ़ देश-विदेश के लोगों के सैलानियों का आकर्षण का केंद्र बन सकेंगे।

प्रो. विनोद नौटियाल, एचओडी इतिहास एवं पुरातत्व विभाग

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